भारत जहां एक ओर स्पेस इंडस्ट्री में नए आयाम गढ़ रहा है वहीं दूसरी ओर दुनियाभर में अपना नाम कमा रहा है. अब इसी कड़ी में इंडियन स्पेस रिसर्च ऑर्गनाइजेशन (ISRO) एक और बड़े मिशन का हिस्सा बनने जा रहा है. इस मिशन का नाम स्क्वायर किलोमीटर एरे ऑब्जर्वेटरी है. ये दुनिया का सबसे बड़ा रेडियो टेलीस्कोप बनाने वाला इंटरनेशनल प्रोजेक्ट है.
दुनिया का सबसे बड़ा रेडियो टेलीस्कोप
दरअसल, इसरो ने सोमवार को गहरे अंतरिक्ष में एक्स-रे और ब्लैक होल का अध्ययन करने के लिए एक अनूठी लेबोरेटरी लॉन्च की है. अब, सरकारी स्पेस एजेंसी महाराष्ट्र में स्थापित तीसरा नोड LIGO (लेजर इंटरफेरोमीटर ग्रेविटेशनल-वेव ऑब्जर्वेटरी) लॉन्च करने के लिए तैयार है. भारत के वैज्ञानिक भी इस अंतरराष्ट्रीय प्रोजेक्ट का हिस्सा होंगे. स्क्वायर किलोमीटर ऐरे (SKA), दुनिया का सबसे बड़ा रेडियो टेलीस्कोप होने वाला है.
क्या है स्क्वायर किलोमीटर ऐरे ऑब्जर्वेटरी?
स्क्वायर किलोमीटर एरे ऑब्जर्वेटरी (SKAO) केवल एक दूरबीन नहीं है, बल्कि इसमें हजारों एंटेना शामिल हैं. इसकी मदद से सामूहिक रूप से खगोलीय घटनाओं को देखा जा सकेगा और उनके ऊपर स्टडी भी की जा सकेगी.
यह कैसे शुरू हुआ?
स्क्वायर किलोमीटर एरे में भारत की भागीदारी 1990 के दशक से ही है. पुणे स्थित नेशनल सेंटर फॉर रेडियो एस्ट्रोफिजिक्स (NCRA) और दूसरे संस्थान इसको बनाने में काफी सक्रिय रूप से योगदान दे रहे हैं. 2021 में, SKA संगठन (SKAO) को एक अंतरसरकारी संगठन के रूप में स्थापित किया गया. इसके बाद कई तरह की बातचीत के बाद बहुराष्ट्रीय सहयोग को मजबूत किया गया, जिसमें भारत ने सक्रिय रूप से भाग लिया.
हालांकि, अपनी सदस्यता को औपचारिक रूप देने के लिए, देशों को SKAO सम्मेलन पर हस्ताक्षर करने होंगे. ये पूरा प्रोजेक्ट करीब 1,250 करोड़ रुपये का बताया जा रहा है. जिसमें शामिल होने के लिए भारत सरकार ने मंजूरी दे दी है.
क्या होगा इसमें भारत का योगदान?
भारत के योगदान की बात करें, तो टेलीस्कोप मैनेजर एलिमेंट से जुड़ा एक सॉफ्टवेर बनाना है. टेलीस्कोप मैनेजर एलिमेंट, न्यूरल नेटवर्क या टेलीस्कोप के काम को व्यवस्थित करने का काम करता है. टाटा इंस्टीट्यूट ऑफ फंडामेंटल रिसर्च की एक यूनिट इस सॉफ्टवेयर को बनाने के लिए नौ संस्थानों और सात देशों की एक अंतरराष्ट्रीय टीम का नेतृत्व कर रही है.