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Paris Paralympics 2024: कभी पोलियो की वजह से उड़ाया जाता था मजाक, अब पैरालंपिक मेडल जीतकर बढ़ाई देश की शान, जानिए कौन हैं Mona Agarwal

मोना का जन्म एक ऐसे समाज में हुआ जहां बेटियों को तिरस्कार की नजरों से देखा जाता था. घर की तीसरी बेटी मोना को पोलियो हो जाने से उनकी चुनौतियों दोगुनी हो गईं. लेकिन ये तमाम चुनौतियां मोना का हौसला तोड़ने के लिए नाकाफी थींं.

Mona Aggarwal (Photo/PTI) Mona Aggarwal (Photo/PTI)

भारत की स्टार पैरा-शूटर अवनि लेखरा ने शुक्रवार को पेरिस पैरालंपिक्स 2024 में गोल्ड जीतकर इतिहास रच दिया. एसएच1 (SH1) एथलीट अवनि पैरालंपिक्स खेलों में लगातार दो बार गोल्ड जीतने वाली भारत की पहली महिला बनीं. लेकिन जब सारी तालियों और वाहवाहियों का रुख अवनि की तरफ था तब भारत की एक और बेटी उसी पोडियम पर अपनी कामयाबी का जश्न मना रही थी. मोना अग्रवाल ने पैरालंपिक्स में पहली बार सफलता का स्वाद चखते हुए 10 मीटर एयर राइफल (एसएच1) प्रतियोगिता में ब्रॉन्ज मेडल जीता था. 

पोलियो के बावजूद नहीं रुकी सपनों की उड़ान
राजस्थान के सीकर में जन्मी मोना के जीवन में चुनौतियों ने बहुत जल्दी ही दस्तक दे दी. महज नौ महीने की उम्र में उन्हें दोनों पैरों में पोलियो हो गया. हालांकि यह चुनौती न उन्हें शिक्षा हासिल करने से रोक पाई न ही एक एथलीट बनने से. आर्ट्स की डिग्री ले चुकी मोना इस समय लवली प्रोफेशनल यूनिवर्सिटी से डिस्टेंस लर्निंग के माध्यम से साइकोलॉजी (Psychology) में मास्टर्स डिग्री हासिल कर रही हैं. लेकिन मोना की चुनौतियां सिर्फ शारीरिक नहीं थीं. सामाजिक भी थीं. 

घर की तीसरी बेटी मोना का जन्म एक ऐसे समाज में हुआ जिसमें बेटियों को तिरस्कार की नजरों से देखा जाता था. पोलियो ने उनके परेशानियों को दोगुना कर दिया. इंडियन एक्सप्रेस की एक रिपोर्ट के अनुसार, मोना के पति रवींद्र चौधरी बताते हैं, "जब उनका (मोना का) जन्म हुआ था तो जमाना आज जैसा नहीं था. लोग बेटी के जन्म को बुरा मानते थे. उन्हें पोलियो हो गया, जिसके बाद रिश्तेदार और बड़े-बूढ़े उन्हें और बेदिली से देखने लगे. हालांकि जैसे-जैसे उसने तरक्की की, रिश्तेदारों और बड़े-बूढ़ों ने ये सब चीजें भुला दीं." 

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इस नकारात्मकता को पीछे छोड़ जीवन में अपनी राह बनाना मोना के लिए किसी पहाड़ को काटने से कम नहीं था. मोना ने महज 23 साल की उम्र में अपना घर छोड़कर एक आत्मनिर्भर जिन्दगी जीने का फैसला किया. मोना ने पाया कि खेल उनका यह सपना साकार कर सकते हैं. साल 2016 में पैरा-एथलेटिक्स की ओर रुख करने वाली मोना ने शॉट पुट, डिस्कस थ्रो और जैवलिन थ्रो जैसे खेलों में अपना जौहर दिखाया. इसके बाद उन्होंने पैरा-पावरलिफ्टिंग (Para-Powerlifting) में भी राज्य स्तर पर अपना हाथ आजमाया. 

इस सब विधाओं में कई मेडल जीतने वाली मोना ने राजस्थान की राज्य टीम को राष्ट्रीय सिटिंग वॉलीबॉल में गोल्ड भी जिताया था. उन्हें एक अंतरराष्ट्रीय टूर्नामेंट के लिए चुना गया लेकिन प्रेगनेंसी के कारण वह इस टूर्नामेंट में हिस्सा नहीं ले सकीं. 

2021 में चुनी राइफल शूटिंग
मोना ने दिसंबर 2021 में खेलों की ओर वापसी की और इस बार कोई ऐसा खेल चुनने का फैसला किया जो जिसमें वह अकेले भारत का प्रतिनिधित्व कर सकें. उन्होंने राइफल शूटिंग को चुना. इस खेल में भी उनकी प्रतिभा शुरू से ही साफ रही. राष्ट्रीय चैंपियनशिप 2022 में सिल्वर मेडल जीतने के बाद मोना ने अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर दस्तक की. साल 2023 में अपना पहला वर्ल्ड कप खेलते हुए उन्होंने मिश्रित टीम इवेंट में ब्रॉन्ज मेडल हासिल किया. साथ ही वह पैरा एशियन गेम्स में छठे स्थान पर भी रहीं. 

फिर आया मार्च 2024. राष्ट्रीय राजधानी नई दिल्ली में आयोजित हुए पैरा शूटिंग वर्ल्ड कप में मोना ने न सिर्फ गोल्ड मेडल जीता, बल्कि नया एशियन रिकॉर्ड बनाते हुए पेरिस पैरालंपिक्स के लिए क्वालीफाई भी किया. दिल्ली में आयोजन खत्म होने से पहले मोना ने आदित्य गिरी के साथ मिलकर मिश्रित टीम एयर राइफल (एसएच1) में सिल्वर मेडल भी जीता. एक महीने बाद कोरिया में हुए पैरा शूटिंग वर्ल्ड कप में उन्होंने एक और बार गोल्ड पर निशाना लगाया. 

मोना ने 37 साल की उम्र में पैरालंपिक मेडल जीतकर न सिर्फ उन्हें कम आंकने वालों को गलत साबित किया है, बल्कि आने वाली कई पीढ़ियों के लिए मिसाल भी कायम की है. रवींद्र कहते हैं, "मोना को पैरालंपिक्स में ब्रॉन्ज मेडल जीतते देखना उनके जीवन के सबसे बड़े मौकों में से एक है. उन्होंने दिखाया है कि उनके जैसी लड़कियां समाज के लिए और पूरे खेल समुदाय के लिए एक मिसाल बन सकती हैं."