फ्रांस की राजधानी पेरिस 2024 ओलंपिक की मेजबानी करने के लिए तैयार है. आयोजन की शुरुआत 25 जुलाई को हो जाएगी जबकि ओपनिंग सेरेमनी 26 जुलाई को होगी. 11 अगस्त तक होने वाले आयोजन में 200 से ज्यादा देशों के 11,500 एथलीट हिस्सा लेंगे, हालांकि इस सब के बीच इजराइल को ओलंपिक से बैन करने की मांग उठने लगी है. सवाल उठता है कि ये मांगें कहां से आईं और इस पर अंतर्राष्ट्रीय ओलंपिक समिति का क्या कहना है.
क्यों उठी बैन की मांग?
सात अक्तूबर 2023 को हमास हमले के बाद से फलस्तीन की गज़ा पट्टी पर इजरायल की सैन्य कार्रवाई जारी है. इजरायल का दावा है कि वह हमास को खत्म करने के लिए उससे जंग कर रहा है लेकिन इस कार्रवाई में 38,000 से ज्यादा फलस्तीनी नागरिक मारे जा चुके हैं. ब्रिटेन की एक मेडिकल जर्नल लैंसेट के अनुसार, गज़ा में पिछले 10 महीने में मरने वालों की संख्या 1.86 लाख तक हो सकती है. संयुक्त राष्ट्र के आंकड़ों के अनुसार मरने वालों में 70 प्रतिशत से ज्यादा महिलाएं और बच्चे हैं. साथ ही गज़ा के 23 लाख लोगों को क्षेत्र की 20 प्रतिशत जमीन पर समेट दिया गया है.
इसके अलावा दक्षिण अफ्रीका सहित 10 देशों ने संयुक्त राष्ट्र की इंटरनेशनल कोर्ट ऑफ जस्टिस (ICJ) में इजरायल पर जेनोसाइड का मुकदमा दर्ज किया है. अदालत ने गज़ा में इजरायल की उपस्थिति को गैर-कानूनी बताते हुए उसे क्षेत्र खाली करने के लिए भी कहा है. इन्हीं कारणों से इजरायल को ओलंपिक खेलों से बैन करने की मांग उठ रही है.
बैन की मांग करने वालों का तर्क है कि जब तक इजराइल अंतर्राष्ट्रीय युद्धविराम मांगों का पालन नहीं करता, तब तक उसकी टीमों, क्लबों और प्रतिभागियों सहित इजराइली खेल संघों को अंतर्राष्ट्रीय प्रतियोगिताओं में भाग लेने से रोक दिया जाना चाहिए.
फ्रांस में भी उठी इजरायल को बैन करने की मांग
इजरायल को पेरिस ओलंपिक से बाहर रखने की मांग फिलहाल कई मुस्लिम एक्टिविस्ट समूहों, खेल निकायों और राजनेताओं ने उठाई है. इजरायली सैनिकों ने जब गजा के सबसे पुराने 'यरमूक स्टेडियम' को फलिस्तीनी बंदियों को रखने के लिए एक अस्थायी शिविर में बदलकर वीडियो जारी किया तो उसके कुछ दिन बाद ही जॉर्डन फुटबॉल एसोसिएशन ने वैश्विक खेल समुदाय से इजरायल को लोकप्रिय प्रतियोगिताओं से बैन करने की अपील की.
इसी तरह, फलिस्तीनी फुटबॉल एसोसिएशन (PFA) ने आईओसी और अंतरराष्ट्रीय फुटबॉल एसोसिएशन (FIFA) को पत्र लिखकर "फलिस्तीन में खेल और एथलीटों के खिलाफ अधिग्रहण" की जांच की मांग की. पीएफए का दावा है कि युद्ध शुरू होने के बाद से आईडीएफ के हमलों में 400 से अधिक खिलाड़ी, कोच और अधिकारी मारे गए या घायल हुए हैं. इसी तरह फरवरी में 26 फ्रांसीसी सांसदों के एक समूह ने आईओसी को पत्र लिखकर इजराइल को ओलंपिक खेलों में भाग लेने से रोकने की मांग की थी.
