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आखिर क्यों डरावनी यादें हमारा पीछा नहीं छोड़ती हैं? वैज्ञानिकों ने खोज निकाली वजह

कई बार लोगों को भयभीत करने वाले पल उनका पीछा नहीं छोड़ते. मन चाहे कितनी भी कोशिश कर ले बुरी यादों को भुलाने की लेकिन दिमाग से मात खा ही जाता है. ऐसा क्यों होता है चलिए जानते हैं.

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हाइलाइट्स
  • डरावनी यादों को भुलाना मुश्किल

  • हिप्पोकैंपस brain का वह पार्ट होता है, जो लॉन्ग टर्म मेमोरी और शॉर्ट टर्म मेमोरी को एक साथ कंसोलिडेट करता है.

कहते हैं बुरी यादें जितनी जल्दी भुला दी जाएं बेहतर है.लेकिन क्या आपने सोचा है, हम अपने साथ हुई बुरी घटनाओं को क्यों जल्दी नहीं भूल पाते हैं. आखिर डरावनी यादें क्यों साये की तरह हमारा पीछा करती हैं... वैज्ञानिकों ने इसके पीछे की वजह खोज निकाली है.

कैसे किया गया शोध
Tulane University School of Science and Engineering and Tufts University School of Medicine ने अपने शोध में पाया कि हिप्पोकैम्पस (ब्रेन का वह पार्ट, जो लॉन्ग टर्म मेमोरी और शॉर्ट टर्म मेमोरी को एक साथ कंसोलिडेट करता है) एक विशेष संदर्भ में प्रतिक्रिया करता है और इसे एन्कोड करता है. वहीं एमिग्डाला भय प्रतिक्रियाओं सहित आक्रामक व्यवहार को ट्रिगर करता है. डर की स्मृति हिप्पोकैम्पस और एमिग्डाला के बीच संबंधों को मजबूत करके बनाई जाती है. सहानुभूति तंत्रिका तंत्र में एड्रेनालाईन की तरह तनाव हार्मोन रिलीज करने के लिए संकेत भेजे जाते हैं. इससे मनुष्य के मन में तनाव उत्पन्न होता है.

किसी डरावने अनुभव पर कैसे काम करता है दिमाग

जब मस्तिष्क हाइपोथैलेमस, सहानुभूति तंत्रिका तंत्र और अधिवृक्क-कॉर्टिकल सिस्टम को रसायनों की एक श्रृंखला जारी करके प्रतिक्रिया देता है तब मन में डर की स्थिति उत्पन्न होती है. डर से हमारे दिमाग में कुछ और असर होता है- हमारे शरीर में आपातकालीन कंट्रोल सेंटर होता है- अमयगडाला (बादाम के आकार का, जो हमारी भावनाओं को नियंत्रित करता है). अचानक किसी डरावने अनुभव पर हमारा सर्वाइवल सिस्टम हरकत में आता है.

डरावने अनुभवों की यादें लंबी

Tulane cell और molecular biology के प्रोफेसर जेफरी टास्कर एक डकैती के उदाहरण का जिक्र करते हुए बताते हैं, "यदि आपको बंदूक की नोक पर रख दिया जाए, तो आपके दिमाग में तनाव न्यूरोट्रांसमीटर नॉरपेनेफ्रिन का एक बंच रिलीज होगा. और ये आपके दिमाग में इलेक्ट्रिकल डिस्चार्ज पैटर्न को बदलकर दिमाग के इमोशनल हिस्से में रिलीज करेगा. आसान भाषा में कहें तो जिस तरह हर व्यक्ति में भावनाओं का स्तर अलग अलग होता है, वैसा ही डर के मामले में भी होता है. डर पैदा कर मस्तिष्क ये चेतावनी देता है कि इस जगह खतरा है, जान बचाने के लिए यहां से दूर जाना चाहिए. हालांकि जरूरी नहीं है कि डरावने अनुभवों की लंबी याद होती है.