उत्तराखंड के चमोली जिले के गोपेश्वर कस्बे के पास स्थित छोटे से खल्ला गांव के निवासी 23 वर्षीय परमजीत सिंह बिष्ट पेरिस ओलंपिक में पुरुषों की 20 किमी रेस वॉक में 1 अगस्त को भारत का प्रतिनिधित्व करेंगे. परमजीत से लोगों को बड़ी उम्मीदें हैं. हालांकि, ओलंपिक तक पहुंचने का उनका सफर बिल्कुल भी आसान नहीं था.
परमजीत को अक्सर अपने गांव की सड़कों पर रेस वॉक प्रैक्टिस करते समय लोगों की बातों का सामना करना पड़ा. दरअसल, इस रेस वॉक के लिए वॉक का स्टाइल एकदम अलग होता है और जब उनके पड़ोसी और दोस्त उन्हें इस तरह चलते देखते थे तो उनका मजाक बनाते थे.
लोगों ने बनाया वॉकिंग स्टाइल का मजाक
टाइम्स ऑफ इंडिया से बात करते हुए परमजीत ने बताया कि लोग अक्सर उन पर हंसते थे और कहते थे 'ये क्या मटक-मटक कर चल रहा है.' क्योंकि गांव के लोग नहीं जानते थे कि यह एक ग्लोबल लेवल पर मान्यता-प्राप्त खेल है. गांव वालों से बचने के लिए, परमजीत प्रैक्टिस के समय पहले यह देखते थे कि आसपास कोई है तो नहीं.
परमजीत नौवीं क्लास में थे जब इस खेल में उनकी दिलचस्पी बढ़ी. उनके पीटी टीचर, गोपाल सिंह बिष्ट ने उन्हें स्कूल के वार्षिक खेल दिवस में वॉक इवेंट में भाग लेने के लिए कहा क्योंकि इसमें सबसे कम प्रतिभागी थे. उनकी बात मानकर परमजीत ने यह रेस वॉक करना शुरू किया. इसके बाद अपनी मेहनत और लगन के दम पर उन्होंने जूनियर और सीनियर नेशनल्स में पदक जीते और अंतरराष्ट्रीय आयोजनों में हिस्सा लिया.
बना चुके हैं U-17 और U-19 का रिकॉर्ड
परमजीत ने स्कूल गेम्स फेडरेशन ऑफ इंडिया द्वारा आयोजित पांच किलोमीटर वॉक में अंडर-17 और अंडर-19 का राष्ट्रीय रिकॉर्ड बनाया है. साल 2022 में, खेल कोटा के तहत वह नेवी में बतौर सीनियर सेकेंडरी रिक्रुट शामिल हुए. आपको बता दें कि परमजीत सिंह बिष्ट के पिता, जगत सिंह बिष्ट गांव में किराने की दुकान चलाते हैं. उनका कहना है कि उन्होंने कभी नहीं सोचा था कि उनका बेटा ओलंपिक में देश का नाम रोशन करेगा. उसकी मेहनत और लगन ने सबको गर्वित किया है.
बिष्ट का सफर उन सभी युवाओं के लिए प्रेरणा है जो छोटे गांवों से आकर बड़े सपने देखते हैं. उनके संघर्ष और मेहनत की कहानी से यह साबित होता है कि अगर मन में सच्ची लगन हो तो कोई भी मंजिल पाना मुश्किल नहीं है. पेरिस ओलंपिक में परमजीत का पहुंचना न सिर्फ उनके परिवार बल्कि पूरे देश के लिए गर्व की बात है.