PT USHA Birthday: भारत की उड़न परी….जी हां, जब भी पीटी उषा का नाम लिया जाता है तो उनके आगे उड़न परी जरूर लगाया जाता है. पीटी उषा भारत की वो एथलीट हैं जिन्हें "क्वीन ऑफ ट्रैक एंड फील्ड" के नाम से जाना जाता है. इतना ही नहीं, 27 जून 1964 को केरल के कुट्टाली गांव में जन्मी, पीटी उषा को निकनेम के रूप में ’द पय्योली एक्सप्रेस’ भी पुकारा जाता है. उड़न परी का ये सफर तभी शुरू हो गया था जब वे बहुत छोटी थीं. देश के लिए 103 इंटरनेशनल मेडल जीतने वाली पीटी उषा का नाम आज भारत का बच्चा बच्चा जानता है.
नाम के पीछे है दिलचस्प कहानी
दरअसल, पीटी उषा का पूरा नाम पिलाउल्लाकांडी थेक्केपरांबिल उषा है. प्रसार भारती को दिए अपने इंटरव्यू में वे अपने नाम का मतलब बताती हैं और कहती हैं कि उनका पूरा नाम पिलाउल्लाकांडी थेक्केपरांबिल उषा है. इसमें पिलाउल्लाकांडी का मतलब है कि उनके घर के कंपाउंड में एक ऐसा पेड़ था जो कहीं भी पूरे गांव में नहीं था. और थेक्केपरांबिल का मलतब है कि जो पेड़ है उसकी दक्षिण दिशा में उनका घर था. इसी से उनका नाम पीटी उषा पड़ा.
अकेले दौड़ती थीं समुद्र तट पर
पीटी उषा का ये सफर बचपन में ही शुरू हो गया था. वे बताती हैं कि एक स्कूल की दौड़ में उन्होंने चौथी क्लास में स्कूल के चैंपियन को हरा दिया था. वो उनसे उससे तीन साल सीनियर था. बस इसे देखकर वहां उनके सभी शिक्षक हैरान रह गए थे. जिसके बाद अगले कुछ सालों में उनकी क्षमताओं ने ही उन्हें स्पोर्ट्स स्कूलों के पहले बैच में जगह दिलाई. ये स्कूल केरल सरकार ने स्थापित किया था.
बीबीसी को दिए एक इंटरव्यू में कहती हैं, 1978-79 में मैं शोर्ट्स पहनकर दौड़ती थी. समुद्र तट पर आए लोग मुझे दौड़ते हुए देखते थे. मैं 13 साल की उम्र से स्पोर्ट्स में हूं. 1980 में हालात अलग थे. मैंने जब दौड़ना शुरू किया तो कभी नहीं सोचा था कि ओलंपिक में हिस्सा लूंगी.
लोग कहते हैं क्वीन ऑफ ट्रैक एंड फील्ड
पीटी उषा के बारे में कहा जाता है कि वे लंबे स्ट्राइड के साथ एक बेहतरीन स्प्रिंटर भी थीं. वे जहां भी वे दौड़ने जाती थीं वहां सबकी फेवरेट बन जाती थीं. 1980 के दशक में अधिकांश समय तक एशियाई ट्रैक-एंड-फील्ड इवेंट्स में उनका जलवा रहा. और यही वजह है कि आज भी उन्हें "क्वीन ऑफ ट्रैक एंड फील्ड" के नाम से जाना जाता है. बता दें, वहां उन्होंने कुल 23 मेडल जीते थे, जिनमें से 14 गोल्ड मेडल थे.
जब पीटी उषा ने लगा दी थी मेडलों की झड़ी
दरअसल, साल 1984 के ओलंपिक में पीटी उषा ने चौथे पायदान पर आकर इतिहास रचा था. ओलंपिक फाइनल में पहुंचने वाली वे पहली भारतीय महिला खिलाड़ी थीं. हालांकि, कुछ सेकंड से वे मेडल जीतने से चूक गईं थीं. इसे बाद उन्हें अपने ही देश में आलोचनाओं का सामना करना पड़ा.
हालांकि, 1986 के एशियन गेम्स में वे चार मेडल जीतने में सफल रहीं. इसके बाद 1994 में उनकी अविश्वसनीय प्रतिभा देखने को मिली. एशियन गेम्स में 400 मीटर हर्डल की अपनी पहली रेस में उन्होंने गोल्ड मेडल जीता था. इसके बाद वे दूसरी 400, 200 मीटर और 4*400 मीटर रिले में उन्होंने गोल्ड मेडल अपने नाम दर्ज किया. हालांकि, 100 मीटर में उन्हे सिल्वर मेडल नसीब हुआ. लेकिन उस कॉम्पीटीशन में पीटी उषा ने मेडलों की लाइन लगा दी थी. और ये दिखा दिया था कि वे किसी से कम नहीं हैं.
पीटी उषा कहती हैं कि मेडल जीतने के बाद जो जन-गण मन बजता था वो उनके लिए सबसे ज्यादा खुशी का पल होता था.
2000 में की अपनी आखिर दौड़ पूरी
हालांकि, शादी के बाद पीटी उषा ने खेलों से ब्रेक ले लिया था. लेकिन पति के जोर देने पर उन्होंने फिर से बेटा हो जाने के बाद दौड़ में एंट्री की. सिडनी 2000 ओलंपिक में वे आखिरी बार दौड़ी थीं. लोग आज भी कहते हैं कि उस वक्त ऐसा लग रहा था मानों वे आखिरी बार तूफान की तरह दौड़ना चाहती हैं.
बता दें, पीटी उषा अब उषा स्कूल ऑफ एथलेटिक्स’ चलाती हैं. जिसमें वे अपने शिष्यों को ट्रेनिंग देती हैं. भारत की उड़न परी कहती हैं कि उन्होंने जो भी हासिल किया है वे उससे संतुष्ट हैं. अब वे चाहती हैं कि उनके शिष्य बढ़-चढ़कर आगे आएं. उनकी एकेडमी केरल के कोझीकोड में है. जहां भारत के भविष्य के सितारों को तैयार किया जाता है.