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रुकेगी पानी की बर्बादी, कपड़ा उद्योग में 90 प्रतिशत कम किया जा सकेगा पानी का उपयोग, IIT रोपड़ ने बनाई ये तकनीक

कपड़ा उद्योग में 90 प्रतिशत तक पानी की बर्बादी को रोका जा सकेगा. आईआईटी रोपड़ ने एयर नैनो-बबल- तकनीक बनाई है. इसकी मदद से टेक्सटाइल इंडस्ट्री में 90 प्रतिशत पानी के उपयोग को कम किया जा सकेगा. 

रुकेगी पानी की बर्बादी रुकेगी पानी की बर्बादी
हाइलाइट्स
  • इंडस्ट्री में होता है काफी पानी बर्बाद 

  • पानी की बर्बादी होगी कम  

क्या आपको मालूम है कि 1 किलो सूती कपड़े को संसाधित करने में लगभग 200 से 250 लीटर पानी खराब होता है? क्या आपको मालूम है कि टैक्सटाइल इंडस्ट्री में लगभग हर साल 80 ट्रिलियन लीटर पानी उपयोग में लाया जाता है, जिसकी वजह से पर्यावरण और वातावरण में गंदगी और पानी की कमी हो रही है. लगातार पानी की हो रही खपत और प्रदूषण से निपटने के लिए आईआईटी रोपड़ ने एयर नैनो-बबल- तकनीक से टेक्सटाइल इंडस्ट्री में 90 प्रतिशत पानी के उपयोग को कम किया जा सकेगा. 

पानी की बर्बादी होगी कम  

एयर नैनो-बबल नाम की ये ग्रीन टेक्नोलॉजी पानी की मात्रा को कम कर सकती है. इसी तरह से टेक्सटाइल सेक्टर में पानी की बर्बादी को 90 प्रतिशत तक रोका जा सकेगा. बताते चलें कि कपड़ा क्षेत्र में बड़ी मात्रा में पानी के उपयोग होता है. लेकिन एयर नैनो-बबल से पानी की मात्रा को कम किया जा सकता है. आईआईटी का दावा है कि इससे पानी के उपयोग को 90 प्रतिशत तक कम किया जा सकेगा. 

इंडस्ट्री में होता है काफी पानी बर्बाद 

बताते चलें कि मोटे अनुमान के अनुसार 1 किलो सूती कपड़े को संसाधित करने के लिए 200-250 लीटर पानी की जरूरत होती है. लैब की रिपोर्ट बताती है कि पानी में फैले हवा के नैनो-बबल पानी की खपत, रासायनिक खुराक को 90-95% तक कम कर सकते हैं, जो अंततः 90% ऊर्जा की खपत को भी बचाता है.

इस तकनीक को विकसित करने वाले डॉ. निर्मलकर ने इसके बारे में बात करते हुए कहा, “टेक्सटाइल इंडिस्ट्री सबसे ज्यादा पानी की खपत वाले उद्योगों में से एक है. ऐसे में पानी के प्रदूषण से जुड़े वस्त्र उद्योग में पानी के उपयोग के प्रबंधन की समस्या को दूर करने की आवश्यकता है. आईआईटी रोपड़ में हम अपनी आने वाली पीढ़ियों के लिए पानी के संरक्षण के लिए नए जमाने की विधियों का आविष्कार और समावेश कर रहे हैं.”

कैसे-कैसे होता है पानी का उपयोग?

कपड़े की तैयारी के लिए कई चरणों में पानी का उपयोग किया जाता है, जिसमें रंगाई, वस्त्र सब्सट्रेट में केमिकल को खत्म करना, डिजाइनिंग (यार्न से आकार देने वाली सामग्री को हटाने की प्रक्रिया), सकोरिंग, बलीचिंग और मर्सराइजिंग (डाई के प्रति आकर्षण बढ़ाने के लिए कपड़े का रासायनिक उपचार) शामिल है. साथ ही कपड़ा इंडस्ट्री भी सबसे ज्यादा मात्रा में पानी का उपयोग करती है. जल प्रदूषण के प्रमुख स्रोत पूर्व-उपचार, रंगाई, छपाई और फिनिशिंग होती है. इसी को कम करने का काम किया जा रहा है. 

कैसे करेगा ये काम?

वही इस प्रोजेक्ट में रिसर्च स्कॉलर कल्याणी अग्रवाल और प्रिया कॉउंडले ने बताया कि यह हवा और ओजोन के नैनो- बबल्स पर आधारित है. बुलबुले प्रकृति में हाइड्रोफोबिक होते हैं इसलिए कपड़े के साथ पानी की तुलना में बेहतर तरीके से संपर्क करते हैं और कपड़े में रासायनिक और रंगों को सिर्फ पानी की तुलना में अधिक कुशलता से वितरित करते हैं. ये बुलबुले इंसानों के बाल के 1/1000 वें गुना आकार के बराबर होते हैं. कपड़े की धुलाई के दौरान ओजोन नैनो-बबल्स कुशलतापूर्वक अतिरिक्त डाई को हटाते हैं और डाई को पानी में घटाते हैं. वही एक और रिसर्च स्कॉलर हर्ष शर्मा बताते हैं कि पर्यावरण की सफाई की दिशा में भी काम चल रहा है और जल उपचार से लेकर स्वास्थ्य देखभाल तक के नए अनुप्रयोगों को विकसित करने में विस्तार किया जा रहा है.