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हौसले को सलाम! एक पैर से क्रिकेट खेलते हैं राजा बाबू, पहले ही टूर्नामेंट में मारे थे 70 छक्के, ई-रिक्शा चलाकर करते हैं गुजारा

नोएडा के रहने वाले राजा बाबू एक दिव्यांग क्रिकेटर हैं जिनके खेल के लाखों लोग दीवाने हैं. राजा बाबू ने अपना एक पैर गंवाने के बाद भी क्रिकेट खेलने की हिम्मत दिखाई और लोगों के बीच अपनी पहचान बनाई.

Raja babu Raja babu
हाइलाइट्स
  • एक हादसे में राजा बाबू ने 8 साल की उम्र में अपना एक पैर गंवाया

  • अपने पहले क्रिकेट टूर्नामेंट में राजा ने 70 छक्के मारे थे

हालात कई बार इंसान को ऐसे मोड़ पर ले आते हैं कि उसे जिंदगी बहुत मुश्किल दिखाई पड़ती है. लेकिन असल में यही वह मोड़ होता है जहां से आपके हौसलों की परीक्षा शुरू होती है. अगर यहां हार गए तो सब खत्म और अगर यहां से आगे बढ़ गए तो आसमान हासिल कर सकते हैं. और एक पैर से दिव्यांग राजा बाबू ने आसमान छूने की ठानी है. 

ई रिक्शा चलाकर जीवनयापन करने वाले राजा मौका मिलते ही बल्ला चलाने लगते हैं. क्रिकेट के प्रति उनके प्यार को जीवन में आई बड़ी से बड़ी मुश्किल भी कम नहीं कर पाई है. Good News Today से बात करते हुए राजा बाबू ने बताया कि साल 1997 में कानपुर में उन्होंने एक हादसे में अपना एक पैर गंवा दिया था. 

एक पैर से खेलते हैं क्रिकेट
8 साल की उम्र में उनका एक पैर कट गया था. जिसके बाद जीवन आसान नहीं रहा. उनके घरवाले में उन्हें कमरे से बाहर निकालकर बरामदे में बैठा दिया करते थे. वहां से गली में बच्चों को क्रिकेट खेलते हुए देख उनका भी बल्ला पकड़े का मन करता था. दौड़ने की उम्र में राजा बाबू ने अपना एक पैर खो दिया. 

घर पर रहते तो पड़ोसी और रिश्तेदारों ने कहना शुरू कर दिया कि ऐसे जीने से तो अच्छा है कि इसे मर जाना चाहिए. स्कूल में बच्चों ने लंगड़ा बोलकर चिढ़ाया. एक पैर के साथ खेल के मैदान में भी उनकी एंट्री आसान नहीं थी. पर यह उनके मन का हौसला ही था कि आज वह अपने आसपास क्रिकेटर्स की बिरादरी में बेहद फेमस है. 

दिव्यांग क्रिकेट में उनके हुक और पुल शॉट के चर्चे हैं. दिव्यांगों के साथ-साथ वह हर तरह से परिपूर्ण लोगों के साथ भी खेलते हैं. 

पहले क्रिकेट टूर्नामेंट में मारे 70 छक्के
राजा बाबू बताते हैं कि जब उन्हें पहली बार क्रिकेट टूर्नामेंट में खेलने का मौका मिला तो उन्होंने 5 मैचों में 70 छक्के मारे. उन्हें 'मैन ऑफ द मैच,' मैन ऑफ द सीरीज' और 'बेस्ट बैट्समैन' सहित पांच अवार्ड मिले. राजा बाबू कहते हैं कि एक बार उनकी क्रिकेट खेलने की जर्नी शुरू हुई तो फिर उन्होंने पीछे मुड़कर नहीं देखा. 

वह बताते हैं कि एक बार तो टूंडला में बड़ी मुश्किल से उनकी दिव्यांग टीम को एक टूर्नामेंट में एंट्री मिली. वह टूर्नामेंट नॉर्मल क्रिकेटर्स के लिए था लेकिन पहले ही मैच में उन्होंने बरेली की टीम को हरा दिया और पूरे इलाके में हल्ला हो गया. वह आगे कहते हैं कि अमूमन जुम्मे के दिन उस पूरे इलाके में सन्नाटा होता था. लेकिन उसी दिन उनका मैच था जिसे देखने के लिए पूरा इलाका मैदान में पहुंच गया था. पुलिस को व्यवस्था संभालने के लिए पीएसी तक बुलानी पड़ी थी. 

चलाते हैं ई-रिक्शा 
राजा बाबू के खेल से खुश होकर एक बड़ी कंपनी ने उन्हें यह ई रिक्शा दिया था. यही ई-रिक्शा राजा बाबू के रोजगार का साधन है. हालांकि, वह बताते हैं कि कोरोना के पहले उन्होंने अपनी गाड़ी में नई-नई बैटरी लगवाई थी. जिसके लिए उन्होंने 28000 का लोन लिया था. लेकिन बैटरी लगने से 2 दिन बाद ही लॉक डाउन लग गया. इससे उनकी गाड़ी 2 महीने तक खड़ी रही और उसकी नई बैटरी खराब हो गई.

हालांकि, बहुत से लोग राजा बाबू के खेल से बहुत प्रभावित थे उन्होंने उनकी बहुत मदद की. वरुण शर्मा और अमित कुमार खेल एकेडमी चलाते हैं और वह राजा बाबू के लिए हमेशा मौजूद रहते हैं. चाहे वह खेल का मैदान हो या फिर राजा बाबू की निजी जिंदगी. वरुण शर्मा उर्फ बंटी भैया का कहना है कि वह राजा बाबू को 7-8 साल से जानते हैं. कई बार उनका गेम देखकर लगता था कि दो टांग वाले भी ऐसा नहीं खेल पाते. 

बेटे को देखना चाहते हैं क्रिकेट टीम में 
राजा बाबू कहते हैं कि उन्होंने क्रिकेट के लिहाज से अब तक लगभग सब कुछ हासिल किया है. लेकिन किसी ने भी उनके टैलेंट को पहचान नहीं दी. वह सरकार से सरकारी नौकरी की अपील नहीं करते हैं, लेकिन यह मांग जरूर करते हैं कि उन्हें कम से कम किसी सरकारी विभाग में कैंटीन चलाने की इजाजत दे दी जाए. 

राजा बाबू कहते हैं कि वह अपने क्रिकेट की विरासत अब अपने बेटे को सौंप रहे हैं और वह चाहते हैं उनका बेटा बीसीसीआई के लोगो वाली टी-शर्ट पहने.