कर्नाटक का कोडागु जिला न सिर्फ प्राकृतिक सुंदरता और कॉफी के लिए बल्कि कोडावा हॉकी फेस्टिवल के लिए भी पूरी दुनिया में मशहूर है. हर साल यहां के 200 से ज्यादा परिवार इस फेस्टिवल में हिस्सा लेते हैं. लगभग हर घरों में आपको हॉकी स्टिक मिल जाएगी. यहां के लोगों के लिए हॉकी सिर्फ एक खेल भर नहीं है बल्कि एक परंपरा, एक विरासत है जो पीढ़ी दर पीढ़ी चली आ रही है. बता दें कि इस फेस्टिवल को देखने के लिए लोग देश-विदेश से आते हैं. इसकी लोकप्रियता का अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि इसे लिम्का बुक ऑफ रिकॉर्ड में तो बहुत पहले ही और हाल में गिनीज वर्ल्ड रिकॉर्ड्स में भी दर्ज किया गया.
1997 में हुई थी शुरुआत
इसकी शुरुआत 1997 में पंडंडा कुट्टप्पा और उनके भाई काशी पोनप्पा ने की थी. 1982 के एशियाई खेलों से प्रेरित होकर कुट्टप्पा एक ऐसा टूर्नामेंट आयोजित करना चाहते थे जो हॉकी को कोडागू में जिंदा रखे. उनकी सोच यह भी थी कि खेल के जरिए ही सही परिवार के सभी सदस्य इकट्ठा रहेंगे. शुरुआत में 62 परिवार के सदस्य टूर्नामेंट में शामिल हुए और 20,000 रुपये खर्च आया. इस टूर्नामेंट में एक टीम में एक परिवार के सभी सदस्य शामिल होते हैं. उम्र और जेंडर का कोई बैरियर नहीं है इस वजह से परिवार का कोई भी सदस्य इसमें हिस्सा ले सकता है. महिला, पुरुष, बच्चे, जवान और बूढ़े सब इसके हिस्सा होते हैं.
2003 में लिम्का बुक ऑफ रिकॉर्ड में हुआ दर्ज
एक महीने तक चलने वाले इस टूर्नामेंट ने साल 2003 में लिम्का बुक ऑफ रिकॉर्ड्स में अपना नाम दर्ज कराया. 2023 में कुंड्योलांडा परिवार ने इसका आयोजन किया था जिसमें रिकॉर्ड 360 टीमों के 4,834 खिलाड़ियों ने हिस्सा लिया. इस बार का बजट 2 करोड़ रुपये से ज्यादा था. टूर्नामेंट के इस साल के संयोजक दिनेश करियप्पा बताते हैं कि 2017 में उन्होंने आयोजन के लिए बोली लगाई थी तो उन्हें 2024 के आयोजन की जिम्मेदारी मिली. वो बताते हैं कि टूर्नामेंट की तैयारी करने में एक परिवार को लगभग 4-5 साल लग जाते हैं. खिलाड़ियों में ओलंपियन से लेकर एनआरआई और किंडरगार्टन के बच्चे तक शामिल होते हैं.
91 साल के अन्नादियंदा चिट्टियप्पा रहे सबसे उम्रदराज खिलाड़ी
टाइम्स ऑफ इंडिया की रिपोर्ट के अनुसार इस साल 91 साल के अन्नादियंदा चिट्टियप्पा सबसे उम्रदराज खिलाड़ी थे. वहीं सबसे कम उम्र के खिलाड़ी 5 साल के थे. चिट्टियप्पा बताते हैं कि हम योद्धाओं की भूमि से हैं और हॉकी हमारे खून में है. मेरी बेटी ने मुझसे कहा कि मुझे इस साल इस टूर्नामेंट में हिस्सा लेना चाहिए. अपना अनुभव शेयर करते हुए वह कहते हैं कि मुझे युवा होने का एहसास हुआ.
कोडवा समुदाय तक है सीमित
ये प्रतियोगिता कोडवा समुदाय तक ही सीमित है. दुनिया के अलग-अलग देशों में जहां भी कोडवा समुदाय के लोग रहते हैं वो इस टूर्नामेंट में हिस्सा लेने के समय कोडागु चले आते हैं. 46 साल के अरुण अचंदिरा कहते हैं कि उनका घर ऑस्ट्रेलिया के मेलबर्न में है लेकिन उनका दिल अभी भी कोडागु में है. इसी साल उन्होंने पहली बार टूर्नामेंट में हिस्सा लिया है. वह कहते हैं कि हर कोडवा हॉकी खेलना चाहता है. जब मैं भारत में था तो मुझे खेलने का मौका नहीं मिला क्योंकि मेरा परिवार एक साथ टीम नहीं बना सका और मैं 20 साल से ऑस्ट्रेलिया में रह रहा हूं.
मिलने लगी है कॉर्पोरेट और सरकारी फंडिंग
पिछले कुछ सालों से टूर्नामेंट को कॉर्पोरेट और सरकारी फंडिंग भी मिल रही है और यही वजह है कि इसका विस्तार भी हुआ है. हॉकी के अलावा खाना पकाने की प्रतियोगिता, म्यूजिक कंपटीशन और मैराथन तक इसमें शामिल किया गया है. कोडवा हॉकी अकादमी के अध्यक्ष और टूर्नामेंट के संस्थापक कुट्टप्पा के बेटे पांडांडा बोपन्ना बताते हैं कि इसका मुख्य उद्देश्य समुदाय के भीतर एकता बनाए रखना है. हम चाहते हैं कि लोग अपनी जड़ों की तरफ वापस आए और अपने लोगों के साथ खेलें. इस साल कोडवा समुदाय के 35 राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय खिलाड़ी टूर्नामेंट के लिए आए थे और लगभग इतनी ही संख्या में सशस्त्र बल के जवानों ने भी इस टूर्नामेंट के लिए छुट्टी ली थी.