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हॉट ज्यूपिटर्स पर मिले पानी के संकेत, वैज्ञानिकों की बड़ी खोज

ज्यूपिटर के आकार के लगभग एक-तिहाई से लेकर 10 गुना आकार वाले सभी हॉट ज्युपिटर्स अपने होस्ट स्टार की परिक्रमा बेहद करीब से करते हैं. ये हॉट ज्युपिटर्स एस्ट्रोनॉमर्स के लिए शोध का विषय बने हुए हैं.

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हाइलाइट्स
  • क्यों पड़ा ऐसा नाम?

  • एस्ट्रोनॉमर्स की टीम ने इमिशन स्पेक्ट्रा को मापा

  • ‘सेकंडरी इक्लिपसिंग’ मेथड की ली गई मदद 

पृथ्वी से परे जीवन की खोज में, एस्ट्रोनॉमर्स गैस से बने ग्रहों यानी ‘गैस जिआंट्स’ तक पहुंच गए हैं. हॉट ज्यूपिटर्स नामक ये ग्रह अपने होस्ट स्टार्स के चारों ओर बहुत क्लोज़ ऑर्बिट्स में परिक्रमा करते हैं. इसी कड़ी में एक नई स्टडी सामने आई है. यह स्टडी इन ग्रहों के बनने की कहानी के बारे में जानकारी देती है. इस स्टडी को एस्ट्रोनॉमर्स ने  हबल स्पेस टेलीस्कोप के ऑब्ज़र्वेशन और थिओरिटिकल मॉडलिंग को मिला कर तैयार किया है. 

क्यों पड़ा ऐसा नाम?

इन ‘गैस जिआंट्स’ का आकार ज्यूपिटर के आकर और द्रव्यमान के लगभग एक-तिहाई से लेकर 10 गुना तक होता है. सभी हॉट ज्युपिटर्स अपने होस्ट स्टार्स की परिक्रमा बेहद करीब से करते हैं. इनके ऑर्बिट्स बुध के ऑर्बिट से भी ज्यादा करीब होते हैं. HATS-18b एक ऐसा ही ग्रह है. इसका रेडियस ज्यूपिटर के रेडियस का 1.34 गुना है. यह वज़न में ज्यूपिटर से दोगुना है. अपने होस्ट तारे की परिक्रमा करने में इसे एक दिन से भी कम समय लगता है. ऑर्बिट्स की गति और ग्रह का आकार इसके होस्ट तारे के 'स्पिन' को प्रभावित करता है.

एस्ट्रोनॉमर्स की टीम ने इमिशन स्पेक्ट्रा को मापा

एस्ट्रोनॉमर्स ने ‘गैस जिआंट्स’ पर पानी के मॉलिक्यूल और कार्बन मोनोऑक्साइड के संकेत पाए हैं. जर्नल 'नेचर एस्ट्रोनॉमी' में प्रकाशित यह अध्ययन एस्ट्रोनॉमर्स को हॉट ज्युपिटर्स के लिए एक  "फील्ड गाइड" उपलब्ध कराता है और ग्रहों के ओरिजिन की भी जानकारी देता  है. एरिज़ोना विश्वविद्यालय की एक नासा सागन फेलो, मेगन मैन्सफील्ड के नेतृत्व में, एस्ट्रोनॉमर्स ने हबल स्पेस टेलीस्कोप द्वारा किए गए अवलोकनों का उपयोग किया और हॉट ज्यूपिटर के इमिशन स्पेक्ट्रा को मापा. मैन्सफील्ड ने कहा, "ये सिस्टम, ये तारे और उनके हॉट ज्युपिटर्स पास जाकर रहस्यों का पता लगाने के लिए बहुत दूर हैं. हम केवल एक बिंदु देख सकते हैं जो दोनों का कम्बाइंड प्रकाश है.

‘सेकंडरी इक्लिपसिंग’ मेथड की ली गई मदद 

इन गैस जिआंट्स के मेकिंग के बारे में ज्यादा जानकारी पाने के लिए, टीम ने एक मेथड  का इस्तेमाल किया जिसे ‘सेकंडरी इक्लिपसिंग’ कहा जाता है. इस मेथड के जरिये तारे और उसके ग्रह से आने वाले संयुक्त प्रकाश को माप कर उनकी तुलना की जाती है. यह तब किया जाता है, जब ग्रह अपने तारे के पीछे छिपा होता है. "यह हमें ग्रह को तारे से मिल रहे और ग्रह द्वारा उत्सर्जित किये जा रहे प्रकाश को अलग करने में मदद करता है, लेकिन हम इसे डायरेक्ट नहीं देख सकते हैं," मैन्सफील्ड ने समझाया. इससे एस्ट्रोनॉमर्स को सभी हॉट ज्युपिटर्स के लिए तापमान और दबाव के अलग-अलग प्रोफाइल बनाने में मदद मिली.