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दुनिया का पहला कोविड-19 ह्यूमन चैलेंज ट्रायल है पूरी तरह से Safe, जानिए क्या है ये नया मेथड जिसमें जानबूझकर लोग बनते हैं वायरस का शिकार

ह्यूमन चैलेंज ट्रायल में वालंटियर को एक वैक्सीन या दवा दी जाती है, जिसके बाद उन्हें महीनों तक मॉनिटर किया जाता है. इसकी मदद से ये पता लगाया जाता है कि वह उस वायरस के संक्रमण से कितने सुरक्षित हैं. इसका उद्देश्य वायरस के खिलाफ शरीर के इम्यून रिस्पॉन्स और वायरल ट्रांसमिशन को समझना होता है.

ह्यूमन चैलेंज ट्रायल ह्यूमन चैलेंज ट्रायल
हाइलाइट्स
  • ट्रायल में 18 से 30 साल के 36 वालंटियर्स को शामिल किया गया.

  • ह्यूमन चैलेंज को माना जाता है कॉन्ट्रोवर्शियल

दुनिया का पहला ह्यूमन चैंलेज ट्रायल पूरी तरह से सुरक्षित पाया गया है. बुधवार को इसके रिजल्ट जारी किए गए हैं. इसमें परीक्षण के दौरान स्वस्थ वॉलेटिंयर को जानबूझकर कोरोना वायरस से संक्रमित किया गया था. वे सभी अब सुरक्षित पाए गए हैं. ये ह्यूमन चैलेंज प्रोग्राम इम्पीरियल कॉलेज लंदन, वैक्सीन टास्कफोर्स और डिपार्टमेंट ऑफ हेल्थ एंड सोशल केयर (DHSC), एचवीवीओ और रॉयल फ्री लंदन एनएचएस फाउंडेशन ट्रस्ट ने मिलकर किया है.

दरअसल, वैक्सीन बनाने और वायरस को स्टडी करने के लिए कई सारे मेथड का इस्तेमाल किया जाता है. इसमें सबसे मुख्य होते हैं क्लीनिकल ट्रायल्स. हम सभी जानते हैं कि वैक्सीन या दवा बनाने के लिए ट्रायल में हम चूहों का इस्तेमाल करते हैं, लेकिन क्या आप जानते हैं इसमें हम कभी-कभार इंसानों को भी शामिल करते हैं. 

कैसे किया गया ट्रायल?

इस टेस्ट में, 18-30 साल के 36 वालंटियर्स को शामिल किया गया. ये सभी वो लोग थे जिन्हें कोविड-19 वैक्सीन नहीं लगाई गई थी और वे कभी कोरोना से संक्रमित भी नहीं हुए थे. इन सभी को नाक के माध्यम से वायरस की कम डोज दी गई. इसके बाद इन्हे 2 हफ्ते तक मॉनिटर किया गया. 

क्या आया रिजल्ट में सामने?

इसमें से अठारह वालंटियर संक्रमित हो गए, जिनमें से 16 में हल्के से मध्यम लक्षण दिखाए दिए. इसमें बहती नाक, छींकने और गले में खराश जैसे सिम्प्टम शामिल हैं. कुछ लोगों में सिरदर्द, मांसपेशियों / जोड़ों में दर्द, थकान और बुखार जैसे लक्षण भी दिखाए गए. किसी में भी गंभीर लक्षण नहीं दिखाए दिए. इन सभी में किसी भी प्रकार का कोई लंग इन्फेक्शन या फेफड़ों में कोई बदलाव नहीं देखा गया.

क्या होता है ह्यूमन चैलेंज ट्रायल?

दरअसल, ह्यूमन चैलेंज ट्रायल के तहत सहमति पर वैक्सीन ग्रुप और प्लेसीबो ग्रुप दोनों के वालंटियर्स को जानबूझकर संक्रमण के संपर्क में लाया जाता है. ये एक तरह से वायरस को चुनौती देना होता है. इसमें चेक किया जाता है कि कोई भी इंसान उस वायरस से किस तरह से और कितनी जल्दी संक्रमित होता है.

कैसे होता है ह्यूमन चैलेंज ट्रायल?

अब अगर ट्रायल के मेथड की बात करें, तो इसमें वालंटियर को एक वैक्सीन या दवा दी जाती है, जिसके बाद उन्हें महीनों तक मॉनिटर किया जाता है. इसकी मदद से ये पता लगाया जाता है कि वह उस वायरस के संक्रमण से कितने सुरक्षित हैं. इसका उद्देश्य वायरस के खिलाफ शरीर के इम्यून रिस्पॉन्स और वायरल ट्रांसमिशन को समझना होता है. 

क्यों माना जाता है ह्यूमन चैलेंज को कॉन्ट्रोवर्शियल?

हालांकि, कई लोग इसे काफी कॉन्ट्रोवर्शियल भी मानते हैं. लेकिन दशकों से इस मेथड का इस्तेमाल वायरस की वैक्सीन बनाने के लिए किया जाता रहा है. कोविड-19 को लेकर कई शोधकर्ताओं जैसे नीर इयाल, मार्क लिप्सिच और पीटर जी स्मिथ द्वारा द जर्नल ऑफ इंफेक्शियस डिजीज में एक पेपर में फेज-3 को ह्यूमन चैलेंज ट्रायल के साथ बदलने का प्रस्ताव दिया था. इसमें कहा गया था कि इसकी मदद से हम जल्दी वैक्सीन बना सकते हैं.