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Asian Games: मिलिए राम बाबू से, कभी मनरेगा के तहत करते थे मजदूरी, अब एशियन गेम्स में मेडल जीतकर किया देश का नाम रोशन

हाल ही में, एशियन गेम्स में राम बाबू ने 35 किमी रेस वॉक में भारत के लिए कांस्य पदक जीता है. उन्होंने जीत हासिल करते हुए न केवल राष्ट्रीय रिकॉर्ड तोड़ा बल्कि पूरे देश में हर व्यक्ति के लिए प्रेरणा बन गए है.

Ram Baboo (Photo: Twitter) Ram Baboo (Photo: Twitter)
हाइलाइट्स
  • वेटर के तौर पर किया काम

  • भारतीय सेना में बने हवलदार 

उत्तर प्रदेश के एक गांव के एक दिहाड़ी मजदूर के बेटे ने एशियाई खेलों के कांस्य पदक जीतकर इतिहास रचा है. रेस वॉकर राम बाबू की गरीबी से प्रसिद्धि तक की यात्रा आज हम सबके लिए प्रेरणा है. मंजू रानी के साथ एशियाई खेलों में 35 किमी रेस वॉक मिक्स्ड टीम में कांस्य पदक जीतने वाले राम बाबू ने अपनी एथलेटिक्स ट्रेनिंग को फंड करने के लिए वेटर के रूप में काम किया और कोविड ​​​​-19 लॉकडाउन के दौरान मनरेगा योजना के तहत अपने पिता के साथ मजदूरी की. 

24 वर्षीय राम बाबू ने पीटीआई को बताया, "मैंने अपने जीवन में अब तक हर संभव काम किया है, वाराणसी में वेटर के रूप में काम करने से लेकर हमारे गांव में मनरेगा योजना के तहत सड़क निर्माण के लिए अपने पिता के साथ गड्ढे खोदने तक. यह आपका दृढ़ संकल्प और अपने लक्ष्य पर ध्यान केंद्रित करने की बात है. अगर आप कुछ पाने के लिए दृढ़ हैं, तो आपको अपने लक्ष्य तक पहुंचने के रास्ते मिल जाएंगे. मैंने यही किया."

मजदूरी से चलता है घर
राम बाबू के पिता यूपी के सोनभद्र जिले के बेहुरा गांव में मजदूरी करते हैं, और प्रति माह 3000 से 3500 रुपये कमाते हैं. यह आमदनी लोगों के परिवार को चलाने के लिए पर्याप्त नहीं है. राम घर के इकलौते बेटे हैं और उनकी तीन बहनें हैं. उनकी मां एक गृहिणी हैं और कभी-कभी अपने पति के काम में मदद करती हैं. उनके पास कोई जमीन नहीं है और उनके पिता एक मजदूर हैं. इसलिए सालभर लगातार काम मिलता रहे, इसकी कोई गारंटी नहीं.  

उनका काम सीजनल है. धान के सीजन में, उनके पास ज्यादा काम होता है लेकिन दूसरे महीनों में उनकी आय कम हो जाती है. राम बाबू ने अपनी मां के कहने पर जवाहर नवोदय विद्यालय (जेएनवी) के लिए प्रवेश परीक्षा दी और चयनित हो गये. उनका दाखिला छठी कक्षा में कराया गया. लेकिन उनकी पढ़ाई में ज्यादा दिलचस्पी नहीं थी. जेएनवी में दो साल की पढ़ाई के दौरान साल 2012 के ओलंपिक ने उन्हें खेलों में आगे बढ़ने के लिए प्रेरित किया. 

इन भारतीय खिलाड़ियों मे किया प्रेरित
उस समय वह सातवीं कक्षा में थे और उन्होंने अपने स्कूल के छात्रवास में टेलीविजन पर मैरी कॉम, साइना नेहवाल, सुशील कुमार और गगन नारंग जैसे खिलाड़ियों को पदक जीतते हुए देखा. उनकी कहानियां अगले दिन अखबार के पहले पन्ने पर भी छपीं. उन्होंने 2012 ओलंपिक पदक विजेताओं के समाचार पत्रों के लेखों और तस्वीरों की कटिंग अपने फ़ोल्डर में रखी थी. 

