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हौसलों की उड़ान: दुकान चलाकर पिता ने बना दिया क्रिकेटर, आज हैं अंडर-19 क्रिकेट टीम में शामिल

क्रिकेटर के तौर पर सिद्धार्थ का सफर आठ साल की उम्र में शुरू हो गया था. अपने पिता के सपने को पूरा करने के लिए कड़ी मेहनत और त्याग की आवश्यकता थी. हर दोपहर श्रवण अपने बेटे को पास के मैदान में ले जाते थे और थ्रोडाउन देते थे कि सिद्धार्थ सीधे बल्ले से खेले.

Siddharth Yadav Siddharth Yadav
हाइलाइट्स
  • क्रिकेटर बनाना था पिता का सपना

  • सिद्धार्थ को सबसे पहले उत्तर प्रदेश की अंडर-16 टीम में चुना गया था

  • क्रिकेटर के तौर पर सिद्धार्थ का सफर आठ साल की उम्र में शुरू हो गया था

कहते हैं अगर हौसलों में उड़ान होती है तो मंजिल मिल ही जाती है. अब ऐसे ही गाजियाबाद के कोटगांव में रहने वाले सिद्धार्थ के हौसलों की उड़ान के चलते ही आज उन्हें देश का प्रतिनिधित्व करने के लिए चुना गया है. इनके पिता श्रवण यादव कोटगांव में एक छोटा-सा जनरल प्रोविजन स्टोर चलाते हैं. ओपनर बैट्समैन सिद्धार्थ को एशिया कप के लिए भारत की अंडर-19 टीम के लिए चुना गया है. आपको बता दें, हाल ही में जनवरी में होने वाले विश्व कप के लिए अंडर-19 क्रिकेट टीम का एलान किया गया है.

विरासत में मिला है क्रिकेट का जुनून 

सिद्धार्थ के पिता श्रवण यादव एक दुकानदार हैं. उन्होंने इंडियन एक्सप्रेस को बताया कि उनके बेटे को ये क्रिकेट का जुनून विरासत में मिला है. वे कहते हैं, “जब वह (सिद्धार्थ) छोटा था, तो उसे एक दिन क्रिकेट खेलते देखना मेरा सपना था. जब उसने पहली बार बल्ला पकड़ा तो वह बाएं हाथ से खड़ा था. इसपर मेरी मां ने कहा कि ये कैसा उल्टा खड़ा हो गया है. मैंने कहा कि उसका यही फॉर्मेट होगा, और वह तब से लेफ्ट-हैंडेड बैट्समैन है.”

क्रिकेटर बनाना था पिता का सपना 

क्रिकेटर के तौर पर सिद्धार्थ का सफर आठ साल की उम्र में शुरू हो गया था. अपने पिता के सपने को पूरा करने के लिए कड़ी मेहनत और त्याग की आवश्यकता थी. हर दोपहर श्रवण अपने बेटे को पास के मैदान में ले जाते थे और थ्रोडाउन देते थे कि सिद्धार्थ सीधे बल्ले से खेले. वे कहते हैं, "मैंने सुनिश्चित किया कि वो लगभग तीन घंटे तक ऐसा ही करे. मैंने दोपहर 2 बजे अपनी दुकान बंद कर दी थी और हम 6 बजे तक मैदान में ही रहे. फिर मैं दुकान पर वापस चला गया.”

सिद्धार्थ ने बताया कि उनकी दादी नहीं चाहती थीं कि वह क्रिकेट खेले, वे चाहती थी की सिद्धार्थ पढ़ाई पर ध्यान दे. दादी को लगता था कि यह जुए जैसा है. अगर कुछ नहीं हुआ, तो जिंदगी खराब हो जाएगी और वह आवारा हो जाएगा. लेकिन उनके पिता दृढ़ थे. यह उनका सपना था जिसे सिद्धार्थ को हर हाल में पूरा करना था.

कैसे हुई जर्नी की शुरुआत?

सिद्धार्थ को सबसे पहले उत्तर प्रदेश की अंडर-16 टीम में चुना गया था, और वह उस सीजन में राज्य के लिए एक दोहरा शतक और पांच शतक के साथ सर्वोच्च स्कोरर बने. फिर उन्हें जोनल क्रिकेट अकादमी के लिए चुना गया, और बाद में बेंगलुरु में राष्ट्रीय क्रिकेट अकादमी में चले गए.

कौन हैं टीम के दूसरे प्लेयर्स 

दरअसल, सिद्धार्थ की कहानी भी भारत के छोटे शहरों के कई अन्य लोगों की कहानी से अलग नहीं है. इन कहानियों में हिसार के विकेटकीपर बैट्समैन दिनेश बाना भी शामिल हैं. इनके साथ सहारनपुर के तेज गेंदबाज वासु वत्स और उस्मानाबाद के उनके नए जोड़ीदार राजवर्धन हंगरगेकर भी शामिल हैं.

टीम में कुछ प्लेयर्स के पास है स्पोर्टिंग डीएनए 

आपको बता दें, इस टीम में कुछ के पास स्पोर्टिंग डीएनए भी है. दिल्ली में जन्मे मुंबई के बल्लेबाज अंगकृष रघुवंशी के पिता अवनीश ने भारत के लिए टेनिस खेला है और मां मलिका ने वॉलीबॉल में देश का प्रतिनिधित्व किया है. बल्लेबाज हरनूर सिंह के पिता बीरिंदर सिंह पंजाब के अंडर-19 क्रिकेटर थे. ऑलराउंडर राज अंगद बावा के पिता सुखविंदर चंडीगढ़ में एक जाने-माने कोच हैं.

टीम के कैप्टन यश ढुल की फैमिली कभी भी उनके खेल को लेकर गंभीर नहीं थी. लेकिन उनके दिवंगत दादा जगत सिंह जो रिटायर्ड आर्मी पर्सन थे, उन्होंने उनका काफी साथ दिया. वहीं, बल्लेबाज कौशल तांबे के पिता महाराष्ट्र में असिस्टेंट पुलिस कमिश्नर हैं, और बंगाल के तेज गेंदबाज रविकुमार के पिता सीआरपीएफ असिस्टेंट सब-इंस्पेक्टर हैं.

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