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Afghanistan Cricket Team: कुछ ऐसा रहा है शरणार्थी शिविरों से निकली टीम का जादुई सफर

क्रिकेट आज करोड़ों अफगानियों के दिल में धड़कता है, हालांकि कुछ सालों पहले तक हालात ऐसे नहीं थे. चार साल पहले तक यह देश एक युद्ध से जूझ रहा था. आठ साल पहले तक अफगान टीम के पास अपने देश में एक मैदान तक नहीं था. तमाम कठिनाइयों के बावजूद इस टीम ने यह सफर कैसे तय किया?

अफगानिस्तान ने पहली बार टी20 वर्ल्ड कप सेमीफाइनल में जगह बनाई है. अफगानिस्तान ने पहली बार टी20 वर्ल्ड कप सेमीफाइनल में जगह बनाई है.

अफगानिस्तान क्रिकेट टीम ने जब मंगलवार सुबह बांग्लादेश को हराकर टी20 वर्ल्ड कप 2024 के सेमीफाइनल में कदम रखा तो काबुल की सड़कों पर क्रिकेट प्रेमियों का जनसैलाब उमड़ गया. पुलिस ने वॉटर कैनन से लोगों को हटाने की कोशिश की, वे नहीं हटे. सड़क पर क्रिकेट प्रेमियों का हुजूम जमा रहा. हवा में रंग गुलाल उड़ता रहा. लोग अफगानिस्तान का झंडा लहराते रहे.

कुछ सालों पहले तक हालांकि अफगानिस्तान में हालात ऐसे नहीं थे. चार साल पहले तक यह देश एक युद्ध से जूझ रहा था. अफगानिस्तान क्रिकेट टीम ने पिछले एक दशक में जादुई सफर तय कर अपने देश को उम्मीद की एक डोर थमाई है. 

रेफ्यूजी कैंप्स से शुरू हुआ सफर
अफगानिस्तान की जीत के एक दिन बाद तालिबान नेता सुहैल शाहीन ने ट्वीट कर लिखा कि "हमारे लड़कों ने पहले पाकिस्तान में क्रिकेट सीखी, और अब वे यहां तक पहुंचे हैं." शाहीन का यह उल्लेख करना बिल्कुल सही था कि अफगान क्रिकेट के विकास में पाकिस्तान के शरणार्थी शिविरों का योगदान रहा है. 
जब 90 के दशक में अफगानिस्तान गृह युद्धों के दौर से गुजर रहा था तब कई अफगान के शरणार्थी पाकिस्तान के पेशावर में मौजूद शरणार्थी कैंपों में रह रहे थे. रूसी समाचार एजेंसी स्पुतनिक की एक रिपोर्ट बताती है कि यहां शरणार्थियों को वर्ल्ड चैंपियन पाकिस्तान के खिलाड़ियों से मिलने का मौका मिला, जिससे वे क्रिकेट के साथ जुड़ सके.

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रेफ्यूजी कैंप्स का प्रभाव ऐसा पड़ा कि 1995 में अफगानिस्तान क्रिकेट बोर्ड का गठन हो गया. जब सन् 1996 में तालिबान सत्ता में आई तो उसने कुछ समय के लिए क्रिकेट बैन कर दिया, लेकिन फिर सन् 2000 में उसने इस खेल को दोबारा शुरू करने का फैसला किया. कुछ विशेषज्ञों की राय है कि पश्तून समाज के बीच इस खेल की लोकप्रियता के कारण तालिबान क्रिकेट का समर्थन करता है, जबकि कुछ का मानना है कि यह खेल पूरे अफगानिस्तान को एक धागे में पिरोने की ताकत रखता है. 

भारत ने भी किया समर्थन
साल 2001 में अफगानिस्तान इंटरनेशनल क्रिकेट काउंसिल (ICC) का हिस्सा बन गया, जबकि अगले साल एशियन क्रिकेट काउंसिल (ACC) ने भी अफगानिस्तान क्रिकेट बोर्ड (ACB) को मान्यता दे दी. धीरे-धीरे अफगान क्रिकेट टीम सीमित ओवर क्रिकेट में सफलता की सीढ़ियां चढ़ने लगी. महज आठ साल में अफगानिस्तान ने वनडे इंटरनेशनल (ODI) स्टेटस हासिल कर लिया.

अफगानिस्तान के इस सफर में भारत की मदद भी महत्वपूर्ण साबित हुई. भारतीय क्रिकेट कंट्रोल बोर्ड (BCCI) की अगुवाई में एसीसी ने अफगानिस्तान को आईसीसी का सहयोगी सदस्य बनाने की मांग की. साल 2013 में अफगानिस्तान आईसीसी का सहयोगी सदस्य बन गया, जिसकी वजह से उसे ज्यादा फंडिंग भी मिलने लगी. 

सिर्फ यही नहीं, साल 2016 में जब तालिबान और अफगान नेशनल फोर्स के बीच भिड़ंत से पूरे अफगानिस्तान में अशांति बढ़ने लगी तो बीसीसीआई ने एक बार फिर एसीबी की ओर मदद का हाथ बढ़ाया. नोएडा में मौजूद इंटरनेशनल क्रिकेट स्टेडियम को अफगानिस्तान का होम ग्राउंड बना दिया गया. यहां न सिर्फ अफगान खिलाड़ियों को भारत के अंतर्राष्ट्रीय खिलाड़ियों से घुलने मिलने का मौका मिला, बल्कि वे भारत की वर्ल्ड-क्लास कोचिंग सुविधाओं का भी फायदा उठा सके. 

मैदान पर दिखने लगा असर
अफगान खिलाड़ियों में आए सुधार का असर क्रिकेट के मैदान पर भी दिखने लगा. उनके लगातार सुधरते प्रदर्शन की बदौलत अफगानिस्तान को 2017 में टेस्ट खेलने वाले देश का दर्जा दे दिया गया. 2019 में हुए क्रिकेट वर्ल्ड कप में अफगान टीम एक भी मैच नहीं जीत सकी, हालांकि वह जीत हासिल करने के बेहद करीब जरूर आई. फिर आया क्रिकेट वर्ल्ड कप 2023, जिसने आंकड़ों में भी अफगान क्रिकेट के सुधार की कहानी बयान की. इस टूर्नामेंट में अफगानिस्तान टीम इंग्लैंड, पाकिस्तान और श्रीलंका जैसी टीमों को हराकर चैंपियन्स ट्रॉफी 2025 के लिए क्वालीफाई करने में सफल रही. 

इस टूर्नामेंट के बाद शायद ही अफगानिस्तान को कमजोर टीम माना जा सकता था. जब टी20 वर्ल्ड कप 2024 शुरू हुआ, तब वेस्ट इंडीज के दिग्गज बल्लेबाज ब्रायन लारा ने अंदाजा लगाया था कि अफगान टीम टूर्नामेंट के सेमीफाइनल में पहुंच सकती है. राशिद खान की कप्तानी में टीम ने यह कारनामा किया भी. जब अफगानिस्तान ने बांग्लादेश पर जीत दर्ज की तो किंग्सटाउन से लेकर काबुल तक अफगान क्रिकेट प्रेमियों के चेहरे पर इसकी खुशी भी दिखी. जीत के बाद तालिबान नेता सुहैल शाहीन ने जो कहा, वह शायद अफगान टीम के भविष्य को सही तरह परिभाषित करता है. 

"तरक्की का ये सफर इंशाअल्लाह जारी रहेगा."