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Exclusive: उत्तराखंड और हिमाचल प्रदेश जैसे इलाकों में हो रहे भूस्खलन से बचाएगा ये डिवाइस, बिना नेटवर्क और सिग्नल के भी करेगा 24 घंटे काम   

पहाड़ी राज्यों में होने वाली लैंडस्लाइड को लेकर जीएनटी डिजिटल ने एक्सपर्ट से बात की. उन्होंने बताया कि इससे होने वाले नुक्सान को कम किया जा सकता है. बस इसके लिए थोड़ा बेहतर तरीके से काम करने की जरूरत है. अगर हम सस्टेनेबल कंस्ट्रक्शन करें तो इससे होने वाली दुर्घटनाओं को कम किया जा सकता है. इसे लेकर एक कंपनी ने डिवाइस बनाया है जिसका नाम हेलो मैक है. ये एक रॉक फॉल अलर्ट डिवाइस है.

Landslide Landslide
हाइलाइट्स
  • बीते कुछ समय से बदला है पर्यावरण का संतुलन

  • दुनिया के सबसे जवान पर्वतों में से एक है हिमालय

पिछले कई साल से पहाड़ी राज्यों में कमजोर पहाड़ों से होने वाला भूस्खलन (Landslide) चुनौती का सबब बना हुआ है. उत्तराखंड और हिमाचल प्रदेश जैसे इलाकों में तो मानसून के मौसम में आए दिन सड़कें और ट्रैफिक प्रभावित रहती हैं. हालांकि, आशंकित जोनों की निगरानी और कई बैरियर सिस्टम के बाद भी इनसे हो रही दुर्घटनाओं को रोकना मुश्किल हो जाता है. कब किस सड़क पर पहाड़ से गिरकर मलबा और बोल्डर आ जाए, कहा नहीं जा सकता. 

भूस्खलन को देश और दुनिया की बड़ी प्राकृतिक आपदाओं में से एक माना जाता है. अगर अर्ली अलर्ट सिस्टम जैसी तकनीकों का इस्तेमाल किया जाए तो इससे हो रही मौतों और दुर्घटनाओं को कम किया जा सकता है. लेकिन अब मैकाफेरी (Maccaferri) नाम की एक कंपनी ने इसे रोकने के लिए ठोस उपाय सोचा है और इसके लिए एक ऐसे डिवाइस का निर्माण किया है जिससे कई हद तक भूस्खलन से होने वाले जान-माल के नुकसान को कम किया जा सकता है. इस डिवाइस का नाम है ‘हेलो मैक’. 

पहाड़ी इलाकों में हो रहे भूस्खलन और इसे रोकने के लिए बनाए गए डिवाइस को लेकर GNT डिजिटल ने मैकाफेरी के टेक्निकल मैनेजर और इन जगहों पर अध्ययन करने वाले डॉ रत्नाकर महाजन से बात की. चलिए पढ़ते हैं बातचीत के मुख्य अंश-

बीते कुछ समय से बदला है पर्यावरण का संतुलन

डॉ रत्नाकर महाजन कहते हैं, “बीते कुछ दिनों से पर्यावरण का संतुलन काफी बिगड़ा है. पहले जो बारिश होती थी वो अभी से अलग होती है. अब आपने देखा होगा कि कम समय में बहुत तेज बारिश होती हैं. और जो हमारी भूस्खलन की दिक्कत है उसमें ये कहीं न कहीं बड़ा रोल निभाती है. हालांकि, इसे रोका जा सकता है और इसे कम भी किया जा सकता है. लेकिन उसके लिए हमें सुनियोजित तरीके से काम करने की जरूरत है.”

डॉ रत्नाकर के मुताबिक, पहाड़ों में हो रहे भूस्खलन के लिए कई सारे कारक जिम्मेदार हैं. जिसमें निर्माण कार्य या कंस्ट्रक्शन से लेकर पर्यावरण संतुलन, पानी बहने का पैटर्न, मिट्टी, जमीनों का इस्तेमाल आदि सब शामिल हैं.

