

कहते हैं न प्रतिभा किसी चीज की मोहताज नहीं होती है. ईमानदारी से मेहनत करने वालों को सफलता जरूर मिलती है. कुछ ऐसा ही गाजियाबाद के वैभव ने कर दिखाया है. 25 साल के वैभव न बोल सकते और न चल लेकिन चेस (chess) यानी शतरंज में वह अच्छे-अच्छों को मात दे देते हैं. चेस बोर्ड पर वैभव अपना जादू ऐसे बिखेरते हैं कि हर कोई दंग रह जाता है.
90 पर्सेंट हैं दिव्यांग
वैभव का घर अलग-अलग चैम्पियनशिप में जीती गई उनकी ट्रॉफी और मेडल से भरा हुआ है. वैभव को बचपन में ही मस्तिष्क पक्षाघात (Cerebral Palsy) हो गई थी. वह 90 पर्सेंट दिव्यांग हैं लेकिन चेस में उनका दिमाग ऐसा चलता है कि कई लोग उनसे बड़ी-बड़ी चैंपियनशिप हार चुकें हैं.
टाइमपास के लिए खेलना किया शुरू
वैभव बोल नहीं सकते, खड़े नहीं हो सकते इसलिए वह जिस भी चैंपियनशिप में जाते हैं उनके माता-पिता उनके साथ जाते हैं. वैभव की मां ऊषा गौतम बताती हैं कि किसी तरह बड़ी मुश्किल से वैभव की स्कूलिंग खत्म हुई. हमें समझ नहीं आ रहा था कि वैभव क्या करेगा. उसका मन बहलाने के लिए हमने उसके साथ चेस खेलना शुरू किया. शुरू में हम उससे यूं ही हार जाते थे ताकि उसका मनोबल बढ़ा रहे लेकिन एक वक्त ऐसा आया जब हम चाहकर भी वैभव से जीत ही नहीं पाते थे.
खुद से ढूंढ़ा कोच और खुद भरते हैं सारे फॉर्म
वैभव के पिता बताते हैं कि 17 साल की उम्र से वैभव ने चेस खेलना शुरू किया था. धीरे-धीरे चेस में वैभव का इंटरेस्ट बढ़ता चला गया. वैभव बोल नहीं सकता लेकिन टैब के जरिए वो किसी से भी चैट कर सकता है. वैभव ने खुद अपने लिए एक कोच ढूढ़ा, उनसे ट्रेनिंग ली और फिर अलग-अलग चैंपियनशिप के फॉर्म भरने लगा. हम हर चैंपियनशिप में उसके साथ जाते हैं.
ओपन चैंपियनशिप में नॉर्मल लोगों को हराकर जीता पहला इनाम
हाल ही में उदयपुर में चेस की ओपन चैंपियनशिप आयोजित हुई थी. ओपन चैम्पियनशिप का मतलब है कि कोई भी खेल सकता है. यहां 500 से ज्यादा प्लेयर्स पहुंचे थे. इनमें कई विदेशी प्लेयर्स थे. वैभव ने नॉर्मल लोगों के साथ ये चैंपियनशिप खेली और पहली पोजीशन पर रहे. इस चैंपियनशिप की प्राइजमनी 1 लाख 11 हजार रुपए थी.
इंटरनेशनल चैंपियनशिप में हिस्सा लेने के लिए नहीं है पैसे
वैभव के पिता एक छोटी सी स्टेशनरी चलाते हैं. घर में आर्थिक तंगी तो नहीं लेकिन वो कहते हैं कि इतने पैसे नहीं कि वो वैभव को इंटरनेश्नल चैंपियनशिप में लेकर जा सकें. एक-दो बार उन्हें इंटरनेशनल चैंपियनशिप का मौका भी मिला लेकिन इसी वजह से वो जा नहीं पाए. वो चाहते हैं कि उन्हें कोई स्पॉन्सर मिल जाए.
ग्रैंड मास्टर बनने का है सपना
वैभव का परिवार कहता है कि पहले उनके रिश्तेदार वैभव से सहानुभूति दिखाते थे. उन्हें लगता था कि ये बच्चा क्या करेगा लेकिन अब वैभव स्टार बन चुका है. हालांकि अब वैभव और हम सबका सपना है कि वो एक दिन ग्रैंड मास्टर (जीएम) बने. वैभव के हौसलों में बहुत जान है. किस्मत को तो वैभव पहले ही हरा चुकें हैं. देश दुआ करे कि वैभव ग्रांड मास्टर बनने का सपना जल्द पूरा कर पाए.