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Rohit Sharma: दादा-दादी और छह चाचाओं के साथ पले-बढ़े रोहित शर्मा, कभी परिवार ने पैसे उधार लेकर भेजा था क्रिकेट कैंप

भारत के कप्तान और बल्लेबाज, रोहित शर्मा को अपनी सलामी बल्लेबाजी और विस्फोटक पारी के साथ-साथ बेहतरीन कप्तानी के लिए भी सराहा जा रहा है. आज जानिए उन्होंने कैसे यहां तक का सफर तय किया.

Rohit Sharma Rohit Sharma
हाइलाइट्स
  • दादा-दादी और चाचाओं ने पाला

  • इस बात का है कैप्टन को मलाल 

ICC Men's CWC 2023 में टीम इंडिया के सफल प्रदर्शन का श्रेय उनके कप्तान और बेहतरीन बल्लेबाज, रोहित शर्मा को दिया जा रहा है. रोहित अब इंडियन प्रीमियर लीग में संयुक्त रूप से सबसे सफल कप्तान हैं. वह व्हाइट बॉल क्रिकेट में सबसे खतरनाक सलामी बल्लेबाजों में से एक हैं और खुद को एक भरोसेमंद टेस्ट सलामी बल्लेबाज के रूप में स्थापित करने में कामयाब रहे हैं. साल 2020 में उन्हें भारत के सर्वोच्च खेल सम्मान खेल रत्न पुरस्कार से सम्मानित किया गया. 

वर्ल्ड कप 2023 में सेमीफाइनल तक अनबीटेबल रही टीम इंडिया के सफर में बतौर कप्तान रोहित ने अहम भूमिका निभाई है. उन्होंने लगभग सभी मैचों में टीम को मजबूत शुरुआत देकर प्रतिद्वंदी पर प्रेशर बनाया और साथ ही, अपने टीममेट्स को अच्छे खेलने के लिए प्रोत्साहित किया है. क्रिकेट एक्सपर्ट्स की माने तो इस वर्ल्ड कप ने रोहित को रिस्क लेने वाले कप्तान के तौर पर पेश किया है और इसी के दम पर आज हर कोई कह रहा है कि भारत इस बार वर्ल्ड जीतेगा. 

आज इस मौके पर हम आपको बता रहे हैं कि कैसे मुंबई में बोरीवली में छोटे से कमरे में रहने वाला एक आम-सा लड़का भारतीय क्रिकेट टीम के सबसे सफल कप्तानों में से एक कैसे बन गया? और यह सफलता सिर्फ उनकी नहीं है बल्कि उनके संयुक्त परिवार की भी है जिन्होंने उनकी नींव को मजबूत किया. 

दादा-दादी और चाचाओं ने पाला
रोहित का जन्म 30 अप्रैल 1987 को बंसोड़, नागपुर में गुरुनाथ और पूर्णिमा शर्मा के घर हुआ था. गुरुनाथ एक ट्रांसपोर्ट फर्म के वेयरहाउस में केयरटेकर के रूप में काम करते थे. उनकी आर्थिक स्थिति ठीक नहीं थी. इसलिए जब वह एक-डेढ साल के थे, तो रोहित के दादाजी ने उन्हें गोद ले लिया क्योंकि उसके माता-पिता दो बच्चों को पालने में सक्षम नहीं थे. 

रोहित ने इंडियन एक्सप्रेस को एक इंटरव्यू में बताया कि दादाजी ने कहा, 'रोहित को इधर छोड़ दे, और छोटे वाले को लेके जा अपने साथ।' इस तरह मैं बोरीवली में रहा जबकि मेरे माता-पिता और भाई डोंबिवली (50 किमी दूर) में रहे. लगभग 100 वर्ग फुट के घर में वे 10-12 लोग रहते थे. रोहित यहां अपने दादा-दादी, छह चाचा और चाचियों के साथ रहे. रोहित का कहना है कि उन्होंने मुश्किल दिन भी देखे हैं इसलिए उन्हें पता है कि जिंदगी में कुछ भी आसानी से नहीं मिलता. 

बचपन में रोहित लगातार घंटों क्रिकेट खेलते थे और अपने परिवार के साथ क्रिकेट पर चर्चा करते थे. उनके परिवार में सभी खेल-प्रेमी थे. रोहित के क्रिकेट के प्रति जुनून को देखकर उनके चाचा ने कुछ पैसे उधार लेकर उन्हें क्रिकेट कैंप में दाखिला दिलाया. यहां रोहित की प्रतिभा को उनके कोच दिनेश लाड ने पहचाना. कोच के कहने पर रोहित के परिवार ने उन्हें स्वामी विवेकानंद इंटरनेशनल स्कूल में भेजा. यहां दिनेश ने रोहित की फीस माफ करवा दी क्योंकि उनका परिवार आर्थिक रूप से संपन्न नहीं था. हालांकि, अपने क्रिकेट टैलेंट के दम पर जल्द ही रोहित स्कूल मैनेजमेंट और लोकल क्रिकेट कम्यूनिटी का फोकस बन गए. 

इस बात का है कैप्टन को मलाल 
रोहित ऐसे खिलाड़ी हैं जिन्होंने अपने खेल को अपने दम पर सुधारा, कोर्स में सुधार किया और भारत के कप्तान बने. लेकिन उनके मन में कुछ ऐसी बाते हैं जिनका उन्हें मलाल है. रोहित का सबसे बड़ा मलाल है कि उनके क्रिकेट के दीवाने दादा ने उन्हें कभी प्रोफेशनल क्रिकेटर के तौर पर खेलते नहीं देखा. साल 1996 में जब उनहोंने बोरीवली क्लब के लिए खेलना शुरू किया था तब उनका निधन हो गया. हालांकि, उनकी दादी ने कम से कम उन्हें रणजी ट्रॉफी में मुंबई के लिए खेलते हुए देखा था. 

लेकिन जिस दिन उन्होंने 2006 में अपने पहले सीज़न में रणजी ट्रॉफी जीती, उसी दिन उनकी दादी का निधन हो गया. रोहित ने इंडियन एक्सप्रेस को बताया, "मैं हमेशा से चाहता था कि वह (दादी) वास्तविक रणजी ट्रॉफी देखें और छू सके... कुछ महीने बाद, मुझे भारत के लिए चुना गया. मैं हमेशा चाहता था कि उनमें से कोई मुझे इंडिया कैप हासिल करता हुआ देखे. लेकिन वे दोनों वहां नहीं थे." पर रोहित को यकीन है कि उनके दादा-दादी जहां भी होंगे बहुत खुश होंगे. आज वह जहां भी हैं अपने दादा-दादी और परिवार की वजह से हैं.