scorecardresearch

दीवाली के पहले मिट्टी के दीयों से गुलज़ार रहता था बाजार, अब इलेक्ट्रिक लड़ियों की भरमार

अभी बहुत दिन नहीं हुए जब दीवाली के पहले बाजार मिट्टी के दीयों से भर जाते थे. वक्त बदला और मिट्टी के दीये जलाने का चलन भी. दीये बाजार से गायब तो नहीं हुए लेकिन इसके खरीददार कम हो गए. दिवाली अभी भी रौशनी का त्योहार है लेकिन बिजली और मोम से होने वाली रौशनी का. पुराने दिनों की बात है जब महीनों पहले से दीए ही बाजारों में नजर आते थे, चाक हाथ से चला करते थे, झालर तब हुआ नहीं करती थी, खील बताशे खिलौने इनका चलन ज्यादा था. संस्कार और व्यापार के बीच जगमगाती दिवाली के बारे में और बातें जानने के लिए देखें ये वीडियो

Not long ago, the markets were filled with earthen lamps before Diwali. Times have changed and the trend of lighting earthen lamps has also changed. Diyas did not disappear from the market, but its buyers became less. Diwali is still a festival of lights, but of light from electricity and wax. In the old days only lamps were seen in the markets, potter’s wheel was used by hand, decoration skirting was not there. Watch this video to know more about Diwali trends.