दुनिया के सबसे जवान पर्वतों में से एक है हिमालय

डॉ रत्नाकर कहते हैं, “हिमालय पर्वत को हम दुनिया का सबसे यंग माउंटेन यानि सबसे जवान पर्वत मान सकते हैं. इसपर अध्ययन करेंगे तो पता चलेगा कि सबसे पहले ये समुद्र की सतह था और जो हमारी इंडियन प्लेट और चीन प्लेट है वो आपस में टकराती हैं. करीब करीब 2 से 2.5 सेंटीमीटर हिमालय हर साल ऊंचा होता है क्योंकि ये दोनों प्लेट आपस में टकराती हैं और ऊपर जाती हैं. अब ये जो हिमालय पर्वत है वो समुद्र का तल था तो यहां पर नदी से मिट्टी या रेत आई वो सालों साल एक के ऊपर एक परत बनती चली गई और फिर ये एक पर्वत में तब्दील हुआ. लेकिन ये नई पर्वत श्रृंखला है जो काफी नाजुक है. ये सारा भार सहन नहीं कर सकते हैं. लेकिन पिछले कुछ सालों से हिमालय जियोलॉजी, बारिश का पैटर्न, जंगलों का कम होना इन सबके वजह से ये बदलाव देखने को मिल रहे हैं. तो कुल मिलाकर जियोलॉजी हो गया, पर्यावरण, निर्माण कार्य आदि ये सभी वजह है लैंडस्लाइड की. जबकि अगर मध्य भारत की बात करें तो आप देखेंगे कि वहां काला पत्थर है. वहां ये सब लैंडस्लाइड की खबरें नहीं सुनाई देती हैं क्योंकि वो काफी पुराने हैं.”  

हेलो मैक कैसे काम करता है?

भूस्खलन को रोकने के लिए जिस डिवाइस का निर्माण मैकाफेरी ने किया है उसके बारे में बात करते हुए डॉ महाजन बताते हैं, “हम बहुत साल से लैंडस्लाइड की परेशानी को देख रहे हैं तो हमने इसपर काम करने की सोची. ऐसे में हमारे पास कई बार पत्थरों के गिरने को लेकर शिकायतें आती थीं कि ऊपर से अचानक से गाड़ी पर गिर रहे हैं और इन्हें कैसे रोका जा सकता है या उससे होने वाली दुर्घटनाओं को किस तरह से रोका जाए? तब हमने सोचा कि एक ऐसा डिवाइस बनाया जाए जो रॉक फॉल बैरियर पर लगा दिया जाए और अगर पत्थर गिरता है तो उसे जो भी ऑफिसर देख रहा है उसे ये सूचना मिल जाए कि अमुक जगह पहाड़ से पत्थर गिरने वाला है. इस डिवाइस को हमने हेलो मैक नाम दिया है. ये डिवाइस प्रोडक्ट पर लगाया जाता है. और इसकी सबसे खास बात है कि ये बिना इंटरनेट और नेटवर्क के भी काम करता है. हमने ये ध्यान रखा है कि अगर दूर-दराज  के इलाके में ये घटनाएं होती हैं तो वहां नेटवर्क न होने की वजह से लोगों को नुकसान ने झेलना पड़े. ये डिवाइस सैटेलाइट से भी कनेक्टेड होगा.” 

हेलो मैक डिवाइस
हेलो मैक डिवाइस

डॉ महाजन GNT डिजिटल को आगे बताते हैं कि इस डिवाइस में ये होता है कि जब भी पत्थर गिरता है या इस डिवाइस पर कोई दबाव पड़ता है तो ये एकदम से सिग्नल भेजता है. इस सिग्नल से आपको पता चला जायेगा कि उस जगह पर पत्थर गिर सकता है. इसी तरह से ये लैंडस्लाइड में भी अपडेट भेज देता है. और सबसे खास बात है कि ये 24 घंटे एक्टिव रहता है.

क्या इन सबसे बचा जा सकता है या कम किया जा सकता है?

डॉ रत्नाकर इससे बचने के उपाय के बारे में बाते करते हुए कहते हैं, “मान लीजिये पहाड़ में मुझे रास्ता बनाना है या रेलवे लाइन बनाना है तो हम मौजूदा समय में क्या करते हैं कि हम कंस्ट्रक्शन के समय अगर सड़क की तरफ से रास्ता धंस रहा हो तो हम पहाड़ के तरफ से काटना शुरू कर देते हैं जबकि हमें इसे रोकना चाहिए. हमें ज्यादा पहाड़ की तरफ न जाते हुए खाई के तरफ जाकर इंफ्रास्ट्रक्टचर बनाना चाहिए. इसका बहुत बड़ा उदाहरण हमने 2013 की उत्तराखंड ट्रैजिडी के बाद देखा. जब सड़क और परिवहन मंत्रालय ने एक प्रोजेक्ट बनाया जिस्मने 7 जगहों पर हमें लैंडस्लाइड को ट्रीटमेंट देना था. जिसमें बिराही, नंदप्रयाग समेत 7 जगहें थीं. तब जब हमने वहां काम किया तो सुझाव दिया कि पहाड़ को कम से कम डिस्टर्ब किया जाए और वैली साइड कंस्ट्रक्शन ज्यादा किया जाए. इससे भूस्खलन को कम किया जा सकेगा.”