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AI Resurrection: एआई के जरिए मरे हुए लोगों को मिल रही है जिन्दगी? जानिए किस तरह काम कर रही है आधुनिक तकनीक

AI Resurrection: बीते कुछ सालों में एआई के जरिए ऐसे कई प्रयोग सामने आए हैं जो मरे हुए लोगों की स्मृतियों और डेटा का इस्तेमाल कर उनकी आवाज़ और बातचीत के तरीके को कॉपी कर रहे हैं. इन प्रयोगों को 'एआई रिज़रेक्शन' कहा जा रहा है. 

AI Resurrection AI Resurrection
हाइलाइट्स
  • लोगों को डिजिटल जीवन देने के लिए हो रहा तकनीक का प्रयोग

  • विशेषज्ञों ने तकनीक के इस्तेमाल से चेताया

सोशल मीडिया के दौर में आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस (Artificial Intelligence) का इस्तेमाल मीम्स बनाने से लेकर चुनाव प्रचार करने तक हो चुका है. लोग एआई की मदद से अपने पसंदीदा नेता के चेहरे या आवाज के साथ मनचाही छेड़छाड़ कर रहे हैं. एआई ने जब तस्वीरों में जान डालनी शुरू की तो लोग अपने गुज़रे हुए करीबियों को दोबारा 'जिन्दा' करने की जद्दोजहद में भी लग गए. 

बीते कुछ सालों में एआई के जरिए ऐसे कई प्रयोग सामने आए हैं जो मरे हुए लोगों की स्मृतियों और डेटा का इस्तेमाल कर उनकी आवाज़ और बातचीत के तरीके को कॉपी कर रहे हैं. इन प्रयोगों को 'एआई रिज़रेक्शन' कहा जा रहा है. 

कैसे काम करता है एआई रिजरेक्शन? 
रिजरेक्शन यानी पुनर्जीवन या पुनर्जन्म. एआई के ये प्रोजेक्ट इस दुनिया से जा चुके इंसानों को डिजिटल जीवन देने में सफल रहे हैं. इसका एक फायदा यह रहा है कि मरे हुए करीबी रिश्तेदार या दोस्त को याद करने वाले लोग उनके साथ झूठे ही सही लेकिन कुछ पल बिता सके हैं. 

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एआई रिजरेक्शन के लिए आमतौर पर व्यक्ति अपने मरे हुए परिजन के टेक्स्ट मैसेज, वॉइस नोट या ईमेल देते हैं. इन सब चीजों के अभाव में वे एआई को मृतक के व्यक्तित्व से जुड़े सवालों के जवाब भी दे सकते हैं. इसके बाद एआई इस डेटा के जरिए एक डिजिटल अवतार तैयार करता है. 

अब तक कैसे रहे प्रयोग? 
इन प्रयोगों में से एक रेप्लिका (Replika) है. यह एआई चैटबॉट एक इंसान के मैसेज पढ़कर उसकी तरह चैट करना सीखता है. इसके अलावा कई ऐसे एआई बॉट भी हैं जो मृतक की वीडियो भी बनाते हैं. मिसाल के तौर पर, लॉस एंजिलस का ऐप स्टोरीफाइल (Storyfile) लोगों को अपने ही फ्यूनरल (Funeral) पर बात करने का मौका देता है. इसके लिए इंसान को बस मरने से पहले अपनी एक वीडियो रिकॉर्ड करनी होती है, जिसमें वह अपने जीवन और खयालों के बारे में बात करता है. 

फ्यूनरल वाले दिन वहां मौजूद लोग एआई से सवाल पूछ सकते हैं और स्टोरीफाइल का यह टूल उस वीडियो के आधार पर ही जवाब देता है. इस साल जून में अमेरिका स्थित एटर्नोस (Eternos) ने भी एक इंसान का एआई अवतार बनाने के लिए सुर्खियां बटोरीं. इस प्रोजेक्ट की मदद से 83 साल के माइकल बॉमर ने अपना डिजिटल अवतार इस दुनिया में छोड़ा और उनका परिवार अब भी उस अवतार से बातचीत कर सकता है. 

एआई रिजरेक्शन, कितना पास, कितना फेल?
एक तरफ जहां अपने किसी अज़ीज़ को खोने के दुख में डूबे हुए लोग धड़ल्ले से इस तकनीक का इस्तेमाल कर रहे हैं, वहीं एक डिबेट यह भी छिड़ी हुई है कि एआई रिजरेक्शन कितना सुरक्षित और सही है. विशेषज्ञों का कहना है कि इस तकनीक का लंबे समय तक इंतजार करने वाले इंसान के लिए जीवन में आगे बढ़ना मुश्किल हो सकता है. 

ऐना फ्रॉयड नेशनल सेंटर फॉर चिल्ड्रेन एंड फैमिलीज़ की सलाहकार एलेसेंड्रा लेमा अलजज़ीरा से बातचीत में कहती हैं, “एक डॉक्टर के तौर पर मेरी सबसे बड़ी चिंता यह है कि शोक वास्तव में बहुत महत्वपूर्ण है. यह एक इंसान के आगे बढ़ने की प्रक्रिया का एक अहम हिस्सा है कि हम किसी इंसान के दुनिया से जाने को स्वीकार करें.” 

साथ ही विशेषज्ञों को चिंता है कि ऐसी तकनीक लोगों के निजी डेटा को सुरक्षित नहीं रख पाएगी. टेक्स्ट मैसेज, ईमेल और वीडियो जैसी निजी जानकारी थर्ड पार्टियों तक पहुंचने की संभावना बहुत ज्यादा है. ऐसे में लोगों को एआई रिजरेक्शन का इस्तेमाल करने से पहले खुद से पूछना चाहिए; क्या उन्हें इसकी जरूरत है?