जेएनवी में ही उन्हें अलग-अलग खेल खेलते हुए अपने दौड़ लगाने के हुनर का पता चला. उन्होंने देखा कि वह दौड़ लगाकार जल्दी थकते नहीं हैं. शुरुआत में मैराथन, 10000 मीटर और 5000 मीटर दौड़ लगाई लेकिन फि उनके घुटने में दर्द होने लगा. स्थानीय कोच प्रमोद यादव की सलाह पर, वह बाद में रेस वॉकिंग में चले गए, जिससे उनके घुटनों पर ज्यादा दबाव नहीं पड़ता. 

वेटर के तौर पर किया काम
राम बाबू ने अपना फेसबुक अकाउंट बनाया तो वह फिटनेस और लंबी दूरी की दौड़ से संबंधित कई FB ग्रुप्स में शामिल हो गए. साल 2017 में, जब वह लगभग 17 साल के थे, तब वाराणसी चले गए जहां एक एथलेटिक्स स्टेडियम है. यह वह कोच चंद्रभान यादव के संपर्क में आए. उन्होंने 1500 रुपए महीने पर किराये का मकान लिया. यहां उन्होंने एक महीने के लिए वेटर के रूप में पार्ट-टाइम काम किया. उन्हें यहां हर महीने 3000 रुपये मिलते थे, लेकिन उन्हें आधी रात तक काम करना पड़ता था. वह रात 1 बजे तक काम करते और फिर स्टेडियम में प्रशिक्षण के लिए सुबह 4 बजे उठते. लेकिन सबसे बुरा था कि लोग उनका सम्मान नहीं करते थे इसलिए वह वाराणसी छोड़कर घर लौट आए. 

2019 में, भोपाल SAI सेंटर में एक कोच ने राम को ट्रेनिंग देने का फैसला किया. इसके बाद उन्होंने राष्ट्रव्यापी COVID-19 लॉकडाउन से ठीक पहले फरवरी 2020 में नेशनल रेस वॉक चैंपियनशिप में 50 किमी स्पर्धा में भाग लिया और चौथे स्थान पर रहे. लॉकडाउन के दौरान, भोपाल SAI सेंटर बंद हो गया और राम घर लौट आए. लेकिन इस समय घर चलाना मुश्किल हो गया. 

ऐसे में, उन्हें मनरेगा योजना के तहत काम मिला और उन्होंने सड़क निर्माण कार्य में गड्ढे खोदने में अपने पिता की मदद की. काम की मात्रा के आधार पर एक व्यक्ति को प्रति दिन 300 से 400 रुपये मिलते थे. मनरेगा योजना के तहत डेढ़ माह तक काम करने के बाद उनका मन बेचैन हो गया और वह फिर से भोपाल चले गए. 

भारतीय सेना में बने हवलदार 
फरवरी 2021 में, उन्होंने नेशनल रेस वॉक चैंपियनशिप में 50 किमी रेस वॉक में रजत पदक जीता और कोच बसंत राणा की मदद से पुणे में आर्मी स्पोर्ट्स इंस्टीट्यूट में उनका दाखिला हुआ. विश्व एथलेटिक्स ने जब 50 किमी स्पर्धा को अपने कार्यक्रम से हटा दिया और फिर राम ने 35 किमी स्पर्धा में दोड़ना शुरु किया. सितंबर 2021 में राष्ट्रीय ओपन चैंपियनशिप में उन्होंने स्वर्ण पदक जीता और कुछ महीने बाद, उन्हें बेंगलुरु में राष्ट्रीय शिविर में बुलाया गया. 

पिछले साल राष्ट्रीय खेलों में 35 किमी में राष्ट्रीय रिकॉर्ड समय के साथ स्वर्ण जीतने के बाद, राम को सेना में नौकरी मिल गई, और वह अब एक हवलदार है. फिलहाल वह प्रोबेशन में हैं और उन्हें लगभग 10000 रुपये मिल रहे हैं, जो कि मूल वेतन है. प्रोबेशन के बाद उन्हें पूरी सैलरी मिलेगी और वह अपने परिवार की देखभाल ठीक से कर पाएंगे. राम का यह भी कहना है कि वह अगले सीज़न से 20 किमी रेस वॉक में शिफ्ट करेंगे क्योंकि मिश्रित टीम स्पर्धा में रिस्क रहता है. 

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