भक्ति में बहुत शक्ति होती है. भक्ति का तात्पर्य है-स्वयं के अंतस को ईश्वर के साथ जोड़ देना. जुड़ने की प्रवृत्ति ही भक्ति है. दुनियादारी के रिश्तों में जुट जाना भक्ति नहीं है. भक्ति का मतलब है पूर्ण समर्पण. सरल शब्दों में हम कहते हैं कि हमारी आत्मा परमात्मा की डोर से बंध गई. ईश्वर के प्रति निष्ठापूर्वक समर्पित होने वाला सच्चा साधक ही भक्त है. भक्ति की शक्ति को पहचानने की जरूरत होती है. अच्छी बात में देखें अनूप जलोटा के सुरों में ईश्वर का गुणगान.