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World Test Championship: अब ड्रॉ कम होते हैं, ज्यादा टेस्ट मैचों में आते हैं नतीजे... जानिए कैसे हुआ है खेल के सबसे लंबे फॉर्मैट में बदलाव

हाल ही में पूर्व भारतीय कप्तान महेंद्र सिंह धोनी ने टेस्ट क्रिकेट की बदलती प्रवृत्ति की तारीफ की है. उन्होंने कहा है कि अब टीमें टेस्ट में नतीजा हासिल करने के लिए खेल रही हैं, जो खेल के लिए बहुत अच्छा है.

टेस्ट क्रिकेट में यह बदलाव करीब एक दशक से देखने को मिल रहा है. (Photo/PTI) टेस्ट क्रिकेट में यह बदलाव करीब एक दशक से देखने को मिल रहा है. (Photo/PTI)

"आक्रामक खेल में बढ़ोतरी होने से अब खिलाड़ियों का फोकस रिजल्ट पर रहता है. मेरे हिसाब से यह खेल के लिए अच्छा है."
यह शब्द थे पूर्व भारतीय क्रिकेटर और कप्तान महेंद्र सिंह धोनी के. गोवा में एक कार्यक्रम के दौरान बात करते हुए उन्होंने कहा कि मौजूदा टेस्ट क्रिकेट में बहुत कम मैच ड्रॉ पर खत्म होते हैं, जो खेल के लिए बहुत अच्छा है. दरअसल धोनी खेल में आए जिन बदलावों की बात कर रहे हैं, उसका एक कारण डब्ल्यूटीसी फाइनल की शुरुआत भी है. लेकिन बात सिर्फ यहीं तक सीमित नहीं.

'मॉडर्न क्रिकेट' में कैसे हुआ बदलाव?
मॉडर्न क्रिकेट में यह बदलाव करीब एक दशक से देखा गया है. भले ही टेस्ट क्रिकेट में औसत स्कोर कम हुए हैं, लेकिन ज्यादातर मैचों में नतीजे आ रहे हैं. नजर डालते हैं 2017 के आंकड़ों पर. उस साल मार्च से अक्टूबर के बीच एक भी टेस्ट मैच बेनतीता नहीं रहा था. ईएसपीएन क्रिकइन्फो की ओर से प्रकाशित आंकड़ों के अनुसार, इस दौरान लगातार 22 मैचों में नतीजे देखने को मिले. इससे पहले दिसंबर 1884 से मार्च 1892 के बीच ऐसा देखने को मिला था. और टेस्ट क्रिकेट का यह बदलाव क्षणिक नहीं था. बल्कि कुछ समय से मैचों में नतीजे आ रहे थे. 

आंकड़ों के अनुसार, 2014 में खेले गए 41 टेस्ट मैचों में से 33 में किसी टीम की जीत हुई थी, जबकि सिर्फ आठ बेनतीजा रहे थे. यानी 80.5 प्रतिशत मुकाबलों में नतीजा आया था. इसी तरह 2015 में 79.7 प्रतिशत मैचों में, 2016 में 85.1 प्रतिशत मैचों में और 2017 में 89.2 प्रतिशत मैचों में नतीजा आया था. 

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डब्ल्यूटीसी के बाद भी बदले हालात
टीमों की प्रवृत्ति में यूं भी बदलाव हो रहा था, 2019 से वर्ल्ड टेस्ट चैंपियनशिप (WTC) साइकिल में फाइनल जुड़ने के बाद टेस्ट क्रिकेट में आक्रामक मानसिकता और ज्यादा देखने को मिलने लगी. सनद रहे कि जहां डब्ल्यूटीसी साइकिल में जीतने वाली टीम को 12 अंक मिलते हैं, वहीं ड्रॉ पर दोनों टीमों को सिर्फ 4-4 अंक मिलते हैं. हारने पर टीम का कोई अंक नहीं कटता.

आईसीसी (International Cricket Council) ने यह बदलाव टेस्ट क्रिकेट को ज्यादा रोमांचक बनाने के लिए किया है, और ऐसा हो भी रहा है. डब्ल्यूटीसी साइकिल 2021-23 में कुल 70 मैच खेले गए थे. इनमें से सिर्फ 12 मुकाबले ड्रॉ हुए थे. बात करें डब्ल्यूटीसी 2023-25 की तो इस साइकिल में 98 मुकाबले खेले जा चुके हैं. इनमें से सिर्फ तीन मैच ही ड्रॉ हुए हैं. 

पहला भारत और वेस्ट इंडीज के बीच पोर्ट ऑफ स्पेन में 2023 में खेला गया मैच ड्रॉ रहा. दूसरा इंग्लैंड और ऑस्ट्रेलिया के बीच मैनचेस्टर में खेला गया मुकाबला ड्रॉ रहा. और तीसरा वेस्ट इंडीज साउथ अफ्रीका के बीच पोर्ट ऑफ स्पेन में 2024 में खेला गया टेस्ट ड्रॉ रहा. श्रीलंका, न्यूजीलैंड, बांग्लादेश, ऑस्ट्रेलिया और पाकिस्तान ने इस साइकिल में एक भी ड्रॉ मुकाबला नहीं खेला है.

क्या कहते हैं एक्सपर्ट?
जाहिर है कि खेल का सबसे लंबा फॉर्मैट भी टी20 के जमाने में आकर रंग बदल रहा है. विशेषज्ञों का मानना है कि टी20 क्रिकेट की वजह से ही अब टेस्ट क्रिकेट में भी बल्लेबाज लंबी पारियां खेलने की काबिलियत खो चुके हैं. हालांकि वे नतीजे आने को बुरा नहीं मानते हैं. कई विशेषज्ञों ने यह भी कहा है कि बदलते समय के साथ टेस्ट मैचों को चार दिन का किया जा सकता है.