scorecardresearch

Neeraj Chopra won javelin silver: गांव से ओलंपिक तक.... जानिए कैसे एक जॉइंट फैमिली ने पहुंचाया अपने बेटे को अर्श तक, हर कदम पर बने नीरज की ताकत

भारतीय जेवलिन थ्रो एथलीट नीरज चोपड़ा ने 2024 पेरिस ओलंपिक में सिल्वर जीतकर अपना नाम इतिहास में दर्ज करा लिया है. 1997 में हरियाणा के पानीपत में जन्मे चोपड़ा की एक छोटे से गांव से ग्लोबल आइकन बनने का सफर आसान नहीं था. जानिए उनका परिवार कैसे उनके इस सफर में उनकी ताकत बनक खड़ा रहा है.

Neeraj Chopra won silver in Paris Olympic 2024 (Photo: X.com) Neeraj Chopra won silver in Paris Olympic 2024 (Photo: X.com)

भारत के स्टार एथलीट नीरज चोपड़ा ने 9 अगस्त, 2024 को अपना लगातार दूसरा ओलंपिक पदक जीतकर इतिहास रच दिया. टोक्यो ओलंपिक 2020 में स्वर्ण पदक जीतने वाले नीरज चोपड़ा ने इस बार 2024 पेरिस ओलंपिक में रजत पदक जीता. नीरज भले हा इस बार पेरिस ओलंपिक में स्वर्ण पदक पाने से चूक गए, लेकिन उन्होंने खुद को टॉप 3 में रखकर देश का मान बढ़ाया है. 

यह नीरज चोपड़ा की सालों की कड़ी मेहनत, समर्पण और उनके संयुक्त परिवार का लगातार सपोर्ट का नतीजा है जो आज वह इस मुकाम पर खड़े हैं. आज हम आपको बता रहे हैं कि कैसे नीरज चोपड़ा के माता-पिता के साथ-साथ उनके चाचाओं और दूसरे परिवारजनों ने उनकी हरियाणा के एक छोटे से गांव से निकलकर ओलंपिक जैसे इंटरनेशनल मंच तक पहुंचने में मदद की. 

पूरे परिवार के लाड़ले हैं नीरज 
चोपड़ा परिवार के सबसे बड़े पोते, नीरज चोपड़ा का जन्म 24 दिसंबर 1997 को हरियाणा के पानीपत जिले के खंडरा गांव में सतीश चोपड़ा और सरोज देवी के घर हुआ था. किसानों के परिवार में जन्मे, नीरज ने अपने बचपन के दिन 19 सदस्यों के एक संयुक्त परिवार में बिताए, जिसमें उनके तीन चाचा- सुरिंदर, भीम और सुल्तान शामिल हैं. घर के सबसे बड़े बच्चे होने के कारण नीरज को पूरे परिवार का लाड़-प्यार मिला. 

सम्बंधित ख़बरें

नीरज इतने लाड़-प्यार में पले-बढ़े कि बचपन में उनका वजन बढ़ने लगा. इसे देखकर उनके चाचा सुरिंदर चोपड़ा ने उनकी फिटनेस पर काम शुरू कराया. पहले उन्होंने नीरज को जिम भेजा पर जब जिम बंद हो गया तो वे खुद उन्हें वर्कआउट कराने के लिए पानीपत के शिवाजी स्टेडियम में लेकर गए. जल्द ही, नीरज को भी वर्कआउट करने में मजा आने लगा और यहीं पर पहली बार उनकी रिश्ता जेवलिन से जुड़ा. 

पढ़ाई से ज्यादा खेल पर दिया ध्यान 
जेवलिन वह खेल है जिसने नीरज के जीवन को हमेशा के लिए बदल दिया. नीरज ने एक मीडिया इंटरव्यू में बताया था कि उनकी जिंदगी में उनके चाचाओं ने बहुत अहम भूमिका निभाई है. नीरज के परिवार से कोई भी स्पोर्ट्स में नहीं थी, वह किसान परिवार से हैं और परिवार में सबसे बड़े पोते हैं. उन्हें खूब लाड़-प्यार मिला लेकिन किसान परिवार में बड़े बेटे का मतलब जिम्मेजदारियां भी होता है. हालांकि, नीरज के परिवार ने कभी इन जिम्मेदारियों को उनके पैरों की बेड़ियां नहीं बनने दिया. 

