मेजर ध्यानचंद को हॉकी के क्षेत्र में सबसे महान खिलाड़ियों में से एक माना जाता है. वह भारतीय हॉकी खिलाड़ी थे और अपने गोल स्कोरिंग कारनामों के लिए जाने जाते थे. उन्होंने 1928, 1932 और 1936 में तीन ओलंपिक स्वर्ण पदक जीते, उस समय हॉकी में भारत का ओलंपिक में दबदबा था.
ध्यानचंद 17 साल की उम्र में सेना में शामिल हो गए थे और उसी साल उन्हें सेना के लिए खेलने के लिए चुना गया. उनके ड्रिब्लिंग कौशल के कारण उनका 1926 में न्यूजीलैंड दौरे के लिए सेलेक्शन हुआ. उनकी टीम ने 21 में से 18 मैच जीते.
ओलंपिक में चमकाया भारत का नाम
ध्यानचंद के नेतृत्व में भारत ने 1928 में हॉकी में ओलंपिक में डेब्यू किया. उन्होंने 14 गोल के साथ स्वर्ण पदक जीता. भारत ने 1932 में मेजबान टीम के खिलाफ 24-1 से जीत हासिल करके फिर से ओलंपिक स्वर्ण जीता, जहां मेजर ध्यानचंद ने 12 गोल किए.
1936 का ओलंपिक उनके करियर में एक मील का पत्थर था. प्रैक्टिस मैचों में जर्मनी से हारने के बाद उन्होंने टीम को जर्मनी (8-1) के खिलाफ जीत दिलाई. हिटलर ने उनसे जर्मनी के लिए खेलने के लिए भी कहा, लेकिन मेजर ध्यानचंद ने बहुत विनम्रता के साथ इस प्रस्ताव को अस्वीकार कर दिया.
क्या हॉकी स्टिक में लगी थी चुंबक?
ध्यानचंद के जादुई कौशल के कारण दूसरे क्षेत्रों से भी लोग उनके मैच देखने आते थे. गेंद पर उनका असाधारण नियंत्रण अक्सर अधिकारियों और भीड़ को आश्चर्यचकित कर देता था. बहुत से लोगों को लगता था कि क्या उनकी हॉकी स्टिक में चुंबक लगी है जो गेंद उनकी हॉकी से दूर ही नहीं होती है.
उनका कौशल ऐसा था कि नीदरलैंड में एक मैच के दौरान बताया गया कि अधिकारियों ने उनकी हॉकी स्टिक को चेक किया गया कि अंदर कोई चुंबक है या नहीं. लेकिन ऐसा कुछ नहीं मिला. ध्यानचंद का जादू ऐसा था कि विदेशों में भी उनके चर्चे थे. बर्लिन में एक बार हर जगह पोस्टर लगाए गए थे कि भारतीय जादूगर ध्यानचंद को एक्शन में देखने के लिए हॉकी स्टेडियम जाएं.
पद्म भूषण पाने वाले एकमात्र हॉकी खिलाडी
1951 में कैप्टन ध्यानचंद को नेशनल स्टेडियम में ध्यानचंद टूर्नामेंट से सम्मानित किया गया था. वह 1956 में 51 साल की उम्र में सेना से मेजर के पद से सेवानिवृत्त हुए. सरकार ने उन्हें 1956 में तीसरे सबसे बड़े नागरिक पुरस्कार, पद्म भूषण से सम्मानित किया. वह ऐसा सम्मान पाने वाले एकमात्र हॉकी खिलाड़ी हैं.
खेलों में आजीवन उपलब्धि के लिए भारत का सर्वोच्च पुरस्कार उनके नाम पर रखा गया. 2002 से, ध्यानचंद पुरस्कार उन खिलाड़ियों को दिया जाता है जो खेल में अभूतपूर्व योगदान देते हैं. उनकी महान विरासत जीवित है.