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बुलंदशहर के अभिषेक ने देहात में बना दिया लैब

अमिताभ बच्चन साहब की फिल्म का एक बहुत ही फेमस डॉयलॉग है, हम लाइन नहीं लगते, हम जहां खड़े होते हैं, लाइन वहीं से शुरू हो जाती है. लोग उसे ही याद रखते हैं, जो अपनी स्टाइल में काम करते हैं. फिर चाहे वो एक हीरो की एक्टिंग हो या हमारे बीच मौजूद लोगों के काम. आज देश की बात में कुछ ऐसे लोगों की कहानी जो अपना कर्तव्य लीग से हटकर निभाते हैं. कवि सर्वेश्वर दयाल की एक एक कविता है लीग पर वो चले लीक पर वे चलें जिनके चरण दुर्बल और हारे हैं,हमें तो जो हमारी यात्रा से बने, ऐसे अनिर्मित पन्थ प्यारे हैं. देश में ऐसे कुछ लोग हैं जो इन लाइनों को जीवित करते हैं. देखिए आज के देश की बात में कुछ ऐसे लोगों की कहानी.

There is a very famous dialogue of Amitabh Bachchan's film-Hum line mein nhi lagte,hum jahan khade hote hai line whi se shuru hoti hai.People remember only those who work in their style. Whether it is the acting of a hero or the work of those present among us. Today in Desh Ki Baat, the story of some people who perform their duty outside the league. See the story of some such people in Aaj Ki Desh Ki Baat.