इस साल ओलंपिक खेलों का 33वां संस्करण फ्रांस की राजधानी पेरिस में होने वाला है. कुल 200 देशों के 10,500 एथलीट 329 मेडल इवेंट्स में हिस्सा लेंगे. भारत भी इस बार 10 से ज्यादा पदक जीतने का लक्ष्य बनाकर पेरिस में इतिहास रचना चाहता है. लेकिन यह बहुत कम लोग जानते हैं कि भारत ने ओलंपिक में अपना पहला मेडल करीब 100 साल पहले इसी शहर में जीता था. यह मेडल जीतने वाले शख्स की न मां हिन्दुस्तानी थीं, न ही पिता. लेकिन इन्होंने एथलेटिक्स में दो सिल्वर मेडल जीतकर ओलंपिक में भारत का खाता खोला था. आइए जानते हैं कौन थे नॉर्मन प्रिचर्ड.
कलकत्ता के प्रिचर्ड ने एथलेटिक्स को बनाया करियर
नॉर्मन गिलबर्ट प्रिचर्ड के जन्म की तारीख पर तो एकराय नहीं है, लेकिन इस बात पर सभी के बीच सहमति है कि उनकी पैदाइश कोलकाता शहर में हुई थी. न्यूयॉर्क टाइम्स के एक आर्टिकल के अनुसार, नॉर्मन का परिवार चाय, जूट और नील के खेतों का मालिक था, जो 500 एकड़ में फैले हुए थे.
नॉर्मन की काबिलियत रग्बी और फुटबॉल जैसे खेलों तक फैली हुई थी. हालांकि उन्होंने पेरिस ओलंपिक 1900 में भारत का प्रतिनिधित्व एथलेटिक्स में किया. ओलंपिक्स की वेबसाइट बताती है कि प्रिचर्ड ने 200 मीटर दौड़ और 200 मीटर बाधा दौड़ में दूसरा स्थान हासिल कर भारत के लिए दो सिल्वर मेडल जीते थे. ओलंपिक में अपना अगला मेडल जीतने के लिए भारत को 1928 ओलंपिक तक का इंतजार करना पड़ा था. भारतीय पुरुष हॉकी टीम ने 28 साल का सूखा खत्म कर भारत के लिए गोल्ड मेडल जीता था.
भारत-इंग्लैंड के बीच बंटे रहे 'अंग्रेज' प्रिचर्ड
नॉर्मन प्रिचर्ड के ओलंपिक मेडल हमेशा विवादों में रहे. ब्रिटेन और भारत दोनों ने दावा किया है कि प्रिचर्ड ने 1900 के ओलंपिक में उनके लिए प्रतिस्पर्धा की थी. ब्रिटिश ओलंपिक इतिहासकारों के प्रमुख इयान बुकानन का कहना है कि प्रिचर्ड एक पुराने औपनिवेशिक परिवार के सदस्य थे. भले ही उनका जन्म भारत में हुआ था लेकिन थे वह ब्रिटिश ही.
दूसरी ओर, भारतीय ओलंपिक इतिहासकार गुलु एज़ेकील का कहना था कि प्रिचर्ड का जन्म भी भारत में हुआ और वह कई वर्षों तक रहे भी यहीं. प्रिचर्ड दरअसल सन् 1900 की गर्मियों में इंग्लैंड गए और जून में लंदन एथलेटिक्स सोसायटी के सदस्य चुने गए. उन्होंने यहां एएए (अमैच्योर एथलेटिक्स एसोसिएशन) चैंपियनशिप में भाग लिया. इस आयोजन में वह लंदन एसी और बंगाल प्रेसीडेंसी एसी दोनों के सदस्य रहे, जिससे भ्रम और बढ़ गया.
सन् 1900 एएए चैंपियनशिप के नतीजों के आधार पर पेरिस ओलंपिक 1900 के लिए प्रिचर्ड को चुना गया था. बुकानन लिखते हैं कि पेरिस में उन्हें एएए टीम के सदस्य के रूप में सूचीबद्ध किया गया है. न्यूयॉर्क टाइम्स की एक रिपोर्ट भी उन्हें 'अंग्रेज' बुलाती है. हालांकि अंतरराष्ट्रीय ओलंपिक एसोसिएशन (IOA) प्रिचर्ड के मेडलों को भारत के खाते में ही रखती है.
किया था हॉलीवुड का रुख
नॉर्मन कुछ साल बाद लंदन जाकर रहने लगे. यहां इत्तेफाक से उनकी मुलाकात अंग्रेजी कलाकार चार्ल्स विन्डहम (Charles Wyndham) से हुई. विन्डहम ने उन्हें थिएटर में एक किरदार निभाने का प्रस्ताव दिया. 'द स्ट्रॉन्गर सेक्स' में निभाया गया यह किरदार हिट हुआ और देखते ही देखते उन्होंने 1913 लंदन में अपना थिएटर खोल लिया. नॉर्मन की सफलता इतनी खास थी कि न्यूयॉर्क टाइम्स ने 1917 में उन जीवन के ऊपर दो आर्टिकल लिखे.
इस सफलता के बाद नॉर्मन का हॉलीवुड रुख करना लाजमी था. आईएमडीबी की वेबसाइट के अनुसार, नॉर्मन ने 'नॉर्मन ट्रेवर' नाम के साथ अपने करियर में कुल 28 फिल्में कीं. उनकी आखिरी फिल्म 1929 में टुनाइट एट ट्वेल्व (Tonight at Twelve) के नाम से रिलीज हुई.
52 की उम्र में हुआ निधन
नॉर्मन ने एथलेटिक्स से लेकर सिनेमा तक, अपने जीवन में दो अलग-अलग विधाओं का शिखर चूमा और एक ग्लोबल स्टार भी बन गए. हालांकि अपने जीवन के आखिरी दिनों में विलासिता और शोहरत उनके साथ नहीं रहीं. इंटरनेशनल ओलंपिक एसोसिएशन की आधिकारिक वेबसाइट बताती है कि नॉर्मन ने कैलिफोर्निया के किसी पागलखाने का चक्कर लगाते हुए अपनी आखिरी सांसें लीं. यह अंदाजा लगाया जाता है कि उनका निधन दिमाग की किसी बीमारी से हुआ जिसकी जानकारी उस समय तक विज्ञान को नहीं थी.