लिएंडर पेस, महेश भूपति, सानिया मिर्जा, रोहन बोपन्ना आदि का तो आपने नाम सुना ही होगा. क्या आप भारत के महान टेनिस खिलाड़ी रामनाथन कृष्णन के बारे में जानते हैं, जिन्होंने अपने खेल से पूरे विश्व में इंडिया का डंका बजाया था. वह देश के इकलौते खिलाड़ी हैं, जिन्होंने विंबलडन के एकल पुरुष वर्ग में सेमीफाइनल में जगह बनाई थी, वह भी एक नहीं दो बार. आइए इस खिलाड़ी के बारे में जानते हैं.
पिता भी खेलते थे टेनिस
रामानाथन कृष्णन का जन्म 11 अप्रैल 1937 को तमिलनाडु के नागरकोइल में हुआ था. रामानाथन के पिता टीके रामानाथन टेनिस के चैंपियन रहे थे. उनसे ही रामानाथन को टेनिस खेलने की प्रेरणा मिली. पिता के निर्देशन में इस खेल की बारिकियां सीखी और बहुत जल्द ही टेनिस की एक जानी-मानी हस्ती बन गए. उन्होंने आठ वर्ष तक लगातार टेनिस की जूनियर तथा सीनियर राष्ट्रीय चैंपियनशिप जीतीं.
माने जाते हैं टेनिस के स्तंभ
रामनाथन कृष्ण्न उन तीन स्तंभों में से हैं, जिन्होंने भारत में टेनिस खेल की लोकप्रियता को बढ़ाया. रामनाथन, जयदीप मुर्खजी और प्रेमजीत लाल को भारतीय टेनिस के तीन स्तंभ कहा जाता है. रामनाथन लगभग दो दशक तक भारत के नंबर वन टेनिस खिलाड़ी रहे. बैक हैंड से खेला गया उनका स्ट्रोक उनकी पहचान थी.
ऐसे बने थे जूनियर विंबलडन चैंपियन
रामनाथन कृष्णन को प्रतिभा दिखाने का पहला मौका 1951 में मद्रास के लॉयोला कॉलेज में आयोजित टेनिस टूर्नामेंट में मिला. उस समय रामनाथन स्कूल में ही थे. इसके बावजूद लोगों की अपील के बाद उन्हें इस टूर्नामेंट में हिस्सा लेने की अनुमति मिल गई. बर्टम टूर्नामेंट को मद्रास का विंबलडन कहा जाता था. वह टूर्नामेंट जीतने में कामयाब रहे. इसके बाद विशाखापत्तनम के राज परिवार ने उन्हें जूनियर विंबलडन के लिए स्पॉन्सर किया था. पहले साल रामनाथन पहले ही राउंड में बाहर हो गए थे लेकिन अगले साल वह जीत हासिल करने में कामयाब रहे थे. उनका डेविस कप में भी जलवा था.
विबंलडन के सेमीफाइनल में नील फ्रेजर से हारे थे
1960 के विबंलडन पहले राउंड में रामनाथन का सामना जॉन हिलेब्रैंड से हुआ था. उन्होंने पहला सेट हारने के बाद जबरदस्त वापसी की. क्वार्टर फाइनल में उनका सामना चार साल सीनियर अयाला से हुआ जो फ्रेंच ओपन फाइनलिस्ट थे. वह इससे पहले कभी रामनाथन से हारे नहीं थे. हालांकि रामनाथन ने यहां शानदार खेल दिखाया. रामनाथन ने यह मैच 7-5,10-8,6-2 से अपने नाम किया. सेमीफाइनल में उनका सामना ऑस्ट्रेलिया के नील फ्रेजर से था. वह उस समय यूएस चैंपियन थे और वर्ल्ड नंबर वन थे. रामनाथन ने इस मैच से पहले फ्रेजर को हराया था लेकिन इस बार वह हार गए थे. इसके बावजूद देश आने पर रामनाथन का जोरदार स्वागत किया गया.
नेहरू ने नाश्ता पर बुलाया था
रामनाथन को देश में इतनी लोकप्रियता मिली कि प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू ने उन्हें नाश्ता पर बुलाया था. हालांकि दिनों खिलाड़ियों को बहुत ज्यादा पैसा नहीं मिलता था. इसके बावजूद रामनाथन ने पैसा को कभी अपने देश पर तरजीह नहीं दी. 1954 में टेनिस के दिग्गज खिलाड़ी जैक क्रामर ने रिटायरमेंट लेकर प्रोफेशनल टूर की शुरुआत की. उन्होंने दुनिया भर के खिलाड़ियों को उनके साथ जुड़ने के लिए पैसा का ऑफर दिया जिसमें रामनाथन भी शामिल थे. क्रामर ने उन्हें 150000 डॉलर रुपए के करार का ऑफर दिया था लेकिन रामनाथन ने इनकार कर दिया था. वह देश के लिए खेलते रहे.
पुरस्कार व सम्मान
रामानाथन कृष्णन की खेल उपलब्धियों को देखते हुए उन्हें 1961 में अर्जुन पुरस्कार देकर सम्मानित किया गया. 1962 में पद्मश्री और फिर 1967 में पद्मभूषण प्रदान किया गया.
उपलब्धियां
1. रामानाथन कृष्णन विश्व के 10 सर्वश्रेष्ठ खिलाड़ियों में से एक रहे, जहां कोई भारतीय टेनिस खिलाड़ी नहीं पहुंच सका है.
2. 1962 में विबंलडन में वह 4 सीडेड खिलाड़ी रहे.
3. डेविस कप में खेलने वाले कृष्णन सबसे कम उम्र के खिलाड़ी थे.
4. वह विबंलडन के एकल में सेमीफाइनल तक पहुंचने वाले पहले भारतीय थे.