इस बार सर्दियों में कई मैदानी इलाकों में भी तापमान शून्य से नीचे यानी माइनस में चला गया. तापमान माइनस में जाते ही लोगों के दिमाग में बर्फबारी आती है. लेकिन मैदानी इलाकों में आमतौर पर बर्फबारी नहीं देखी जाती और इसीलिए अगर दिल्ली में तापमान जीरो से नीचे चला भी जाए तो बर्फबारी नहीं हो सकती इसके पीछे भौगोलिक कारणों के साथ-साथ कई और मौसम से जुड़े हुए तकनीकी वजह हैं.
दिल्ली के आसपास तापमान में गिरावट
आईएमडी यानी मौसम विभाग के डायरेक्टर जनरल मृत्युंजय महापात्र बताते हैं, "बर्फबारी एक तरह का प्रेसिपिटेशन है यानी उसके लिए बादलों की जरूरत होती है. मैदानी इलाकों में बादल के होने से तापमान बढ़ता है और ऐसे में शून्य डिग्री के साथ-साथ बादल का कॉम्बिनेशन हो जाए ऐसा होना काफी मुश्किल है."
दिल्ली के आसपास कई सारे इलाकों में पिछले कुछ दिनों से तापमान माइनस में दर्ज किया जा रहा है. मंगलवार को भी तापमान हिसार, चुरू और अलवर जैसे स्टेशनों पर जीरो डिग्री से कम दर्ज हुआ. आमतौर पर मैदानी इलाकों में तापमान माइनस में तब जाता है जब हिमालय पर होने वाली बर्फबारी के बाद ठंड बर्फीली हवाएं उत्तर पश्चिम भारत के मैदानी इलाकों का रुख करती है. आमतौर पर यह हवा शुष्क होती है और उसके साथ बादलों का फॉरमेशन नहीं होता है. इसलिए इनकी वजह से तापमान काफी नीचे तो चला जाता है लेकिन बर्फबारी जैसे हालात पैदा नहीं होते.
फसलों को भी पहुंचता है नुकसान
कई सारे मैदानी इलाकों में खेतों मैं ऐसे मौसम में पाला देखने को मिलता है. पाला दरअसल वर्ष की एक पत्न परत होती है. जो या तो वायुमंडल में मौजूद पानी के कणों के कम तापमान पर जम जाने से बनती है या फिर पेड़ पौधे की कोशिकाओं से निकलने वाले पानी को भी ठंडा तापमान बर्फ में तब्दील कर देता है. मैदानी इलाकों में जब पाला पड़ता है तो उससे फसलों को भी काफी नुकसान होता है.
(कुमार कुनाल की रिपोर्ट)