scorecardresearch

जनरल रावत को देश कर रहा याद, 4 दशक से लंबा रहा सैन्य करियर

वो 1978 का साल था, जब जनरल बिपिन रावत को 11 गोरखा राइफल्स की पांचवीं बटालियन में, सेकेंड लेफ्टिनेंट के तौर पर शामिल किया गया था. अपने 4 दशक के करियर में जनरल बिपिन रावत ने कई ऐसे लकीर खींची जिनकी मिसाल आज भी बेहद फक्र से दी जाती है. इतिहास में ऐसे कई मौके आए जब खिलाफ़ परिस्थितियों में भी हमारे जांबाज़ जनरल मजबूती से अपने फैसले और अपने मौर्चे, दोनों पर डटे रहे. 1987 में जब चीन के साथ अरुणाचल प्रदेश में सीमा पर गतिरोध हुआ, तो जनरल रावत अपनी बटालियन लेकर डटे रहे. 2008 में रिपब्लिक ऑफ कांगो में कठोर कार्रवाई से UN पीसकीपिंग मिशन को सफल बनाया. 2015 में म्यांमार में आतंकियों के खिलाफ़ कार्रवाई. 2016 में सर्जिकल स्ट्राइक, 2017 में डोकलाम फिर 2020 में गलवान. हर मौके पर चीन को जवाब देना. ऐसे कितने ही किस्से हैं, जो भारत के सैन्य इतिहास में जनरल बिपिन रावत के अद्भुत योगदान की कहानी बयान करते हैं. देखें जीएनटी स्पेशल.

It was the year 1978 when General Bipin Rawat was inducted into the fifth battalion of the 11 Gorkha Rifles as a second lieutenant. There have been many such occasions in history when even in the face of adversity, our brave General firmly stood both on his decision and his front. In 1987, when there was a standoff along the border with China in Arunachal Pradesh, General Rawat stood with his battalion. There are many such stories, which narrate the story of the wonderful contribution of General Bipin Rawat in the military history of India. Watch GNT Special.