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Face recognition Software: अपराधियों की खैर नहीं! दिल्ली एयरपोर्ट पर लगेंगे फेस रिकॉग्निशन कैमरे, जानिए कैसे करेंगे काम

दिल्ली एयरपोर्ट पर अब नए तकनीक के जरिए अपराधियों पर नकेल कसने की कोशिश की जा रही है. कोई भी अपराधी या फिर आतंकी दिल्ली पुलिस के इस जाल से उड़ान भरने में नाकाम रहेंगे.

दिल्ली एयरपोर्ट दिल्ली एयरपोर्ट
हाइलाइट्स
  • लाल किले पर होने वाले कार्यक्रम में होता है इस्तेमाल

  • कुछ ही महीनों में शुरू हो जाएगी सुविधा

पुलिस को चकमा देकर फरार होने वाले अपराधियों की अब खैर नहीं है. क्योंकि दिल्ली पुलिस, एयरपोर्ट पर लगे सीसीटीवी कैमरों में फेस रिकग्निशन सॉफ्टवेयर का इस्तेमाल करने जा रही है. सेफ सिटी प्रोजेक्ट के तहत इस्तेमाल की जा रही ये तकनीक अपराधियों को सलाखों के पीछे डालने के लिए मददगार साबित होने वाली है.

एंट्री और एग्जिट पॉइंट पर लगेगा फेस रिकग्निशन सॉफ्टवेयर
इंदिरा गांधी इंटरनेशनल एयरपोर्ट पर फेस रिकग्निशन सॉफ्टवेयर से लैस कैमरों को एंट्री और एग्जिट पॉइंट पर लगाया जाएगा. अपराधियों का फेस कैमरे की नजर में आते ही पुलिस हेडक्वार्टर तक वांटेड अपराधियों की सूचना पहुंच जाएगी. इसके बाद अपराधियों को उड़ान भरने से रोक दिया जाएगा 
और पुलिस उन्हें सलाखों के पीछे पहुंचा सकेगी.

कुछ ही महीनों में शुरू हो जाएगी सुविधा
आने वाले मई महीने तक इस तकनीक का इस्तेमाल करने की संभावना जताई जा रही है. देश के किसी एयरपोर्ट पर फिलहाल इस तरह की टेक्नोलॉजी का इस्तेमाल नहीं किया जा रहा है. जिसका फायदा उठा कर वांटेड अपराधी हवाई मार्ग का इस्तेमाल कर एक शहर से दूसरे शहर, एक राज्य से दूसरे राज्य में कहीं भी आ-जा रहे हैं. फिलहाल  एयरपोर्ट पर वही वांटेड अपराधी पकड़े जाते हैं, जो विदेश भागने की फिराक में होते हैं. वो भी तब जब उनके खिलाफ लुकआउट सर्कुलर नोटिस जारी किया जाता है. लेकिन दिल्ली एयरपोर्ट पर लगने वाले आधुनिक तकनीक से लैस CCTV से कही भी हवाई यात्रा करने बच पाना मुश्किल है.

लाल किले पर होने वाले कार्यक्रम में होता है इस्तेमाल
अपराधियों को पकड़ने में फेस रिकग्निशन सॉफ्टवेयर काफी कारगर है. पिछले 15 सालों से दिल्ली पुलिस इसे लाल किला पर होने वाले कार्यक्रमों में इस्तेमाल करती आ रही है. पिछले साल 15 अगस्त को दिल्ली पुलिस ने इस तकनीक की मदद से तीन वांटेड अपराधियों को पकड़ा था. एयरपोर्ट पर सीसीटीवी कैमरे में फेस रिकॉग्निशन सॉफ्टवेयर के इस्तेमाल से वांटेड अपराधियों को पकड़ना ना केवल आसान हो जाएगा बल्कि अपरधियों की उड़ान पर लगाम भी लग जाएगी.

क्या होता है फेस रिकॉग्निशन कैमरा?
सबसे पहले बात  एफआरएस यानी फेस रिकॉग्निशन कैमरा की करें तो FRS असल में वो कैमरा है जो अपराधियों या फिर आतंकियों के चेहरे को देखते ही पहचान लेता है और सुरक्षाकर्मियों को अलर्ट कर देता है. मतलब साफ है कि चेहरा पहचान लेने वाले कैमरे को फेस रिकग्निशन सिस्टम कहते हैं. ये कैमरा एक कंप्यूटर सिस्टम से जुड़ा होता है. जिसमें आतंकियों और बदमाशों की तस्वीरों के साथ-साथ उनका पूरा डाटा होता है. किसने कब कहां क्या क्राइम किया है सारी डिटेल उसकी सामने आ जाती है. इतना ही नहीं जिस चेहरे की तस्वीर सिस्टम में फीड की गई है उससे मिलता जुलता चेहरा भी अगर कैमरे के सामने से गुजरता है, तो कैमरा तुरंत एक्टिव हो जाता है. 

गणतंत्र दिवस पर भी हुआ था इस्तेमाल
कंप्यूटर पर मॉनिटर कर रहे सुरक्षाकर्मी को ऑटोमेटिक अलर्ट मिल जाता है. इसका फायदा ये होता है कि इन कैमरों की बदौलत पुलिस ऐसे लोगों पर एक जगह से बैठकर निगरानी रख पाती है. हालही में गणतंत्र दिवस पर भी पुलिस ने इस बार संवेदनशील और अति संवेदनशील जगहों पर 30 फेस रिकॉग्निशन सिस्टम यानी चेहरा पहचानने वाले कैमरे लगाए थे. जिसमें करीब 50 हजार संदिग्धों के डेटा तस्वीरों के साथ फीड किया था. अब इस तकनीक का इस्तेमाल एयरपोर्ट पर किया जाने वाला है, जो पहली बार है. इससे पहले एयरपोर्ट पर इस तरह के सॉफ्टवेयर को अपलोड नहीं किया गया था. 

कैसे काम करता है फेस रिकग्निशन सॉफ्टवेयर?
सबसे पहले CCTV में फेस रिकग्निशन सॉफ्टवेयर को अपडेट किया जाएगा. यानी एयरपोर्ट पर लगे कैमरों को एक खास सर्वर से जोड़ा जाएगा. इसके बाद सॉफ्टवेयर के जरिए कैमरों में वांटेड अपराधियों की तस्वीरें डाली जाएंगी. मतलब सर्वर में आतंकवादियों और अपराधियों का सारा डाटा मौजूद रहेगा. जब भी कोई इस कैमरे के सामने आएगा, तो ये सॉफ्टवेयर अपने डेटा बेस में डाले गए वांटेड अपराधियों की तस्वीरों से उसकी मिलान करेगा.  जो भी उस शख्स उस तस्वीर से मिलता-जुलता नजर आएगा, उसकी सूचना तुरंत ही पुलिस हेडक्वार्टर तक पहुंच जाएगी. जिसके बाद संदिग्ध शख्स की सामने से जांच पड़ताल की जाएगी और अपराधी साबित होने पर पुलिस उसे आसानी से गिरफ्तार में कर पाएगी.