लहरों के बीच अपने जुनून को हथियार बना कर 15 साल की एक बेटी ने वो कर दिखाया है. जिसकी कल्पना भी आसान नहीं है. छत्तीसगढ़ के दुर्ग जिले की रहने वाली चंद्रकला ने लगातार 8 घंटे तैर कर अपना नाम गोल्डन रिकॉर्ड बुक में दर्ज करा लिया है. चंद्रकला रविवार सुबह 5 बजे तालाब में उतरी और लगातार तैरने के बाद दोपहर 1 बजे बाहर आई, लगातार 8 घंटे तैरकर गोल्डन बुक ऑफ वर्ल्ड रिकॉर्ड अपने नाम किया है.
2 साल से मेहनत कर रही है चंद्रकला
ये चंद्रकला का हौसला और जज्बा ही तो है, कि उसने इस कारनामे को अंजाम तक पहुंचाया. ये दो साल से जारी उसकी जी तोड़ मेहनत और प्रैक्टिस का ही नतीजा है कि आज उसने इतना बड़ा सम्मान अपने नाम किया. चंद्रकला का हौसला ऐसा है कि सर्दी हो या फिर गर्मी या बारिश बिना रुके लगातार प्रैक्टिस कर रही है. दो साल से प्रैक्टिस में ही समय बीत रहा है.
खेल के माहौल में पली-बढ़ी है चंद्रकला
चंद्रकला 5 साल की उम्र से तैराकी कर रही है. उनका पूरा घर नेशनल और स्टेट लेवल खिलाड़ियों से भरा है. बड़ी बहन भूमिका नेशनल स्वीमर है, छोटा भाई सिद्धार्थ स्टेट खिलाड़ी है. वर्तमान में पुरई में 103 युवा तैराक हैं, जिनके पास नेशनल और स्टेट गेम्स का अनुभव है. चंद्रकला जूनियर ओपन नेशनल, स्टेट में 3 गोल्ड और दो सिल्वर जीत चुकी हैं.
साई गुजरात में भी हो चुका है चयन
चंद्रकला पुरई की वही स्वीमर है, जिसका एक ही बार में स्पोर्ट्स अथॉरिटी ऑफ इंडिया (SAI) गुजरात में स्विमिंग के बेहतरीन प्रदर्शन पर चयन हुआ. सम्मान बड़ा है तो ज़ाहिर है इस कामयाबी का जश्न भी खास होगा. जिसके लिए सूबे के गृह मंत्री भी चंद्रकला को बधाई और आशीर्वाद देने पहुंचे.
पूरे गांव ने दिया साथ
चंद्रकला को इस वर्ल्ड रिकॉर्ड में शामिल करने पूरा गांव साथ है. चंद्रकला के कोच ओम कुमार ओझा ने बताया कि सभी ने अपनी अपनी जिम्मेदारी ली. एक समूह चंद्रकला की डाइट की निगरानी किए हुए था, दूसरा समूह उसकी नींद की मॉनिटरिंग में लगा हुआ था, ताकि उसके अभ्यास में कोई कमी नहीं रहे. यह टारगेट बहुत बड़ा है इसलिए पूरा पुरई गांव कोई चूक नहीं रहने देना चाहता था. गोल्डन बुक की टीम सुबह से ही मौके का मुआयना करती रही.
परिवार में है खुशी का माहौल
बेटी के इस कामयाबी को देख ना सिर्फ चंद्रकला का परिवार खुश है, बल्कि उसके इलाके का हर शख्स फुले नहीं समा रहा. चंद्रकला की कामयाबी दो साल की मेहनत और मशक्कत का नतीजा है, लेकिन अभी तो ये सिर्फ शुरुआत है.
(दुर्ग से रघुनंदन पंडा की रिपोर्ट)