चांद को लेकर पिछले कुछ साल में कई सारे मिशन लॉन्च किए गए हैं. आने वाले समय में और भी मिशन लॉन्च करने की तैयारी है. इसी कड़ी में अब एस्ट्रोनॉट्स को चांद की सतह पर रहने और काम करने के लिए ट्रेनिंग देने के साथ, अब एक न्यूक्लियर रिएक्टर भी चांद पर बनाया जाएगा. ब्रिटेन स्थित रोल्स-रॉयस के इस न्यूक्लियर रिएक्टर से चंद्रमा के बेस को पावर/ एनर्जी दी जा सकेगी. बता दें, चांद पर इस रिएक्टर को 2029 तक भेजने की तैयारी है.
चांद पर रहने वालों को मिल सकेगी एनर्जी
रोल्स-रॉयस के इस कदम से चांद पर जो बस्ती बनेगी उसको ऊर्जा मिल सकेगी. अंतरिक्ष यात्रियों के लिए भविष्य के मून बेस के लिए परमाणु ऊर्जा का उपयोग कैसे किया जा सकता है, इस पर पहले रिसर्च होने वाली है. इस रिसर्च के लिए यूनाइटेड किंगडम स्पेस एजेंसी से फंडिंग ली गई है. माइक्रो-रिएक्टर प्रोग्राम का उद्देश्य मनुष्यों को चंद्रमा पर रहने और काम करने के लिए जितनी एनर्जी और पावर की जरूरत है उतनी दी जा सके.
इसके लिए रोल्स-रॉयस को मिली है फंडिंग
इसके लिए रोल्स-रॉयस को £2.9 मिलियन यानी 23.93 करोड़ की फंडिंग मिली है. इन पैसों से स्पेस एजेंसी के मिशनों को सपोर्ट किया जा सकेगा. इसको लेकर जॉर्ज फ्रीमैन, जो ब्रिटेन के नवाचार और प्रौद्योगिकी विभाग में राज्य मंत्री हैं, ने कहा "जैसा कि हम 50 से ज्यादा साल में पहली बार मनुष्यों को चंद्रमा पर लौटने के लिए तैयार कर रहे हैं, हम रोल्स-रॉयस के साथ इस चंद्र मॉड्यूलर रिएक्टर जैसे रोमांचक शोध का पूरा समर्थन कर्रे हैं. ये मून बेस के लिए एक पावर सोर्स का काम करेगा.”
क्या होगी इसकी खूबी?
रिपोर्ट्स के मुताबिक, ये न्यूक्लियर रिएक्टर साइज में दूसरे रिएक्टर्स से छोटा होने वाला है. जो चांद पर रह रहे एस्ट्रोनॉट्स को उनकी रिसर्च और उनको रहने के लिए पावर देगा. रोल्स-रॉयस ने इसे लेकर कहा कि न्यूक्लियर माइक्रो-रिएक्टर जगह, धूप और दूसरी पर्यावरणीय परिस्थितियों की परवाह किए बिना भी हर वक्त एनर्जी दे सकेगा. इंजन कंपनी ने माइक्रोरिएक्टर बनाने के लिए ऑक्सफोर्ड यूनिवर्सिटी, बांगोर यूनिवर्सिटी, ब्राइटन यूनिवर्सिटी, शेफील्ड यूनिवर्सिटी के साथ हाथ मिलाया है.
गौरतलब है कि इस न्यूक्लियर रिएक्टर को पृथ्वी पर भी इस्तेमाल किया जा सकता है. रोल्स-रॉयस ने कहा कि इसका लक्ष्य एक स्वच्छ, हरे और सालों-साल तक चलने वाले एनर्जी सोर्स प्रदान करना है.