यूएसएसआर के विघटन के बाद रूस की स्पेस एजेंसी रॉस्कॉसमॉस की चांद पर उतरने की पहली कोशिश नाकाम हो गई. उनका स्पेसक्राफ्ट लूना 25 क्रैश हो गया. ये विफलता चांद की सतह पर किसी स्पेसक्राफ्ट के सॉफ्ट लैंडिंग के रिस्क को सामने लाती हैं. भले ही 20 से अधिक बार चांद पर सफल लैंडिंग हुई है. इसमें से 6 बार इंसानों के साथ चांद पर लैंडिंग भी शामिल है. लेकिन अभी तक इसमें पूरी तरह से महारत हासिल नहीं हुई है. पिछले 10 साल में सिर्फ चीन ने 3 बार चांद पर सफल लैंडिंग की है. इसके अलावा दुनिया के सभी सफल लैंडिंग साल 1966 से 1976 के बीच हुई है.
आखिरी 15 मिनट होता है अहम-
साल 2019 में मिशन चंद्रयान 2 के समय इसरो के चेयरमैन के. सिवन ने लैंडिंग के फाइनल फेज को '15 मिनट्स ऑफ टेरर' कहा था. वैज्ञानिक का ये बयान लैंडिंग के अंतिम समय में आने वाली जटिलता को दर्शाता है. इससे साफ होता है कि आखिरी चरण चंद्र मिशन का सबसे कठिन हिस्सा होता है.
इंडियन एक्सप्रेस की रिपोर्ट के मुताबिक पिछले 4 साल में 4 देशों पर इजरायल, जापान, भारत और रूस ने चांद पर स्पेसक्राफ्ट उतारने की कोशिश की है. लेकिन इसमें किसी को सफलता नहीं मिली है. सभी देशों को लैंडिंग के अंतिम समस्या में ही समस्या आई है. सभी देशों के स्पेसक्राफ्ट लैंडिंग के समय क्रैश हुए हैं.
रूस के लूना 25 के क्रैश होने की सही वजह अब तक सामने नहीं आई है. हालांकि रॉस्कॉसमॉस का कहना है कि लैंडिंग से पहले की कक्षा में जाने के दौरान स्पेसक्राफ्ट भटक गया और चंद्रमा से टकराकर क्रैश हो गया. जबकि इसरो के चंद्रयान 2, इजरायल के बेयरशीट, जापान के हाकुटो-आर को अलग तरह की दिक्कतों का सामना करना पड़ा.
हालांकि चीन इसमें अपवाद है. जिसने साल 2013 में अपने पहले ही प्रयास में चांग-ई 4 और चांग-ई 5 के साथ इस उपलब्धि को दोहराया. जिन देशों ने कोशिश की, उनको नाकामी हासिल हुई. ऐसे में भारत सिर्फ एक देश है, जिसने दोबारा चांद पर लैंडिंग की कोशिश की है. पिछली गलतियों से सीखते हुए इसरो ने चंद्रयान 3 में कई सुरक्षा सुविधाएं शामिल की हैं.
पहले और अब के मून मिशन में अंतर-
जिस टेक्नोलॉजी की मदद से आधी सदी पहले चांद पर लैंडिंग करने में सफलता मिली थी, वो कुछ देशों को परेशान कर रही है. हालांकि उस समय भी लैंडिंग टेक्नोलॉजी में महारत हासिल नहीं थी, उस वक्त के आंकड़ों से ये पता चलता है. साल 1963 से साल 1976 के बीच लैंडिंग की 42 कोशिशें की गईं, जिसमें से 21 में सफलता मिली. इसका मतलब है कि सिर्फ 50 फीसदी मिशनों में सफलता मिली. उस वक्त चांद पर जाने की वजह अलग थी. शीत युद्ध की दुश्मनी- और भू-राजनीतिक फायदा उठाने कोशिश में अमेरिका और यूएसएसआर चांद पर स्पेसक्राफ्ट भेजने की दौड़ में शामिल थे. ये मून मिशन खतरनाक और खर्चीले भी थे. लेकिन इसमें से कुछ सफल रहे. इन मिशनों ने उपलब्धियां भी हासिल की.
इंडियन एक्सप्रेस की रिपोर्ट के मुताबिक चंद्रयान 1 मिशन में अहम भूमिका निभाने वाले मायलस्वामी अन्नादुराई ने कहा कि उस समय के मून मिशन भेजने में जिन जोखिमों को उठाया गया, वो इस समय अस्वीकार्य हैं. अब उन मिशनों पर हुए खर्च को भी उचित नहीं ठहराया जा सकता है.
इस समय चंद्रयान मिशन के लिए जो टेक्नोलॉजी का इस्तेमाल किया जा रहा है, वो काफी सुरक्षित, सस्से और अधिक ईंधन बचत वाले हैं. लेकिन इस समय के टेक्नोलॉजी की तुलना 1960 और 1970 के दशक में इस्तेमाल उपकरणों से नहीं की जा सकती है. यही वजह है कि जिस अमेरिका ने चांद पर 6 क्रू मिशन उतारे थे, उन्होंने इस दौर में ऑर्बिटर भेजकर जीरो से शुरूआत की है. इतना ही नहीं, अमेरिका ने आर्टेमिस प्रोग्राम की शुरुआत भी इंसानों को भेजने के साथ नहीं की. क्रू मिशन सिर्फ आर्टेमिस 3 मिशन पर जाएगा.
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