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Olympic ke Kisse: प्रिंसिपल ने घर गिरवी रखकर इस रेसलर को पहुंचाया था ओलंपिक खेलों में, ब्रॉन्ज जीतकर लौटे वतन तो स्वागत में निकली 101 बैलगाड़ियां

आज हम आपको बता रहे हैं भारत के उस महान रेसलर के बारे में जिन्होंने 1952 के हेलसिंकी ओलंपिक में देश को पहले व्यक्तिगत ओलंपिक मेडल का तोहफा दिया था. केडी जाधव रेसलिंग में ओलंपिक पदक जीतने वाले पहले भारतीय थे.

KD Jadhav won India's first individual medal in Olympics (Photo: Facebook/@IAL) KD Jadhav won India's first individual medal in Olympics (Photo: Facebook/@IAL)

जब भी बात ओलंपिक में भारत के व्यक्तिगत पदक (Individual Medal) की होती है तो फेहरिस्त में सबसे पहला नाम आता है केडी जाधव यानी खाशाबा दादासाहेब जाधव का, जिन्होंने भारत को रेसलिंग में पहला पदक जिताया था. साल 1952 में केडी जाधव ने ब्रॉन्ज जीतकर देश का नाम रोशन किया था. 

दिलचस्प बात यह है कि एक समय था जब दुबले-पतले और छोटे कद के खाशाबा जाधव ने महाराष्ट्र के कोल्हापुर के राजा राम कॉलेज में वार्षिक खेल प्रतियोगिता में कुश्ती प्रतियोगिता में भाग लेने के लिए स्पोर्ट्स टीचर से संपर्क किया, तो उन्हें बिना टीचर ने भगा दिया था. लेकिन तब किसी को नहीं पता था कि यही दुबला-पतला लड़का एक दिन ओलंपिक मेडल लाएगा. 

हालांकि, कॉलेज की इस प्रतियोगिता में भी 23 साल के केडी जाधव तो प्रिंसिपल के दखल के बाद अनुमति मिल गई और उन्होंने एक के बाद एक मुकाबला जीतकर खुद को साबित किया. 

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पिता से मिली प्रेरणा
महाराष्ट्र के गोलेश्वर गांव से तालल्कु रखने वाले केडी जाधव के पिता खाशाबा जाधव गांव के एक प्रमुख पहलवान थे और उनके इस जुनून की छाया उनके पांचों बेटों पर पड़ चुकी थी. लेकिन उनका सबसे छोटा बेटा खेलों के प्रति ज्यादा समर्पित था. केडी जाधव ने वेट लिफ्टिंग, स्वीमिंग, रेस और हैमर थ्रो में अच्छा प्रदर्शन किया लेकिन पिता की प्रेरणा से 10 साल की उम्र में वह कुश्ती के अखाड़ों में आ गए. 

उनके बचपन के दोस्त राजाराव देओडेकर ने Rediff.com को एक इंटरव्यू में बताया था कि जाधव कभी भी कहीं भी कुश्ती प्रतियोगिता नहीं छोड़ते थे. जाधव ने अपने पिता के अधीन ट्रेनिंग की और फिर उन्हें बाबूराव बालावड़े और बेलापुरी गुरुजी ने मार्गदर्शन दिया. हालांकि, उनके हल्के कद को देखकर लोगों को अक्सर लगता था कि वह अपने विरोधियों पर काबू नहीं पा सकेंगे और इस कारण उन्होंने अपनी तकनीक को बेहतर बनाने में काफी समय बिताया. 

केडी जाधव ने स्थानीय भाषा में ढाक के नाम से जानी जाने वाली कला में महारत हासिल की, जिसमें एक पहलवान अपने प्रतिद्वंद्वी को पकड़कर जमीन पर गिरा देता है. इस कारण उन्हें पॉकेट डायनेमो कहा जाने लगा. केडी जाधव ने कई राज्य और राष्ट्रीय स्तर के खिताब जीते, और राजा राम कॉलेज में प्रतियोगिता जीतने के बाद, कोल्हापुर के महाराज उनसे इतने प्रभावित हुए कि उन्होंने लंदन में 1948 के ओलंपिक खेलों के लिए उनकी यात्रा को फंड किया. 

