दुख इंसान को तोड़ देता है लेकिन ये भी सच है कि कई बार दुख से गुजरकर हमें जिन्दगी की नई दिशा मिल जाती है. साल 2002 में फ्लाइट लेफ्टिनेंट महीश त्रिखा की शहादत की खबर ने उनके माता-पिता की जिन्दगी में अंधेरा कर दिया. लेकिन दोनों अपने गम से उबरे, और कमजोर तबके के युवाओं को आर्म फोर्स में भेजने को अपना मकसद बना लिया. इनके पढ़ाए और ट्रेनिंग दिए हुए 200 से ज्यादा युवा आर्म फोर्सेस में शामिल होकर देश की सेवा कर रहे हैं.
In the year 2002, the news of the martyrdom of Flight Lieutenant Mahish Trikha darkened the lives of his parents. But both of them recovered from their sorrow, and made it their purpose to send the youth of weaker sections to the Arm Force. More than 200 youths who have been educated and trained by them are serving the country by joining the Arm Forces.