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मां-बाप ने अपने बैलों को बेचकर बेटी के ल‍िए खरीदे थे स्पोर्ट्स शूज, आज देश का नाम रौशन कर रही बुल्टी रॉय

तारकेश्वर के एक गरीब परिवार में जन्मी बुल्टी राय अपनी आंखों में एक दिन स्वर्ण परी पी टी ऊषा बनने का सपना संजोए है. दो बच्चे की मां बुल्टी रॉय आर्थिक तंगी और बाधाओं से जिंदगी की कठिन लड़ाई लड़ रही है.

BULTI ROY BULTI ROY
हाइलाइट्स
  • एथलेटिक्स प्रतियोगिताओं में स्वर्ण पदक जीतकर बंगाल का परचम लहराया

  • 10 वर्ष की छोटी सी उम्र में जगा एथलेटिक्स के प्रति प्रेम

उसे कभी कभी भरपेट खाना भी नसीब नहीं होता है, लेकिन जुनून और इरादों में थोड़ी सी भी कमी नहीं है. वो किराए के ऐसे मकान में रहती है ज‍िसकी छत भी प्लास्टिक की है और खिड़कियां लकड़ी के बोर्ड की, लेकिन उसकी हौसले की उड़ान ऐसी क‍ि उसने राज्य और नेशनल स्तर की एथलेटिक्स प्रतियोगिताओं में स्वर्ण पदक जीतकर बंगाल का परचम लहराया है.

हुगली के तारकेश्वर के 10 नंबर वार्ड इलाके में रहने वाली प्रतिभावान एथलीट बुल्टी रॉय के संघर्ष की कहानी काफी अजीबोगरीब है. 10 वर्ष की छोटी सी उम्र में एथलेटिक्स के प्रति प्रेम ने बुल्टी को इस खेल से जोड़ दिया. एक गरीब किसान परिवार में जन्मी बुल्टी रॉय के माता-पिता ने भी अपनी बेटी की इच्छा पूरी करने के लिए खेत में हल जोतने वाले बैलों को बेचकर अपनी बेटी के लिए स्पोर्ट्स शूज खरीदे थे ताक‍ि बुल्टी एथलेटिक्स प्रतियोगिता में भाग ले सके. 

अपने कोच शिवपसाद धारा के सानिध्य में बुल्टी ने राज्य और नेशनल स्तर पर एक से एक प्रतियोगिताओं में जीत का परचम लहराती गई. इसी दौरान साल 2010 में उसका विवाह संतोष रॉय नामक एक युवक से हुआ. संतोष रेल के डिब्बों में हॉकर का काम करता था. संतोष ने भी बुल्टी के सपने को पूरा करने के लिए दिन रात मेहनत और मजदूरी करना शुरू कर दिया.

इसी घर में रहती है बुल्टी रॉय
इसी घर में रहती है बुल्टी रॉय

साल 2017 में राज्य स्तरीय 400 मीटर हर्डल प्रतियोगिता में बुल्टी रॉय ने गोल्ड मेडल जीता. साल 2021 में 36वें मास्टर्स एथलेटिक मीट के 100 मीटर, 200 मीटर और 400 मीटर प्रतियोगिताओं में उसने स्वर्ण पदक जीतकर अपनी प्रतिभा का लोहा सबको मनवाया. इसके बाद मास्टर एथलेटिक्स फेडरेशन ऑफ इंडिया के तरफ से नेशनल स्तर पर होने वाली प्रतियोगिता में भाग लेने के लिए हुगली जिले के एकमात्र प्रतियोगी के रूप में बुल्टी को सम्मान हासिल हुआ. इसी दौरान वह 2 बच्चे की मां भी बनी. लेकिन घर गृहस्थी का दायित्व संभालने के बावजूद उसने देश और दुनिया में विख्यात स्वर्णपरी पी टी उषा जैसे एथलीट बनने का सपना अपनी आंखों से ओझल नहीं होने दिया और लगातार जी तोड़ मेहनत और प्रैक्टिस जारी रखी.