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एवरेस्ट जैसे पहाड़ कैसे बने, समंदर की स्टडी से हुआ खुलासा

नेचर कम्युनिकेशंस अर्थ एंड एनवायरनमेंट पत्रिका में प्रकाशित, अध्ययन में कहा गया है कि ग्रेट ऑक्सीडेशन इवेंट में उच्च कार्बन दफन और व्यापक पर्वत निर्माण के उद्भव के सबूत हैं. प्लैंक्टोंस मरने के बाद समुद्र तल पर गिर गए. इससे ग्रेफाइट का निर्माण हुआ, जिसने एक दूसरे के ऊपर ढेर, टूटे हुए चट्टानों को स्लैब में लुब्रिकेट करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई.

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हाइलाइट्स
  • प्लैंक्टोंस ने चट्टानों को स्लैब में लुब्रिकेट करने में  निभाई महत्वपूर्ण भूमिका

  • जियोलाजिकल रिकॉर्ड में महासागरों में कार्बनिक पदार्थों की प्रचुरता के प्रमाण

  • कार्बन की प्रचुरता ने किया क्रस्ट को मोटा

  • क्रस्ट में दफन ग्रेफाइट ग्रीन टेक्नोलॉजी के लिए महत्वपूर्ण

दुनिया की सबसे ऊंची चोटी माउंट एवरेस्ट की ऊंचाई 8,849 मीटर है और भारत की सबसे ऊंची चोटी कंचनजंगा है, जिसकी ऊंचाई 8,586 मीटर है. लेकिन, यह सब कैसे शुरू हुआ और दुनिया भर में इन ऊंची संरचनाओं का निर्माण किस वजह से हुआ? अभी तक इसकी सटीक जानकारी नहीं मिली है. वैज्ञानिकों ने समुद्र में पाए जाने वाले पोषक तत्वों में इन संरचनाओं के स्रोत का पता लगाया है. पर्वतों का निर्माण आमतौर पर टेक्टॉनिक प्लेटों के टकराने से जुड़ा होता है, लेकिन एक नए अध्ययन से पता चलता है कि दो अरब साल पहले महासागरों में पोषक तत्वों की प्रचुरता प्लैंकटॉनिक लाइफ में विस्फोट का कारण बनी थी जिससे टेक्टॉनिक प्लेट ट्रिगर हुए थे.

प्लैंक्टोंस ने चट्टानों को स्लैब में लुब्रिकेट करने में  निभाई महत्वपूर्ण भूमिका

नेचर कम्युनिकेशंस अर्थ एंड एनवायरनमेंट पत्रिका में प्रकाशित, अध्ययन में कहा गया है कि ग्रेट ऑक्सीडेशन इवेंट में उच्च कार्बन दफन और व्यापक पर्वत निर्माण के उद्भव के सबूत हैं. प्लैंक्टोंस मरने के बाद समुद्र तल पर गिर गए. इससे ग्रेफाइट का निर्माण हुआ, जिसने एक दूसरे के ऊपर ढेर, टूटे हुए चट्टानों को स्लैब में लुब्रिकेट करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई, जिससे पर्वतों का निर्माण हो पाया. वे सभी प्राणी या वनस्पति, जो जल में जलतरंगों या जलधारा द्वारा प्रवाहित होते रहते हैं, प्लैंक्टोंस या प्लवक कहलाते हैं.

जियोलाजिकल रिकॉर्ड में महासागरों में कार्बनिक पदार्थों की प्रचुरता के प्रमाण

शोधकर्ताओं ने पाया कि इस अवधि में प्लैंकटॉनिक जीवन की मात्रा असामान्य रूप से अधिक थी, जिसके कारण आवश्यक परिस्थितियों का निर्माण हुआ जो लाखों वर्षों में पहाड़ों के उद्भव के लिए महत्वपूर्ण थे. यूनिवर्सिटी के स्कूल ऑफ जियोसाइंसेज के प्रोफेसर जॉन पार्नेल के नेतृत्व में, शोधकर्ताओं का कहना है कि इस अवधि के लिए जियोलाजिकल  रिकॉर्ड में महासागरों में कार्बनिक पदार्थों की प्रचुरता के प्रमाण दिखे हैं, जो मरने के बाद  शेल में ग्रेफाइट के रूप में संरक्षित हो गए थे.

कार्बन की प्रचुरता ने किया क्रस्ट को मोटा

एबरडीन विश्वविद्यालय के प्रोफेसर जॉन पार्नेल ने बताया, "पहाड़ लैंडस्केप का एक अनिवार्य हिस्सा हैं, लेकिन बड़ी पर्वत श्रृंखलाएं लगभग दो अरब साल पहले पृथ्वी के इतिहास के बीच में बनी थीं. जबकि यह लंबे समय से ज्ञात है कि टेक्टॉनिक प्रक्रियाओं को चिकनाई दी गई थी, हमारे शोध से पता चलता है कि समुद्र में यह कार्बन की प्रचुरता थी जिसने पृथ्वी की पर्वत श्रृंखलाओं का निर्माण करने वाले क्रस्ट को मोटा करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी." 

क्रस्ट में दफन ग्रेफाइट ग्रीन टेक्नोलॉजी के लिए महत्वपूर्ण 

शोधकर्ताओं ने कहा कि इसके सबूत स्कॉटलैंड के उत्तर-पश्चिम में देखे जा सकते हैं, जहां प्राचीन पहाड़ों की जड़ें और उन्हें बनाने में मदद करने वाले चिकने ग्रेफाइट अभी भी हैरिस, टायरी और गेयरलोच जैसी जगहों पर पाए जा सकते हैं. अध्ययन के सह-लेखक, ग्लासगो विश्वविद्यालय के डॉ कॉनर ब्रॉली, ने कहा "पृथ्वी के क्रस्ट में दफन ग्रेफाइट भविष्य में ग्रीन टेक्नोलॉजी जैसे ईंधन कोशिकाओं और लिथियम-आयन बैटरी में उपयोग के लिए मांग में है. यह सोचना दिलचस्प है कि यह दो अरब साल पुरानी घटना जो हमारी प्राकृतिक दुनिया को आकार देने के लिए जिम्मेदार थी, अब भविष्य की पीढ़ियों के लिए इसके संरक्षण में महत्वपूर्ण भूमिका निभाने की क्षमता रखती है.