1948 में पहुंचे थे पहली बार ओलंपिक 
खाशाबा जाधव पहली बार 1948 में लंगन ओलंपिक पहुंचे, जहां वह छठे स्थान पर रहे. यह उनके लिए एक प्रभावशाली उपलब्धि थी. लेकिन जिसने हमेशा मिट्टी में खेल खेला हो, वह अचानक मैट देखकर हैरान रह गए और उनका अच्छा प्रदर्शन नहीं हो पाया. 1948 ओलंपिक से लौटने के बाद उन्होंने हेलसिंकी 1952 ओलंपिक की तैयारी शुरू कर दी. 

भारत में अपनी योग्यता साबित करने के बावजूद, केडी जाधव को शुरू में हेलसिंकी 1952 ओलंपिक के लिए दल में नहीं चुना गया था. केडी जाधव ने छह फीट से ज्यादा लंबे और मजबूत कद के राष्ट्रीय फ्लाईवेट चैंपियन निरंजन दास को लखनऊ में मिनटों के भीतर दो बार हराया था. लेकिन अधिकारी फिर भी नहीं माने, तो उन्होंने पटियाला के महाराजा को पत्र लिखा, और उन्होंने जाधव और दास के बीच तीसरी लड़ाई की व्यवस्था की. और एक बार फिर उन्होंने दास को हरा दिया. 

प्रिंसिपल ने घर को रखा गिरवी 
1952 ओलंपिक के लिए जाधव के सेलेक्शन के बाद भी उनकी परेशानी कम नहीं हुई. क्योंकि उनकी यात्रा को फंड करने वाला कोई नहीं थी. तब 27 वर्षीय केडी जाधव ने दर-दर भटककर गांव वालों से कुछ पैसे इकट्ठा किए और सबसे बड़ा योगदान उनके पूर्व प्रिंसिपल का था, जिन्होंने उन्हें 7,000 रुपये उधार देने के लिए अपना घर गिरवी रख दिया था.

लेकिन उनक मेहनत रंग लाई और जाधव ने इतिहास रचा. केडी जाधव व्यक्तिगत ओलंपिक पदक जीतने वाले पहले भारतीय बने. उन्होंने ब्रॉन्ज मेडल जीता और वह बहुत धूमधाम से घर वापस आए. जब वह वतन लौटे तो 100 से ज्यादा बैलगाड़ियों से उनका स्वागत किया गया. ओलंपिक पदक विजेता के रूप में घर लौटने के बाद जाधव ने उन सभी लोगों को चुकाना शुरू किया, जिन्होंने उन्हें पैसे उधार दिए थे. 

महाराष्ट्र पुलिस में दी सर्विसेज
कुश्ती के प्रति अपने जुनून को बरकरार रखते हुए जाधव 1955 में एक सब-इंस्पेक्टर के रूप में महाराष्ट्र पुलिस में शामिल हुए और 1956 में मेलबर्न ओलंपिक में जाने के लिए पूरी तरह तैयार थे, लेकिन घुटने की गंभीर चोट ने केडी जाधव की उम्मीदों पर पानी फेर दिया. हालांकि, केडी जाधव ने कभी-कभी पुलिस खेलों में भाग लिया और बल में कई पुलिसकर्मियों को ट्रेनिंग भी दी. वह लगन से महाराष्ट्र पुलिस के रैंक में आगे बढ़े और 1983 में सहायक आयुक्त के रूप में रिटायर हुए.

केडी जाधव की 1984 में एक मोटरसाइकिल सड़क दुर्घटना में मृत्यु हो गई और उन्हें 2001 में मरणोपरांत अर्जुन पुरस्कार से सम्मानित किया गया. 2010 राष्ट्रमंडल खेलों के दौरान उन्हें सम्मानित करने के लिए आईजीआई अखाड़े में कुश्ती रिंग को 'केडी जाधव स्टेडियम' नाम दिया गया था. जाधव भारतीय कुश्ती को वर्ल्ड मैप पर लाने वाले पहले एथलीट थे.