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Google Turns 25: गैरेज से लेकर AI तक, गूगल ने कुछ ऐसे किया है इन 25 साल का सफर तय 

Making of Google: कंपनी की स्थापना लैरी पेज और सर्गेई ब्रिन ने 1998 में स्टैनफोर्ड यूनिवर्सिटी, कैलिफोर्निया में अपनी पीएचडी के दौरान की थी. यह अब मूल कंपनी अल्फाबेट का हिस्सा है.

Google Turns 25 Google Turns 25
हाइलाइट्स
  • 1998 में हुई थी स्थापना 

  • 230 से अधिक देशों में हो रहा इस्तेमाल 

अक्सर कुछ भी डाउट होता है और किसी सवाल का जवाब ढूंढना होता है तो गूगल करने के लिए कहा जाता है. अब यही गूगल 25 साल का हो गया है. हालांकि, इन पिछले 25 साल में इस सर्च इंजन ने सुसान वोज्की के गैरेज से लेकर नए जेनरेटिव एआई (generative AI) तक का सफर देखा है. इतना ही नहीं कई बदलाव भी देखे हैं. 

1998 में हुई थी स्थापना 

कंपनी की स्थापना लैरी पेज और सर्गेई ब्रिन ने 1998 में स्टैनफोर्ड यूनिवर्सिटी, कैलिफोर्निया में अपनी पीएचडी के दौरान की थी. यह अब मूल कंपनी अल्फाबेट का हिस्सा है, जिसके प्रमुख सीईओ सुंदर पिचाई हैं. अपने शुरुआती दिनों से ही, कंपनी ने अपने कई सारे प्रोडक्ट लॉन्च करने शुरू कर दिए थे. वहीं साल 2004 में आईपीओ के माध्यम से इसे पब्लिक कर दिया गया. 

गूगल के अलावा कई प्रोडक्ट्स भी किए लॉन्च 

सर्च के अलावा, Google की लोकप्रिय सर्विसेज में जीमेल, मैप्स, ड्राइव, क्रोम, यूट्यूब, एंड्रॉइड, वर्कस्पेस ऐप्स, ट्रांसलेट, मीट, पिक्सेल प्रोडक्ट सीरीज, असिस्टेंट, बार्ड और बहुत कुछ शामिल हैं. कंपनी के टॉप अधिकारियों की बात करें तो, सुंदर पिचाई ने 2015 में सीईओ के रूप में जगह ली थी और 2019 में पेरेंट अल्फाबेट के प्रमुख बन गए थे. 

230 से अधिक देशों में हो रहा इस्तेमाल 

वर्तमान स्थिति की बात करें, तो कंपनी वर्कस्पेस के लिए बार्ड और डुएट एआई जैसे उत्पादों के साथ एआई बैंडवैगन पर काम कर रही है. इतना ही नहीं गूगल का चैट मॉडल मौजूदा समय में 40 से अधिक भाषाओं का समर्थन करता है. इसमें नौ भारतीय भाषाएं भी शामिल हैं. ये आज 230 से अधिक देशों में उपलब्ध है. 

क्या हो सकता है इसका भविष्य?

जैसे-जैसे Google सर्च में जेनेरिक AI क्षमताओं को शामिल किया जा रहा है ऐसे में खुद जानकारी खोजने के बजाय रिजल्ट पेज के टॉप पर उसका सारांश पढ़ना आम हो जाएगा. हालांकि, लोगों को कहा जा रहा है कि AI के आ जाने से पूरी तरह से उसपर निर्भर न हों. जो भी आउटपुट मिल रहा है उसपर आंख मूंदकर भरोसा न कर लें. मूल स्रोतों से फैक्ट्स के बारे में जानकारी इकट्ठा करना हमेशा जरूरी रहेगा. 

गूगल नाम के पीछे की कहानी

बिजनेस इनसाइडर की रिपोर्ट के मुताबिक, Google नाम वास्तव में स्टैनफोर्ड में शॉन एंडरसन नाम के एक ग्रेजुएट स्टूडेंट के नाम पर आया था. एंडरसन ने एक विचार-मंथन सत्र के दौरान "googolplex" शब्द का सुझाव दिया, और पेज ने छोटे "googol" का प्रयोग किया. गूगोल अंक 1 है जिसके बाद 100 जीरो हैं, जबकि googolplex 1 है जिसके बाद गूगोल जीरो है. एंडरसन ने यह देखने के लिए सर्च की कि क्या वह डोमेन नाम लिया गया है, लेकिन गलती से उसने "googol.com" के बजाय "google.com" खोज लिया. तब उन्हें वह नाम और भी अच्छा लगा और उसने 15 सितंबर 1997 को ब्रिन और अपने लिए डोमेन नाम रजिस्टर कर लिया.