
पटौदी खानदान के नवाब, भारतीय अभिनेता के पिता और पूर्व भारतीय क्रिकेटर मंसूर अली खान पटौदी के नाम पर आयोजित होने वाली एमएके पटौदी ट्रॉफी को रिटायर किया जा रहा है. भारत-इंग्लैंड के बीच इंग्लैंड में होने वाली टेस्ट सीरीज को 2007 से इस नाम से पुकारा जा रहा है. लेकिन मीडिया रिपोर्ट्स के अनुसार अब इंग्लैंड क्रिकेट बोर्ड (ECB) इसे बदलने पर विचार कर रहा है.
बीते करीब दो दशक में इस ट्रॉफी का रोचक इतिहास रहा है. कभी भारत ने इंग्लैंड को उसी की सरजमीन पर धूल चटाकर इतिहास रचा तो कभी इंग्लैंड क्रिकेट बोर्ड पर मंसूर पटौदी के अपमान का आरोप लगा. भारत-इंग्लैंड क्रिकेट इतिहास का अहम अध्याय रही यह ट्रॉफी न तो पहला ऐसा आयोजन थी जिसे एक बड़े क्रिकेटर के नाम पर नामित किया गया. न ही यह इस तरह रिटायर होने वाली पहली सीरीज है.
क्या है ट्रॉफी का इतिहास?
ईसीबी ने 2007 में भारत-इंग्लैंड टेस्ट सीरीज को पटौदी ट्रॉफी नाम देने का फैसला किया था. ईसीबी ने यह फैसला भारत-इंग्लैंड क्रिकेट रिश्तों के 75 साल मनाने के लिए लिया था. जब जुलाई-अगस्त 2007 में पहली बार पटौदी ट्रॉफी खेली गई तो भारतीय टीम ने राहुल द्रविड़ की अगुवाई में इंग्लैंड को 1-0 से मात दी थी. यह अंग्रेजों की सरजमीन पर 20 साल में भारत की पहली जीत थी.
जब आखिरी बार भारतीय टीम 2021 में इंग्लैंड गई थी तब यह सीरीज 2-2 की बराबरी पर ड्रॉ रही थी. अब इस ट्रॉफी को रिटायर करने पर विचार किया जा रहा है. क्रिकबज़ की ओर से प्रकाशित रिपोर्ट के अनुसार, ईसीबी ऐसा क्यों कर रहा है, इसके पीछे की वजह अभी साफ नहीं है. कयास लगाए जा रहे हैं कि अब इस ट्रॉफी को भारत और इंग्लैंड के दो दिग्गजों के नाम पर रखा जाएगा.
जब शर्मीला टैगोर ने लगाया था अपमान का आरोप
रिपोर्ट के अनुसार, पटौदी परिवार को इसकी सूचना दे दी गई है. रिपोर्ट ने परिवार के एक सूत्र के हवाले से कहा, "जाहिर है कि कुछ समय बाद ट्रॉफियां रिटायर हो जाती हैं." भले ही इस ट्रॉफी का नाम पटौदी के सम्मान में रखा गया था, लेकिन दिवंगत मंसूर पटौदी की पत्नी शर्मिला टैगोर एक समय पर ईसीबी पर उनके साथ किए गए व्यवहार पर अपनी नाखुशी जाहिर कर चुकी हैं.
टैगोर ने पटौदी ट्रॉफी 2011 को याद करते हुए स्पोर्टस्टार से कहा था, "इंग्लिश टीम को फोटो खिंचवाने और सेलिब्रेशन के लिए ले जाया गया. टाइगर (मंसूर अली खान पटौदी) ट्रॉफी के पास खड़े रह गए. उस समय इंग्लिश कप्तान एंड्रयू स्ट्रॉस ने देखा कि टाइगर कनफ्यूज खड़े हैं कि क्या करें और उनके पास गए. टाइगर ने उन्हें ट्रॉफी सौंपी लेकिन इसकी न तो तस्वीर खींची गई और न ही इसे टीवी पर दिखाया गया.
उन्होंने 2018 के इस इंटरव्यू में कहा था, "यह अगस्त (2011) में हुआ था. हम खास तौर पर पटौदी ट्रॉफी की प्रेजेंटेशन के लिए ईसीबी के निमंत्रण पर लंदन गए थे. इसलिए स्वाभाविक रूप से हम थोड़ा कनफ्यूज थे कि मैच के दिन दोपहर के आधिकारिक लंच के समय तक भी चीजें योजना के अनुसार नहीं हुईं."
भारत लौटने के बाद मंसूर पटौदी बीमार पड़ गए थे. उन्होंने सितंबर 2011 में 70 साल की उम्र में अस्पताल में अपनी आखिरी सांसें ली थीं. शर्मीला टैगोर बताती हैं कि उस वक्त पटौदी परिवार अन्य कामों में व्यस्त हो गया, इसलिए इस घटना पर ज्यादा ध्यान नहीं दे सका था.
पहले भी रिटायर हुई हैं ट्रॉफी?
ऐसा पहली बार नहीं है कि ईसीबी ने किसी खिलाड़ी को रिटायर किया हो. क्रिकेट में ऐसे कई उदाहरण हैं. इंग्लैंड और वेस्टइंडीज के बीच खेली जाने वाली विजडन ट्रॉफी को रिटायर कर दिया गया था. इस ट्रॉफी को अब विवियन रिचर्ड्स और ईयान बॉथम के नाम पर 'रिचर्ड्स-बॉथम ट्रॉफी' कहा जाता है.
ऐसी भी कई ट्रॉफियां हैं जो समय की कसौटी पर खरी उतरी हैं. साल 1982-83 में इंग्लैंड और ऑस्ट्रेलिया के बीच होने वाली टेस्ट सीरीज का नाम एशेज़ रखा गया था. यह सीरीज अब भी हिट है और दुनियाभर के क्रिकेट प्रेमी उसका इंतजार करते हैं. इसके अलावा फ्रैंक वॉरेल ट्रॉफी (वेस्टइंडीज और ऑस्ट्रेलिया के बीच, 1960/61 से), बॉर्डर-गावस्कर ट्रॉफी (भारत और ऑस्ट्रेलिया के बीच 1996/96 से), क्रो-थोर्प ट्रॉफी (न्यूजीलैंड और इंग्लैंड के बीच 2024-25 से) और वार्न मुरलीधरन ट्रॉफी (ऑस्ट्रेलिया और श्रीलंका के बीच 2007/08 से) भी लंबे वक्त से खेली जा रही हैं.