रूमेटाइड (Rheumatoid arthritis) सबसे आम गठिया रूपों में से एक है. यह तब होता है जब हमारे जोड़ों के कार्टिलेज टिश्यू टूटना शुरू हो जाते हैं. बढ़ती उम्र के साथ ये बीमारी धीरे-धीरे समय के साथ बिगड़ती जाती है. लेकिन मौजूदा समय में इसका भी इलाज निकाल लिया गया है. दिल्ली के एक प्राइवेट हॉस्पिटल के डॉक्टरों ने 3डी प्रिंटेड मेडिकल इम्प्लांट का इस्तेमाल कर 30 साल की के हाथों के 8 जॉइंट्स को बदल दिया है.
रोगी की उंगलियां फिर से चलने लगी
उज्बेक महिला की दोनों हथेलियों की उंगलियों के आठ जॉइंट को सफलतापूर्वक बदल दिया गया है. ये ट्रीटमेंट एक ही बार में किया गया. रोगी की उंगलियां फिर से चलने लगे इसके लिए ये ट्रीटमेंट किया गया. दरअसल, रूमेटाइड अर्थराइटिस एक दुर्बल करने वाला ऑटोइम्यून डिसऑर्डर है जो जोड़ों को प्रभावित करता है, जिससे सूजन, दर्द और आसपास के टिश्यू को नुकसान होता है. कई मामलों में, यह ज्यादा गंभीर हो जाता है तो इसकी वजह से बड़ा नुकसान हो सकता है और जीवन जीना मुश्किल हो सकता है.
सर्जरी की जरूरत हुई महसूस
टीओआई की रिपोर्ट के मुताबिक, आकाश हेल्थकेयर के मैनेजिंग डायरेक्टर डॉ आशीष चौधरी और माइक्रोसर्जन और कंसलटेंट डॉ नीरज गोदारा ने ये सर्जरी की थी. डॉक्टरों ने कहा कि उज्बेक महिला ज़ुल्फिया मशरिपोवा गंभीर रूप से क्षतिग्रस्त कूल्हों और उंगलियों के जॉइंट के दर्द की तकलीफ लेकर अस्पताल आई थी. जांच करने पर, डॉक्टरों ने निर्धारित किया कि उसे न केवल दोनों कूल्हों के लिए, बल्कि आठ उंगलियों के जॉइंट के लिए भी ट्रांसप्लांट सर्जरी की जरूरत है.
3-डी प्रिंटिंग टेक्नोलॉजी का किया इस्तेमाल
चूंकि उंगलियों के लिए छोटे जॉइंट इम्प्लांट भारत में आसानी से उपलब्ध नहीं हैं, इसलिए डॉक्टरों ने जॉइंट के लिए कस्टम-मेड इम्प्लांट बनाने के लिए 3डी प्रिंटिंग टेक्नोलॉजी की ओर रुख किया. टीओआई की रिपोर्ट में डॉ नीरज गोदारा ने कहा, "3डी प्रिंटिंग टेक्नोलॉजी का उपयोग करके, हम टाइटेनियम मेटल-बेस्ड इम्प्लांट बनाने में सक्षम थे. ये उज्बेक महिला के क्षतिग्रस्त जॉइंट में पूरी तरह से फिट होने करने के लिए डिजाइन किए गए थे."
डॉ नीरज आगे कहते हैं, "पहले, दोनों कूल्हों को 3 मार्च को बदल दिया गया था और जब उज्बेक महिला पूरी तरह से रिकवर कर गईं, तो दूसरी सर्जरी एक महीने बाद की गई थी, जिसमें दोनों हाथों में आठ अंगुलियों के जॉइंट को कस्टम-निर्मित इम्प्लांट से बदल दिया गया था.”
इस इम्प्लांट के परिणाम देखकर मरीज काफी हैरान रह गए थे. वह बिना किसी सहारे के चलने में सक्षम थी और सर्जरी के कुछ हफ्तों के भीतर अपनी उंगलियों को स्वतंत्र रूप से हिलाने में सक्षम थी.