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Asian Games में भारत की बेटियों ने रचा इतिहास, पारुल और अन्नू ने जीता गोल्ड, एक खेत में दौड़ लगा करती थीं प्रैक्टिस तो दूसरी ने गन्ने का भाला बना किया अभ्यास

Asian Games 2023 में मेरठ की दो बेटियों ने कमाल कर दिया. पारुल चौधरी ने जहां पांच हजार मीटर की दौड़ में स्वर्ण पदक जीता तो वहीं, भाला फेंक प्रतियोगिता में अन्नू रानी ने गोल्ड मेडल पर कब्जा जमाकर देश का मान बढ़ाया.

पारुल चौधरी और अन्नू रानी (फोटो सोशल मीडिया) पारुल चौधरी और अन्नू रानी (फोटो सोशल मीडिया)
हाइलाइट्स
  • पारुल ने 15 मिनट 14.75 सेकेंड के समय के साथ गोल्ड मेडल जीता

  • अन्नू ने 62.92 मीटर भाला फेंक सोने पर जमाया कब्जा

चीन के हांगझोउ में खेले जा रहे एशियाई खेलों में भारत का शानदार प्रदर्शन देखने को मिल रहा है. 10वें दिन मंगलवार को भारत की दो बेटियों ने इतिहास रच दिया. भारत की स्टार एथलीट्स में से एक पारुल चौधरी ने जहां 5000 मीटर महिलाओं की रेस में गोल्ड मेडल जीता तो वहीं, भाला फेंक प्रतियोगिता में अन्नू रानी ने स्वर्ण पदक अपने नाम किया. दोनों खिलाड़ियों की संघर्ष की कहानी किसी फिल्म से कम नहीं है. एक खेत में दौड़ लगा प्रैक्टिस करतीं थी तो दूसरी गन्ने का भाला बनाकर अभ्यास करती थीं. आइए आज इन दोनों खिलाड़ियों के बारे में जानते हैं.

अन्नू भाला फेंक में गोल्ड मेडल जीतने वाली पहली भारतीय महिला 
एशियन गेम्स में अन्नू ने 3 अक्टूबर 2023 को भाला फेंक स्पर्धा में पहला स्थान हासिल किया. अपने चौथे प्रयास में सीजन का सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शन करते हुए उन्होंने 62.92 मीटर भाला फेंका. श्रीलंका की नदीशा दिलहान ने रजत पदक जीता. 'जेवलिन क्वीन' के नाम से पहचानी जाने वाली अन्नू भाला फेंक में गोल्ड मेडल जीतने वाली पहली भारतीय महिला बन गईं हैं.

संघर्ष और कड़ी मेहनत के दम पर यहां तक पहुंचीं
अन्नू रानी मेरठ के सरधना क्षेत्र के बहादुरपुर गांव की रहने वाली हैं. अन्नू के एशियन गेम्स में गोल्ड जीतने पर गांव और शहर में जश्न का माहौल है. अन्नू ने गांवों की पगडंडियों पर खेलते और गन्ने को भाला बनाकर प्रैक्टिस की हैं. अन्नू एक दिन ओलंपिक, राष्ट्रमंडल खेलों और एशियाई खेलों में देश का प्रतिनिधित्व करेंगी, यह शायद ही किसी ने सोचा था. अपने संघर्ष और कड़ी मेहनत के दम पर उन्होंने यह कर दिखाया.

चोरी-छिपे करती थीं अभ्यास
अन्नू रानी तीन बहन व दो भाइयों में सबसे छोटी हैं. उनके सबसे बड़े भाई उपेंद्र कुमार धावक थे और विश्वविद्यालय स्तर की प्रतियोगिताओं में हिस्सा भी ले चुके हैं. बड़े भाई के साथ अन्नू रानी ने भी खेल में रुचि दिखाई और सुबह चार बजे उठकर गांव में ही रास्तों पर दौड़ने जाया करती थीं. कई बार पिता ने अन्नू के खेल में दिलचस्पी नहीं दिखाई. अन्नू चोरी-छिपे से अभ्यास करती थीं.