कई मानवाधिकार संगठनों, कार्यकर्ताओं और मशहूर हस्तियों ने भी इजराइल को खेलों से बाहर करने की मांग की है. समूहों ने आईओसी के चार्टर का हवाला दिया है, जिसमें लिखा है कि "प्रत्येक व्यक्ति को ओलंपिक आंदोलन के दायरे में अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर मान्यता प्राप्त मानवाधिकारों के संबंध में किसी भी तरह के भेदभाव के बिना खेल के अभ्यास तक पहुंच होनी चाहिए." समूहों ने आरोप लगाया है कि इजराइल के युद्ध ने फलस्तीनी एथलीटों के इन अधिकारों का उल्लंघन किया है.
इसके अलावा पेरिस ओलंपिक से इजराइल को बैन करने की मांग को लेकर छिटपुट विरोध प्रदर्शन दुनियाभर में देखे गए हैं. स्विट्जरलैंड के लुसाने में आईओसी के दफ्तर पर लोगों ने लाल हाथों के निशान बनाकर गज़ा में मानवीय संकट को उजागर किया. वहीं फ्रांस में प्रदर्शनकारियों ने इजराइल के बहिष्कार की मांग करते हुए पेरिस में आईओसी के कार्यालय के बाहर डेरा डाल दिया है.
रूस-बेलारूस पर भी लगा है प्रतिबंध
यूक्रेन में रूस और बेलारूस की सैन्य कार्रवाई शुरू होने के बाद से इन दोनों देशों को भी ओलंपिक एवं कई अन्य खेल आयोजनों से बैन कर दिया गया है. रूस और बेलारूस के एथलीटों को अपने देश के ध्वज के बिना एक 'न्यूट्रल एथलीट' बनकर ओलंपिक में हिस्सा लेने की इजाजत है. कुल 88 एथलीट पेरिस ओलंपिक में इजरायल का प्रतिनिधित्व करेंगे.
इजरायल पर बैन लगाने की मांग करने वाले लोग भी इस देश के खिलाड़ियों को 'न्यूट्रल एथलीट' के तौर पर खेलता देखने के लिए राजी हैं. गौरतलब है कि अमेरिका, ब्रिटेन और कनाडा जैसे देशों की ओर से रूस और बेलारूस पर आर्थिक प्रतिबंध लगने के बाद ही इसे ओलंपिक से बैन किया गया.
क्या कहता है आईओसी?
आईओसी पेरिस ओलंपिक खेलों से इजरायल को बैन करने की मांगों को लगातार अस्वीकार करता आया है. आईओसी के अध्यक्ष थॉमस बाख और फ्रांस के राष्ट्रपति इमैनुअल मैक्रों ने मंगलवार को एक बार फिर इन मांगों को अस्वीकार किया. बाख ने कहा, “मैं राजनीति में नहीं पड़ूंगा. आईओसी की स्थिति बहुत साफ है. हमारे पास दो राष्ट्रीय ओलंपिक समितियां हैं (इजरायल और फलस्तीन). राजनीति की दुनिया में यही अंतर है और इस संबंध में दोनों शांतिपूर्ण सह-अस्तित्व में रह रहे हैं.”
गौरतलब है कि साल 1972 के म्यूनिख ओलंपिक में फलस्तीनी उग्रवादियों के हमले में 11 इजरायली मारे गए थे. उसके बाद से इजरायली एथलीटों के लिए सुरक्षा व्यवस्था कड़ी कर दी गई है. इस साल ऐसी व्यवस्था की गई है कि इजराइली साइकिल चालक और मैराथन धावक पेरिस में सुरक्षित स्थानों पर प्रतिस्पर्धा करेंगे.