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नंगे पैर लड़कों के साथ खेलती थी फुटबॉल, अब ब्राजील के खिलाफ गोल दाग रचा इतिहास

पंजाब के एक गांव से संबंध रखने वाली मनीषा कल्याण भारतीय फुटबॉल खिलाड़ी हैं. वर्तमान में वह भारतीय सीनियर महिला राष्ट्रीय टीम की विंगर हैं. और इसके साथ ही, किसी भी सीनियर नेशनल ब्राज़ील टीम के खिलाफ गोल करने वाली एकमात्र भारतीय महिला खिलाड़ी. शुक्रवार (26 नवंबर) को, मनीषा ने चार देशों के अंतरराष्ट्रीय टूर्नामनेट में ब्राजील के खिलाफ मैच खेलते हुए एक गोल दागा. और यह किसी सपने से कम नहीं था.

Manisha Kalyan (Image: AIFF) Manisha Kalyan (Image: AIFF)
हाइलाइट्स
  • पंजाब के गांव से हैं मनीषा कल्याण

  • पिता चलाते हैं गांव में छोटी-सी दुकान

कहते हैं कि कोशिश करने वालों की हार नहीं होती. चाहे चुनौती कितनी भी बड़ी हो लेकिन आपने ठान लिया है कि आपको पार करनी है तो कोई आपको नहीं रोक सकता है. और इस बात का जीता-जागता उदाहरण हैं मनीषा कल्याण. जिनके नाम के चर्चे खेल जगह में खूब हो रहे हैं.   

पंजाब के एक गांव से संबंध रखने वाली मनीषा कल्याण भारतीय फुटबॉल खिलाड़ी हैं. वर्तमान में वह भारतीय सीनियर महिला राष्ट्रीय टीम की विंगर हैं. और इसके साथ ही, किसी भी सीनियर नेशनल ब्राज़ील टीम के खिलाफ गोल करने वाली एकमात्र भारतीय महिला खिलाड़ी. 

शुक्रवार (26 नवंबर) को, मनीषा ने चार देशों के अंतरराष्ट्रीय टूर्नामनेट में ब्राजील के खिलाफ मैच खेलते हुए एक गोल दागा. और यह किसी सपने से कम नहीं था. भले ही भारतीय टीम यह मैच ब्राजील से हार गई. लेकिन ब्राजील की टीम के खिलाफ एक गोल दागकर मनीषा ने यह साबित कर दिया कि भारतीय महिला फुटबॉल टीम का भविष्य सुनहरा है. 

27 नवंबर 2021 को मनीषा 20 साल की हो गई हैं. और जिस तरह की पृष्ठभूमि से मनीषा आती हैं, उसे देखते हुए उनके लिए ब्राजील के खिलाफ खेलना ही बहुत बड़ी बात थी. 

लड़कों के साथ नंगे पैर खेलती थी फुटबॉल: 

मनीषा की कहानी पंजाब के होशियारपुर जिले के छोटे से गाँव मुगोवाल से शुरू होती है. उनका सफर बहुत सी चुनौतियों से भरा हुआ रहा लेकिन उन्होंने हार नहीं मानी. 

मनीषा के कोच ब्रह्मजीत का कहना है कि लगभग आठ साल पहले उन्होंने मनीषा को नंगे पैर लड़कों के साथ फुटबॉल खेलते हुए देखा था. और बस देखते ही रह गए थे. क्योंकि मनीषा में टैलेंट की कमी नहीं थी. वह नंगे पैर से भी दनादन गोल दाग रही थी. 

मनीषा का खेल देखकर ब्रह्मजीत उन्हें माहिलपुर फुटबॉल अकादमी लेकर गए. वहां भी सभी कोच का दिल मनीषा ने अपने खेल से जीत लिया. ब्रह्मजीत ने ठान लिया था कि उन्हें मनीषा को राष्ट्रीय टीम तक पहुंचाना है. 

जूते खरीदने तक के नहीं थे पैसे:

मनीषा को गुरु तो मिल गए लेकिन परिवार से खेलने की मंजूरी नहीं मिल रही थी. इसका मुख्य कारण था उनके घर की आर्थिक स्थिति. मनीषा के पिता गांव में छोटी-सी कॉस्मेटिक की दुकान चलाते हैं, जिससे मुश्किल से घर का खर्च चल पाता है. 

ऐसे में मनीषा के लिए 1000-1500 रुपए के फुटबॉल शूज दिलाना बहुत मुश्किल था. लेकिन ब्रह्मजीत ने बार-बार उनके पिता से बात की और मनीषा की ट्रेनिंग की जिम्मेदारी खुद ले ली. जिसके बाद मनीषा को फुटबॉल में आगे बढ़ने का मौका मिला.

हालांकि, गांव के लोगों ने और उनके रिश्तेदारों ने मनीषा के माता-पिता को ताने देने में कोई कसर नहीं छोड़ी. क्योंकि लोगों को यही लगता है कि लड़कियों का काम चूल्हा-चौका करना होता है. खेलना-कूदना या बाहर निकलना नहीं. पर मनीषा के माता-पिता ने हमेशा उनका साथ दिया.

ब्राजील के खिलाफ गोल दागकर रचा इतिहास: 

मनीषा पहली बार दक्षिण अफ्रीका में ब्रिक्स अंडर -17 महिला फुटबॉल कप से पहले राष्ट्रीय टीम में आई थीं और तब से उन्होंने पीछे मुड़कर नहीं देखा. जनवरी 2019 में उन्होंने हांगकांग के खिलाफ सीनियर टीम में डेब्यू किया था. 

2019-20 सीज़न में, उन्होंने गोकुलम केरल में भारतीय महिला लीग (IWL) का खिताब जीतने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई. उन्हें टूर्नामेंट की उभरती हुई खिलाड़ी नामित किया गया था.

मनीषा ने राष्ट्रीय फुटबॉल टीम के लिए खेलने के अपने लक्ष्य तक पहुंचने के बहुत सी कठिनाइयों का सामना किया है. उनका सपना है कि वह एक दिन विश्व कप में अपने देश का प्रतिनिधित्व करें. हालांकि, इसके लिए उन्होंने एक लंबा सफर तय करना है. लेकिन अपने धैर्य और मेहनत से मनीषा यह मुकाम भी हासिल कर लेंगी.