बड़े शहरों में रहने वाले लोगों के लिए अब खुली आंखों से तारे देखना दुर्लभ हो गया है. क्या आपने कभी गौर किया है कि पिछले एक दशक में आसमान में अपनी नंगी आंखों से देखे जा सकने वाले तारों की संख्या में काफी कमी आई है? नए शोध से पता चलता है कि यह वास्तव में दुनिया भर में बढ़ते लाइट प्रदूषण के कारण है. लाइट पॉल्यूशन एक ऐसी प्रक्रिया है जिसके तहत आर्टिफिशियल लाइट के कारण आसमान में काफी चमक रहती है, और इससे तारे तक नहीं दिखते. एक रिपोर्ट के मुताबिक शौकिया खगोलविदों और नागरिक वैज्ञानिकों के एक समूह ने इस निष्कर्ष पर पहुंचने के लिए आकाश का अध्ययन करते हुए पिछले 12 साल बिताए हैं. शोधकर्ताओं के अनुसार, मनुष्य आकाश में जितना प्रकाश उत्सर्जित करता है, उससे लाइट पॉल्यूशन में लगातार 10% की वृद्धि हुई है. तो चलिए आपको बताते हैं कि ये लाइट पॉल्यूशन के बारे में आपको विस्तार से बताते हैं.
एलईडी लाइटों से बढ़ रहा है लाइट पॉल्यूशन का खतरा
यूरोपीय अंतरिक्ष एजेंसी ने पिछले साल एक अध्ययन में खुलासा किया था कि दुनिया भर में एलईडी लाइटिंग ने लाइट पॉल्यूशन की समस्या को बढ़ा दिया है. बिजली जितनी सस्ती और बेहतर होती है, उतनी ही बर्बाद होती है. सजावटी रोशनी, विज्ञापन बोर्ड, स्ट्रीट लाइट और ऊंची इमारतों पर रोशनी ने हमारे आकाश को उज्जवल बना दिया है और लाइट पॉल्यूशन की समस्या और भी बदतर हो गई है.
लाइट पॉल्यूशन: मनुष्य के लिए एक बड़ा खतरा
लाइट पॉल्यूशन से न केवल चाँद और तारों का दिखना कम होता है, बल्कि यह आपकी स्लीप साइकल पर भी गहरा असर छोड़ता है. अत्यधिक प्रकाश न केवल मनुष्यों में बल्कि जानवरों में भी बाधित नींद के पैटर्न और खराब स्वास्थ्य का एक कारण है. एक अध्ययन में ये भी खुलासा हुआ है कि ज्यादा रोशनी के कारण स्थानीय कीड़ों की संख्या में भी गिरावट आई है, जिससे इकोसिस्टम पर गहरा असर पड़ रहा है.
लाइट पॉल्यूशन से बर्बाद हो रही है एनर्जी
विशेषज्ञों का कहना है कि आसमान में फैले ग्लो और चमक को देखकर साफ पता चलता है कि हर दिन हम कितनी मात्रा में एनर्जी बर्बाद कर रहे हैं. हालांकि आम लोगों और सरकारों का ध्यान अभी इस तरफ बिल्कुल नहीं जा रहा है. इस पर डॉ कबा का कहना है, "अभी भी सुधार की काफी गुंजाइश है. अगर आप संभल कर प्रकाश का इस्तेमाल करते हैं, तो बिना प्रदूषण फैलाए भी आप जमीन पर रोशनी कर सकते हैं.
हर साल दो फीसदी तक कम हो रही है विजिबिलिटी
डॉ कीबा का कहना है कि पिछले एक दशक में बढ़ती हुई आर्टिफिशियल लाइट की वजह से पड़ रहे पर्यावरणीय असर पर काफी स्टडी हो रही है. पूरी दुनिया में इसके लिए नियम बनाए जा रहे हैं. वायुमंडल में प्रकाश की मात्रा को लेकर चर्चा की जा रही है, ताकि हम अपने आसमान को देख सकें. लेकिन जितनी तेजी से आर्टिफिशियल लाइट बढ़ रही है. वह विकास नहीं प्रदूषण है. साल 2017 में सैटेलाइट्स की मदद से की गई एक स्टडी के मुताबिक इंसानों द्वारा बनाई गई रोशनी हर साल उस इलाके का ब्राइटनेस 2 फीसदी की दर से बढ़ रही है.