मनीषा कीर, राजेश्वरी कुमारी और प्रीति रजक ने मिलकर महिलाओं की स्कीट में एशियाई खेलों में भारत का पहला रजत पदक जीता. यह उन तीन पदकों में से एक था जो भारत ने फुयांग यिनहु स्पोर्ट्स सेंटर की रेंज में जीते थे. स्कीट में सिल्वर के अलावा पुरुषों की टीम ने गोल्ड और किनान चेनाई ने इंडिविजुअल ब्रॉन्ज जीता.
रजक और कीर को शुरू में एशियाड टीम में नामित नहीं किया गया था लेकिन फिर, उद्घाटन समारोह से कुछ ही दिन पहले, बिना किसी स्पष्टीकरण के एक बार फिर उनके नाम शामिल कर लिए गए. और इन निशानेबाजों ने पदक जीतकर खुद को साबित कर दिया.
अलग-अलग बैकग्राउंड से आती हैं ये खिलाड़ी
बात अगर इन तीनों खिलाड़ियों के सफर की करें तो तीनों ही बहुत अलग-अलग बैकग्राउंड से आती हैं. मनीषा कीर एक मछुआरे की बेटी हैं. भारतीय निशानेबाजी के दिग्गज मानशेर सिंह उनकी प्रेरणा रहे हैं. कीर बचपन में वह अपने पिता के साथ मछलियां पकड़ने और बेचने जाया करती थीं. मानशेर से एक आकस्मिक मुलाकात ने उसका जीवन हमेशा के लिए बदल दिया।
एक ओलंपियन और अर्जुन पुरस्कार विजेता, मानशेर छोटे तबकों के लोगों के लिए खेल को और अधिक सुलभ बनाने के मिशन पर हैं. एमपी राज्य अकादमी के लिए भोपाल में एक ट्रायल के दौरान, उन्होंने कीर को एक कोने में खड़ा देखा और उसे शूटिंग का मौका दिया. उस पल के बाद, कीर ने पीछे मुड़कर नहीं देखा, वह भारत की सबसे बेहतरीन महिला शॉटगन निशानेबाजों में से एक बन गईं.
कीर की तरह, इटारसी की रहने वाली 20 वर्षीय रजक भी एमपी राज्य अकादमी से हैं, जो बाद में महू स्थित आर्मी स्पोर्ट्स इंस्टीट्यूट में सबसे कम उम्र की महिला निशानेबाजों में से एक बन गई. वह एक ड्राई-क्लीनर की बेटी हैं जो सेना में सबसे कम उम्र की महिला निशानेबाजी भर्ती में से एक है.
तीसरी खिलाड़ी हैं राजेश्वरी, जो पटियाला शाही परिवार के वंशज की बेटी हैं. 31 वर्षीय राजेश्वरी ने हाल ही में पेरिस ओलंपिक के लिए कोटा भी हासिल किया है. उनके लिए शूटिंग सबसे स्वाभाविक बात थी. एथलीटों और निशानेबाजों के परिवार में जन्मे उनके पिता रणधीर ने 1968 और 1984 के बीच लगातार पांच ओलंपिक में देश का प्रतिनिधित्व किया था. रणधीर के चाचा यादवेंद्र सिंह पटियाला के आखिरी महाराजा थे.
दोहराया गया इतिहास
एशिया ओलंपिक परिषद के कार्यकारी अध्यक्ष रणधीर के लिए यह पदक सिर्फ इसलिए खास नहीं था क्योंकि यह पदक उनकी बेटी ने जीता था. बल्कि इसके साथ मंच पर इतिहास ने भी खुद को दोहराया. जब रणधीर ने 1982 के एशियाई खेलों में स्वर्ण पदक जीता, तो उन्हें यह पदक उनके पिता भालिंदर सिंह से मिला, जो एशियाई खेल महासंघ के अध्यक्ष थे. रविवार को रणधीर ने ही अपनी बेटी को रजत पदक दिया. राजेश्वरी अपने परिवार की विरासत को आगे बढ़ा रही हैं, तो वहीं उनके साथी अपना रास्ता खुद बना रहे हैं.