भारतीय सेना ने ड्रोन नेटवर्क को मजबूत बनाने के साथ-साथ दुश्मन की नजरों से बचाने के भी पुख्ता इंतजाम शुरू कर दिए हैं. रक्षा अनुसंधान एवं विकास संगठन ने कई ऐसे छोटे ड्रोन तैयार किए हैं, जिन्हें दुश्मन पकड़ ही नहीं पाएंगे. सीमावर्ती इलाकों में तैनात सभी ड्रोन और यूएवी में एंटी जैमर तकनीक स्थापित की गई है. इससे इनपर जैमर का कोई असर नहीं होता. ये ड्रोन और मानव रहित विमान (यूएवी) न तो दुश्मन के रडार पर आ सकेंगे न ही जैमर की पकड़ में आएंगे.
ये पक्षियों के आकार के होते हैं और देखने में इतने छोटे हैं कि एक बार में दिखाई भी नहीं देते.
सीमावर्ती क्षेत्रों में निगरानी के लिए ड्रोन के साथ-साथ मानव रहित विमानों का भी इस्तेमाल किया जा रहा है. यह कम ऊंचाई पर उड़ते हैं इसलिए इन्हें रडार से पकड़ पाना मुश्किल होता है. ये कई घंटे तक उड़ान भरने में सक्षम होते हैं.
मानवरहित विमानों का इस्तेमाल निगरानी के लिए होता है. इसके तहत खतरे को देखकर या तो सेना को अलर्ट किया जाता है. ये ड्रोन पत्ते पत्ते पर नजर रखते हैं जिससे सुरक्षा में किसी तरह की चूक ना हो पाए.
ड्रोन में हो रहा एंटी जैमर तकनीक का इस्तेमाल
एंटी जैमर तकनीक सुरक्षा के लिए बेहद जरूरी है. इससे इन ड्रोन्स पर जैमर का कोई असर नहीं होता है. जैमर के इस्तेमाल से ड्रोन्स को निष्क्रिय किया जा सकता है, इसलिए इन ड्रोन्स को एंटी जैमर तकनीक से लैस किया गया है. जैमर डिवाइसों को निष्क्रिय कर देता है और इनमें सिग्नल नहीं आने देता है.
एंटी ड्रोन सिस्टम भी तैयार
यह सिस्टम तीन किलोमीटर के दायरे में आने वाले छोटे ड्रोन का पता लगाकर उसे जाम कर देता है. इसके अलावा ढाई किलोमीटर की रेंज में आए ड्रोन्स को मार गिरा सकता है.
रुस्तम जी- ये ऐसा ड्रोन है, जो दुश्मन की निगरानी करने, खूफिया ठिकानों की फोटो खींचने के साथ दुश्मन पर हमला करने में भी सक्षम है. इसका वजन करीब 2 टन का है. विमान की लंबाई 9.5 मीटर की है. ये 224 किलोमीटर प्रति घंटे की रफ्तार से उड़ान भर सकता है. यह 26 हजार फीट से लेकर 35 हजार फीट की ऊंचाई पर उड़ान भर सकता है. रुस्तम-2 को डीआरडीओ ने यूएवी के 1500 करोड़ रुपए के प्रोजेक्ट से बनाया है.