चैट जीपीटी एक मशीन लर्निंग बेस्ड एआई टूल है, जो इन दिनों लगभग हर जगह ट्रेंड कर रहा है. चैट जीपीटी का क्रेज भी लगातार बढ़ता जा रहा है. बता दें कि चैटजीपीट को ओपनएआई (OpenAI) ने बनाया है, और माइक्रोसॉफ्ट भी इसपर लगातार काम कर रहा है, जिससे इसकी क्षमताओं का पता नहीं लगाया जा सकता है. हाल ही में चैटजीपीटी की क्षमताओं का पता लगाने के लिए स्टैनफोर्ड यूनिवर्सिटी के प्रोफेसर मिशेल कोसिंस्की ने एक साइकोलॉजिकल टेस्ट किया है.
'थ्योरी ऑफ माइंड' टास्क में हुई टेस्टिंग
प्रोफेसर मिशेल कोसिंस्की ने चैटबॉट के विभिन्न संस्करणों को 'थ्योरी ऑफ माइंड' टास्क को पूरा करने के लिए चैटजीपीटी का इस्तेमाल किया. दरअसल ये टेस्ट किसी भी बच्चे की दिमागी क्षमता का पता लगाने के लिए किया जाता है. इस टेस्ट के जरिए पता लगाया जा सकता है कि कोई भी बच्चा किसी भी परिस्थिति में कैसा व्यवहार करेगा. मूल रूप से, ये परीक्षण किसी बच्चे की किसी अन्य व्यक्ति की मानसिक स्थिति को समझने की क्षमता का मूल्यांकन करने में मदद करते हैं और इसका उपयोग उसके व्यवहार की व्याख्या करने के लिए करते हैं.
चैटजीपीटी में है 9 साल के बच्चे जितना दिमाग
ये प्रयोग नवंबर 2022 में किया गया था, और इसमें GPT3.5 पर प्रशिक्षित ChatGPT के एक संस्करण का उपयोग किया गया था. चैटबॉट ने कोसिंस्की के माइंड टास्क के सिद्धांत के 94% (20 में से 17) को हल किया. जिसके बाद कोसिंकसी ने चैटबॉट को एवरेज नौ वर्षीय बच्चे की समान लीग में रखा. कोसिंकसी के अनुसार भाषा कौशल में सुधार के कारण चैटजीपीटी की क्षमता बढ़ सकती है.
क्या है थ्योरी ऑफ माइंड टेस्टिंग?
थ्योरी ऑफ माइंड टेस्टिंग की बात करें तो इसका इस्तेमाल लोगों के व्यवहार को समझने के लिए किया जाता है. इस टेस्ट का सबसे कठिन चरण है, होता है किसी भी व्यक्ति की 'झूठी मान्यताओं' को समझना. इस टेस्ट का चौथा चरण है कि भी व्यक्ति के बारे में जानना कि उस व्यक्ति की कुछ झूठी मान्यताएं हो सकती हैं, जो सच्चाई से परे होंगी.