जब भाई ने बहन के लिए किया त्याग 
अन्नू की खेल में रुचि देख बड़े भाई उपेंद्र ने उन्हें गुरुकुल प्रभात आश्रम जाने के लिए कहा. घर से करीब 20 किलोमीटर दूर होने के कारण अन्नू भाला फेंक का अभ्यास करने के लिए सप्ताह में तीन दिन गुरुकुल प्रभात आश्रम के मैदान में जाती थीं. अन्नू के परिवार की आर्थिक स्थिति ऐसी नहीं थी कि दो खिलाड़ियों पर होने वाले खर्चे को वहन कर सकें. इसे देखकर उपेंद्र ने त्याग किया और बहन को आगे बढ़ाने में जुट गए.

जेवलिन थ्रो में बेहतरीन प्रदर्शन किया
उपेंद्र बताते हैं कि अन्नू के पास जूते नहीं थे, चंदे से इकट्ठा की गई रकम से उसके लिए जूते खरीदे. अन्नू ने अपना अभ्यास जारी रखा और जेवलिन थ्रो में बेहतरीन प्रदर्शन किया. अपने ही रिकॉर्ड तोड़कर वह नेशनल चैंपियन बन गईं. इसके बाद अन्नू ने पीछे मुड़कर नहीं देखा.

पारुल चौधरी ने चीन में लहराया तिरंगा
भारत की पारुल चौधरी ने शानदार दमखम का परिचय देते हुए एशियाई खेलों की महिला 5000 मीटर स्पर्धा में गोल्ड जीता है. यह 28 वर्षीय खिलाड़ी अंतिम लैप में शीर्ष दो में शामिल थीं और फिर अंतिम लम्हों में जापान की रिरिका हिरोनाका को पछाड़कर 15 मिनट 14.75 सेकेंड के समय के साथ गोल्ड मेडल जीतने में सफल रहीं. वह इस स्पर्धा में भारत के लिए स्वर्ण जीतने वाली पहली महिला बन गई हैं. पारुल का मौजूदा एशियाई खेलों में यह दूसरा मेडल है. उन्होंने सोमवार को महिला 3000 मीटर स्टीपलचेज में भी सिल्वर मेडल जीता था. 

खेत में लगाती थीं दौड़, डीएसपी बनने का है सपना
उत्तर प्रदेश के मेरठ जिले के इकलौता गांव की रहने वाली पारुल के पिता किशनपाल सिंह किसान हैं. पारुल का जन्म 15 अप्रैल, 1995 को हुआ था. पारुल के चार भाई-बहन हैं और वह तीसरे नंबर पर हैं. उनकी माता राजेश देवी गृहणी हैं. पारुल की बड़ी बहन भी स्पोर्ट्स कोटे से सरकारी नौकरी पर हैं और पारुल का एक भाई उत्तर प्रदेश पुलिस में हैं. 

पारुल चौधरी ने अपने पिता के कहने पर दौड़ना शुरू किया था. वह खेत में दौड़ लगाकर प्रैक्टिस करती थीं. गोल्ड मेडल जीतने के बाद पारुल चौधरी ने यूपी पुलिस को लेकर बड़ा बयान दिया. उन्होंने कहा,' हमारी यूपी पुलिस ही ऐसी है कि गोल्ड मेडल लेकर आएंगे तो डीएसपी बना देंगे. यही मेरे दिमाग में चल रहा था. मैं डीएसपी बनना चाहती थी.

ओलंपिक के लिए किया था क्वालिफाई 
बड़ी बहन प्रीति चौधरी के साथ पारुल चौधरी ने भराला गांव के बीपी इंटर कॉलेज से दौड़ प्रतियोगिता में भाग लेने की शुरुआत की. शुरुआती दिनों में बड़ी बहन से ही पारुल की प्रतिस्पर्धा रही. दोनों ने ही 1600 और तीन हजार मीटर में दौड़ना शुरू किया. चयन के दौरान बहन से ही प्रतिस्पर्धा होने के बाद परिजनों ने बड़ी बहन को पांच हजार मीटर में दौड़ने की सलाह दी. बहन के साथ शुरू हुई प्रतिस्पर्धा के बाद पारुल ने पीछे मुड़कर नहीं देखा और हंगरी में आयोजित वर्ल्ड एथलेटिक्स चैंपियनशिप में पदक से चूक जाने के बाद भी पारुल ने ओलंपिक के लिए क्वालिफाई किया था.

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