यह बात उस दौर की है जब भारत ने करीब 200 साल के लंबे इंतजार के बाद आजादी का स्वाद चखा था. एक युवा देश के तौर पर भारत की आर्थिक स्थिति बहुत अच्छी नहीं थी. उत्तर में मौजूद पंजाब भी बंटवारे के जख्मों से नहीं उभर सका था. भारत के पास आशा और खुशी के जो मुट्ठी भर कारण थे. उनमें से एक थी हॉकी.
20वीं शताब्दी के पहले हिस्से में भारतीय हॉकी का दबदबा रहा. शताब्दी के इसी हिस्से में भारतीय पुरुष हॉकी टीम ने आठ ओलंपिक गोल्ड जीते. हॉकी में सबसे ज्यादा ओलंपिक गोल्ड मेडल जीतने का रिकॉर्ड आज भी भारत के पास ही है. उस दौर में भारतीय हॉकी का एक ऐसा खिलाड़ी था जिसने भारत के लिए कुल चार ओलंपिक खेले और हर बार एक मेडल जीता.
हॉकी की नर्सरी में हुआ जन्म
स्टिक2हॉकी के अनुसार उधम सिंह का जन्म चार अगस्त 1928 को जालंधर कैंट के करीब मौजूद संसारपुर नाम के गांव में हुआ. इस गांव को हॉकी खिलाड़ियों की नर्सरी कहा जाता है. और ऐसा हो भी क्यों ना. इस गांव ने भारत को कई ओलंपिक विजेता देने के अलावा यूनिवर्सिटी से लेकर राष्ट्रीय स्तर तक कई खिलाड़ी दिए. उधम सिंह भी इन्हीं में से एक थे.
इंसाइड लेफ्ट पोजीशन पर खेलने वाले उधम सिंह ने बहुत छोटी उम्र में खुद को एक अच्छे आक्रामक खिलाड़ी के तौर पर साबित कर दिया था. साल 1947 में पंजाब के लिए स्टेट लेवल पर खेलने के लिए चुने जाने के बाद उन्होंने 1947, 1948, 1949, 1950, 1951 और 1954 में राष्ट्रीय चैंपियनशिप जीतने वाली टीम में अहम भूमिका निभाई.
1952 से शुरू हुआ ओलंपिक सफर
अपनी प्रतिभा के दम पर उधम सिंह मात्र 20 साल की उम्र में भारत के लिए ओलंपिक खेलने के लिए तैयार थे. लेकिन उंगली की चोट की वजह से वह 1948 ओलंपिक में हिस्सा नहीं ले सके. उन्हें सबसे बड़े मंच पर भारत का प्रतिनिधित्व करने के लिए चार साल इंतजार करना पड़ा. साल 1952 में आखिरकार उधम सिंह ओलंपिक गोल्ड जीतने वाली भारतीय टीम का हिस्सा रहे.
चार साल बाद मेलबर्न में हुए 1956 ओलंपिक खेलों में जब भारत ने स्वर्ण जीता तो उधम सिंह (14) ने टीम के लिए सबसे ज्यादा गोल किए. उन्होंने आगे चलकर 1960 में भारत के लिए एक सिल्वर मेडल और 1964 में एक गोल्ड मेडल भी जीता.
कोच के रूप में भी रहे हिट
उधम सिंह भारत के लिए खेलते हुए चार ओलंपिक मेडल जीतने वाले इकलौते खिलाड़ी नहीं हैं. उनसे पहले लेस्ली क्लॉडियस भी तीन गोल्ड और एक सिल्वर मेडल जीत चुके हैं. हालांकि उधम सिंह की सफलता उनके करियर तक सीमित नहीं रही, बल्कि उन्होंने कोच के रूप में भी भारत को सफलताएं दिलाईं.
अपने संन्यास के बाद उधम सिंह ने 1968 ओलंपिक खेलों से एक साल पहले प्री-ओलंपिक टूर्नामेंट में भारतीय टीम के कोच की भूमिका निभाई. अगले साल मेक्सिको में हुए 1968 ओलंपिक में भारत ने उधम सिंह की अगुवाई में कांस्य पदक हासिल किया. दो साल बाद थाईलैंड की राजधानी बैंकॉक में हुए एशियाई खेलों में भारतीय टीम कोच उधम सिंह की अगुवाई में सिल्वर मेडल जीतने में सफल रही.
हॉकी सिखाते हुए गई जान
हॉकी से रिटायरमेंड लेने के बाद बॉर्डर सिक्योरिटी फोर्स (BSF) में पुलिस अफसर के रूप में काम किया. उन्हें 1965 में अर्जुन पुरस्कार से भी सम्मानित किया गया था. वह इस पुरस्कार से सम्मानित होने वाले सिर्फ चौथे खिलाड़ी थे. द गार्जियन की एक रिपोर्ट बताती है कि उधम सिंह को दिल का दौरा पड़ने के बाद डॉक्टर की ओर से आराम की सलाह दी गई थी, लेकिन हॉकी के प्रति उनका जुनून कम नहीं हुआ.
उधम सिंह 23 मार्च 2000 को हॉकी सिखाते हुए इस दुनिया से चले गए, हालांकि आज भी हॉकी प्रेमी उन्हें उनके अनुशासन और बेहतर खेलने की उनकी चाह के लिए याद करते हैं. उनके निधन पर द गार्जियन ने लिखा, "प्रतिस्पर्धी हॉकी के अलावा, उन्होंने कई स्टार भारतीय खिलाड़ियों को तैयार करने में अहम भूमिका निभाई. अनुशासन से प्यार करने वाले उधम ने हमेशा अपने शिष्यों से और बेहतर के लिए प्रयास करने का अनुरोध किया."