लगभग 70 साल पहले, एक इंजीनियर फ्रांसिस थॉमस बेकन ने ऐसा आविष्कार किया जिसकी मदद से इंसान ने चांद पर कदम रखा. थॉमस बेकन का आविष्कार था हाइड्रोजन-ऑक्सीजन फ्यूल सेल. इसने न केवल अपोलो मिशन के लिए बल्कि रिन्यूएबल एनर्जी के फील्ड में भी एक बड़ा काम किया. हालांकि, इसके बावजूद थॉमस बेकन को वो सम्मान न मिल सका जिसके वे हकदार थे. लेकिन अब, केम्ब्रिज पास्ट, प्रेजेंट & फ्यूचर नामक चैरिटी संस्था उनके पूर्व घर, लिटिल शेल्फोर्ड, कैम्ब्रिजशायर में एक ब्लू प्लाक लगाकर उनके सम्मानित करने का कदम उठाया है.
"बेकन सेल" के पीछे का जीनियस
एस्सेक्स में जन्मे इंजीनियर थॉमस बेकन ने ऐसा फ्यूल सेल बनाई, जिसने आखिरकार अपोलो 11 की चंद्रमा यात्रा में मदद की. उनकी हाइड्रोजन-ऑक्सीजन फ्यूल सेल—जिसे बाद में NASA ने बेकन के योगदान के सम्मान में "बेकन सेल" का नाम दिया—अपोलो मिशन के लिए फ्यूल का सबसे बड़ा सोर्स था.
इसने कम्युनिकेशन, एयर कंडीशनिंग, और लाइटिंग जैसी जरूरी सुविधाओं के लिए बिजली की आपूर्ति की, साथ ही अंतरिक्ष यात्रियों के लिए पीने के पानी की भी व्यवस्था की. थॉमस बेकन ने 1969 में चंद्रमा पर उतरने से पहले बीबीसी रेडियो 4 के एक इंटरव्यू में अपने आविष्कार के बारे में बताया था.
दरअसल, नॉर्मल बैटरियों को खत्म होने पर रिचार्ज करना पड़ता है, लेकिन फ्यूल सेल्स लगातार बिजली पैदा कर सकती है, जब तक इसे हाइड्रोजन और ऑक्सीजन की आपूर्ति की जाती रहे. थॉमस बेकन जोर देकर कहते हैं, “जब तक आप इसमें हाइड्रोजन और ऑक्सीजन डालते रहेंगे और बनने वाले पानी को निकालते रहेंगे, यह लगातार बिजली पैदा करता रहेगा और अंतरिक्ष यात्री उस पानी को पी सकते हैं.”
थॉमस बेकन के लिए सबसे गर्व वाला पल वो था जब उन्होंने अपोलो 11 के अंतरिक्ष यात्रियों, नील आर्मस्ट्रांग, बज एल्ड्रिन और माइकल कॉलिंस से पृथ्वी पर लौटने पर मुलाकात की. डाउनिंग स्ट्रीट पर हुए एक स्वागत समारोह में, अंतरिक्ष यात्रियों ने थॉमस बेकन को नील आर्मस्ट्रांग के ऐतिहासिक पहले कदम की एक साइन की हुई तस्वीर भेंट की थी.
बिजली के लिए हल्के सोर्स की जरूरत थी
गौरतलब है कि अपोलो स्पेसक्राफ्ट को एक ऐसे बिजली पैदा करने वाले सोर्स की जरूरत थी जो हल्का हो और लगातार बिजली दे सके. बैटरियों में बिजली बनाने की शक्ति कम होती है, पूरे मिशन को इसमें पूरा नहीं किया जा सकता था. जबकि फ्यूल सेल्स से बहुत ज्यादा बिजली पैदा की जा सकती है. साथ ही हाइड्रोजन-ऑक्सीजन फ्यूल सेल कम वजन का होता है. इसके अलावा, बैटरियां समय के साथ डिस्चार्ज होती हैं और उन्हें चार्ज या बदलने की जरूरत पड़ती है. एस्ट्रोनॉट के लिए ये सबसे बड़ी समस्या थी, क्योंकि यात्रा के दौरान बैटरी चार्ज करना या बदलना संभव नहीं है.
अंतरिक्ष में रॉकेट फ्यूल कैसे काम करता है?
रॉकेट न्यूटन के तीसरे नियम पर काम करते हैं- "हर क्रिया के बराबर और विपरीत प्रतिक्रिया होती है." रॉकेट फ्यूल में एक फ्यूल लिक्विड हाइड्रोजन और लिक्विड ऑक्सीजन होता है. इससे गैस पैदा होती है, यह गैस तेज गति से रॉकेट नोजल से बाहर निकलती है, जिससे रॉकेट आगे बढ़ता है.
वहीं, बैटरियों को इसे लिए इस्तेमाल नहीं किया जा सकता क्योंकि उनसे उतनी गैस पैदा नहीं होती है. रॉकेट को पृथ्वी के गुरुत्वाकर्षण को पार करने के लिए बहुत ज्यादा एनर्जी की जरूरत होती है. बैटरियां स्पेसक्राफ्ट को डिवाइस, कंप्यूटर, या कैमरे जैसे सिस्टम को एनर्जी देने के लिए तो अच्छी हैं, लेकिन वे रॉकेट प्रोपल्शन के लिए उतनी बिजली पैदा नहीं कर पाती हैं.