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50 Years of BARCODE: क्या सालों पुरानी Barcode तकनीक की जगह ले पाएगा QR Code? जानें कैसे हैं दोनों अलग

50 Years of BARCODE: बारकोड को 50 साल हो चुके हैं. लेकिन अब इस तकनीक का आधा स्पेस QR Code ने भी ले लिया है. बता दें, बारकोड एक तरह का कोड होता है जो मशीन से पढ़ा जाता है.

50 Years of BARCODE 50 Years of BARCODE
हाइलाइट्स
  • ग्लोबल स्टैंडर्ड करती है BarCode मैनेज 

  • QR कोड 1994 में आया था सबसे पहले 

अक्सर बाहर जाकर कुछ पेमेंट करते है या कुछ स्कैन करना होता है, तो हम क्यूआर कोड और बारकोड का इस्तेमाल करते हैं. हालांकि, ज्यादातर लोग ये नहीं जानते हैं कि बार कोड बहुत पुरानी तकनीक है. इसे करीब 50 साल हो चुके हैं. पिछले 50 साल में सुपरमार्केट से लेकर छोटी-छोटी दुकानों पर भी ये बार कोड हर जगह दिखाई देने लगे. ये एक तरह का कोड होता है जो मशीन से पढ़ा जाता है. इसमें अलग-अलग चौड़ाई के बार और खाली जगह होती है जिन्हें ऑप्टिकल बारकोड स्कैनर से पढ़ा जा सकता है.

सबसे पहले च्युइंग गम के एक पैकेट को स्कैन किया गया था 

साल 1952 में अमेरिका में नॉर्मन जोसेफ वुडलैंड और बर्नार्ड सिल्वर ने बारकोड का पेटेंट कराया था. जिसके बाद 1972 में बारकोड का व्यवसायीकरण हुआ. और उसके बारे में लोग जानने लगे. 3 अप्रैल, 1973 को प्रोडक्ट्स की पहचान के मानक पर कई बड़े खुदरा विक्रेताओं और खाद्य कंपनियों ने इसपर सहमति जताई. इसे बाद में EAN-13 के रूप में जाना जाने लगा. इससे अगले साल, 26 जून को अमेरिकी के ओहियो में, पहला प्रोडक्ट स्कैन किया गया था. सबसे पहले च्युइंग गम के एक पैकेट को स्कैन किया गया था, जो अब तक भी वाशिंगटन में नेशनल म्यूजियम में रखी गई है. 

ग्लोबल स्टैंडर्ड करती है मैनेज 

आज एक गैर-सरकारी संगठन ग्लोबल स्टैंडर्ड 1 बारकोड सिस्टम को मैनेज करती है. लगभग 20 लाख फर्म इससे जुड़ी हुई हैं. इससे जुड़ी हर फर्म को अपनी बिक्री के आधार पर लगभग 5,000 डॉलर या 4 लाख से ज्यादा रुपये हर साल भुगतान के रूप में देने होते हैं. 

वहीं, अगर इसके फायदों की बात करें तो बारकोड रीडर्स का इस्तेमाल करके प्रोडक्ट्स की डिटेल जानी जा सकती है. ये आसानी से उसका डाटा ट्रैक कर लेता है. साथ ही इसमें गलती होने की संभावना भी बहुत कम होती है. यह RFID टैग से हल्का भी होता है और छोटा भी. जिससे इसे इस्तेमाल करना और भी आसान हो जाता है. 

क्या है QR code ?

अगर अब हम QR code की बाद करें तो इसका फुल फॉर्म क्विक रिस्पॉन्स है. इसका मतलब है कि इससे हम किसी भी सामान की जानकारी आसानी से और पलभर में ले सकते हैं. सबसे पहली बार QR code तकनीक 1994 में आई थी, जिसे Denso Wave ने तैयार किया था. QR code को पहले ऑटोमोबाइल के कई पार्ट्स और स्पेयर पार्ट्स को स्कैन करने के लिए बनाया गया था. इसके जरिए इन पार्ट्स की जानकारी को इकठ्ठा किया जाता था.

1994 में आया था सबसे पहले 

क्यूआर कोड, 1994 में विकसित किए गए. इसमें ज्यादा जानकारी स्टोर की जा सकती है. इसका कारण है कि ये हर तरीके से (horizontally and vertically) पढ़ा जा सकता है. क्यूआर कोड प्रोडक्ट से जुड़ी जानकारी जैसे प्रोडक्ट कब बना और उसकी रीसाइक्लिंग तारीख या एक्सपायरी डेट तक सभी इकट्ठी कर सकता है. और चूंकि स्मार्टफोन क्यूआर कोड पढ़ सकते हैं, इसलिए ज्यादा जानकारी के लिए यह हमें वेबसाइट पर भी रीडायरेक्ट कर सकता है. यही वजह है कि लोग धीरे-धीरे क्यूआर कोड को जगह दे रहे हैं. 

क्यूआर कोड हर तरह के डेटा को स्टोर कर सकता है

क्यूआर कोड लगभग किसी भी प्रकार के डेटा को एनकोड कर सकते हैं, जिसमें न्यूमेरिक, अल्फाबेटिक, स्पेशल और बाइनरी डेटा शामिल हैं. आपके हाथ में मौजूद स्मार्टफोन या स्कैनिंग वाले किसी भी फोन में कैमरे का इस्तेमाल करके आप उसे स्कैन कर सकते हैं. इसे स्कैन करना बेहद आसान है. 1-डी बारकोड के विपरीत, यह बड़ी मात्रा में जानकारी स्टोर कर सकता है.