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Super Achiever: दूसरों के घरों में मां बनाती थी खाना, बहन धोती थी बर्तन... बांस की हॉकी स्टिक से खेलकर Salima Tete ने तय किया भारतीय हॉकी टीम के कप्तान तक का सफर

यह कहानी है भारत की Women's National Hockey Team की कप्तान सलीमा टेटे की. सलीमा बहुत ही गरीब परिवार से ताल्लुक रखती हैं लेकिन अपने पैशन और मेहनत से उन्होंने न सिर्फ खुद नाम कमाया बल्कि देश का नाम भी रोशन कर रही हैं.

Salima Tete (Photo: Instagram/@salima_tete_) Salima Tete (Photo: Instagram/@salima_tete_)

डॉ कलाम का कहना था कि सपने वह नहीं होते जो सोते वक्त देखे जाते हैं, बल्कि सपने वे होते हैं जो खुली आंखों से देखे जाएं और उन्हें पूरा करने के लिए हर संभव कोशिश की जाए. झारखंड की बेटियों ने इसे सच को कर दिखाया है. झारखंड के सिमडेगा जैसे छोटे जिले से निकली सलीमा टेटे ने न सिर्फ राष्ट्रीय बल्कि अंतरराष्ट्रीय हॉकी में अपनी पहचान बनाई है.
 
सलीमा टेटे ने यह साबित किया अगर मेहनत और लगन हो, तो कोई भी मुश्किल आपको रोक नहीं सकती. झारखंड की यह खिलाड़ी बच्चों के लिए प्रेरणा हैं, जिन्होंने लाखों परेशानियां झेलकर भी बड़े सपने देखने और उन्हे पूरा करने का साहस रखा. 
 
कौन हैं सलीमा टेटे?
भारतीय महिला टीम की कप्तान सलीमा टेटे का जन्म 27 दिसंबर 2001 में हुआ. 2013 में सलीमा की प्रतिभा को पहचान मिली, जब उन्हें झारखंड सरकार के हॉकी सेंटर में जगह दी गई. साल 2016 के अंडर-18 एशिया कप में भारत की जीत में अहम भूमिका निभाई. उनकी मेहनत का नतीजा था कि 2017 में उन्हें भारतीय सीनियर महिला टीम के तरफ से बुलावा आया. 

सलीमा ने भारतीय महिला हॉकी टीम के लिए कई अंतरराष्ट्रीय टूर्नामेंट में शानदार प्रदर्शन किया. टोक्यो ओलंपिक, 2022 का हॉकी विश्व कप, और कॉमनवेल्थ गेम्स जैसे बड़े इवेंट्स में उनका प्रदर्शन काफी सराहनीय रहा. बता दें की पिछले साल एशियन हॉकी फेडरेशन ने उन्हें "इमर्जिंग प्लेयर ऑफ द ईयर" के खिताब से नवाजा और एशियन हॉकी का एथलेटिक एंबेसडर भी बनाया गया हैं.

सलीमा टेटे की संघर्ष
झारखंड के सिमडेगा जिले के एक छोटे से गांव बड़की छापर की रहने वाली सलीमा टेटे का सफर संघर्षों से भरा रहा है. उन्होंने अपनी स्कूली शिक्षा गांव के स्थानीय स्कूल से ही की. बचपन में उनके पास खेलने के लिए हॉकी स्टिक तक नहीं थी. बांस की खपच्ची से बनी स्टिक से खेलते हुए उन्होंने अपने सपने की शुरुआत की. 

उनके पिता सुलक्षण टेटे भी हॉकी खिलाड़ी रहे हैं लेकिन वह अपने गांव से बाहर नहीं निकल सके. सलीमा की बड़ी बहन भी एक प्रतिभाशाली हॉकी खिलाड़ी थीं, लेकिन परिवार की आर्थिक स्थिति इतनी खराब थी कि किसी एक के ही सपनों को उड़ान मिल सकती थी. सलीमा के परिवार ने उन्हें आगे बढ़ाया. उनके सपनों को पूरा करने के लिए उनकी मां ने रसोइए का काम किया और बड़ी बहन ने दूसरों के घरों में बर्तन मांजे. 

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मुख्यमंत्री ने लगवाया घर में टीवी
सलीमा के घर के हालात कुछ ऐसे रहे हैं कि जब साल 2023 की वह टोक्यो ओलंपिक्स में क्वार्टर फाइनल खेल रही थी, तो उनके घर में टीवी तक नहीं था. हालांकि, यह बात जब झारखंड के तत्कालीन मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन तक पहुंची, तो उन्होंने सलीमा के परिवार को एक स्मार्ट टीवी और इन्वर्टर उपलब्ध कराया. सलीमा ने अपने प्रदर्शन से टोक्यो ओलंपिक्स में हर किसी का दिल जीत लिया. उनके खेल की सराहना प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भी की. 

सलीमा के साथ-साथ झारखंड की कई बेटियां हॉकी में अपने राज्य का नाम रोशन कर रही हैं. सिमडेगा जिले को "हॉकी का गढ़" कहा जाने लगा है क्योंकि यहां की बेटियां न सिर्फ राष्ट्रीय बल्कि अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भी अपनी छाप छोड़ रही हैं.