जेवलिम में नीरज की रुचि को देखकर उनके पूरे परिवार ने उन्हें आगे बढ़ने का हौसला दिया. उन्होंने सबसे पहले नीरज के टैलेंट पर भरोसा दिखाया. पानीपत स्टेडियम में नीरज की मुलाकात जयवीर से हुई, जिन्होंने नीरज को भाला फेंकना सिखाया था. जयवीर आज उनके बड़े भाई और परिवार के सदस्य की तरह हैं. जयवीर ने 13 साल के नीरज को जेवलिन थ्रो सिखाना शुरू किया था. लेकिन इसके कुछ दिन में ही जयवीर जालंधर चले गए और नीरज की प्रैक्टिस रुक गई. 

14 साल की उम्र में, परिवार ने नीरज को पंचकुला भेजा जहां नीरज ने पहली बार ताऊ देवी लाल स्पोर्ट्स कॉम्प्लेक्स में सिंथेटिक ट्रैक पर अभ्यास किया और कोच नसीम अहमद के अंडर प्रैक्टिस करने लगे. जैसे ही नीरज की खेल में रुचि बढ़ी और उन्होंने इसे प्रोफेशनल तौर से आगे बढ़ाना शुरू कर दिया, तो उनकी पढ़ाई पर असर पड़ने लगा. तब उनके परिवार ने आम मिडिल क्लास फैमिली की तरह उनका खेल छुड़वाने की बजाय उनका दाखिला एक ओपन स्कूल में करा दिया ताकि उनके खेल में कोई रुकावट न हो. एक किसान परिवार के लिए यह फौसला बहुत बड़ा रहा होगा क्योंकि ज्यादातर परिवार अपने बच्चों को पढ़ा-लिखाकर नौकरी करवाना चाहते हैं पर नीरज के परिवार ने उनकी खुशी और जुनून को चुना. 

आज भी जुड़े हैं अपनी जड़ों से 
नीरज का पूरा परिवार उनकी सफलता की वजह है क्योंकि उन्होंने ही नीरज को सही समय पर सही दिशा में आगे बढ़ाया.नीरज के गौरवान्वित पिता सतीश चोपड़ा ने 2021 में मीडिया को बताया जब नीरज चोपड़ा ने 2020 टोक्यो ओलंपिक में अपना पहला स्वर्ण पदक जीता था, तो यह उनके पूरे परिवार की जीत थी. नीरज की मां सरोज देवी भी उनके लिए निरंतर आगे बढ़ने स्रोत रही हैं. प्रैक्टिस और खेलों के चलते नीरज को घर पर बिताने के लिए बहुत अधिक समय नहीं मिलता है - लेकिन उनकी मां, कभी शिकायत नहीं करती हैं और हमेशा उनका हौसला बढ़ाती हैं. 

पेरिस ओलंपिक में सिल्वर जीतने पर भी उनकी मां ने खुशी जताई और कहा कि वह खुश हैं. उनके बेटे ने देश का नाम रोशन किया है. साथ ही, उन्होंने कहा कि उन्हें नदीम के गोल्ड जीतने पर कोई निराशा नहीं है वह भी उनके बच्चे की तरह ही है और मेहनत कर रहा है. उनके परिवार का जमीन से जुड़ा होना नीरज के व्यक्तित्व में भी झलकता है. वह हमेशा सबसे साथ बहुत ही विनम्रता से बात करते हैं और साथ ही, खेल भावना को मन में रखकर आगे बढ़ रेह हैं.  

परिवार नहीं जाता उनका कंप्टीशन देखने 
साल 2020 टोक्यो ओलंपिक से लौटने के बाद, नीरज ने अपना स्वर्ण पदक उतारकर नई दिल्ली के इंदिरा गांधी अंतर्राष्ट्रीय (आईजीआई) हवाई अड्डे पर माता-पिता से मिलते समय पहले अपनी मां सरोज और फिर अपने पिता के गले में डाल दिया था. यह उनकी अपने माता-पिता और परिवार के सालों की मेहनत को श्रद्धांजलि दी. आपको बता दें कि चोपड़ा परिवार का एक अघोषित नियम है कि वे नीरज की प्रतियोगिताओं को देखने नहीं जाते हैं, उन्हें लगता है कि परिवार के आसपास होने पर कहीं वह अपने लक्ष्य से भटक न जाएं. नीरज की दो छोटी बहनें भी हैं- संगीता और सविता. उनके पूरे परिवार को नीरज पर गर्व है.