आज कल एक नई कहावत है वो ये कि जमाना टेकनोलॉजी का है. लोग अक्सर इस कहावत को ये बताने के लिए इस्तेमाल करते हैं कि आज के टेकनोलॉजी के जमाने में आप हर फिल्ड में दो हाथ आगे हैं. लेकिन आप तब क्या कहेंगे अगर कोई खोया हुआ इंसान जो बोल भी नहीं सकता वो मात्र अंगुठे के निशान से अपने घर पहुंच जाए. दरअसल यूपी के कानपुर (Kanpur) के स्वरूपनगर के राजकीय बालिका गृह में एक ऐसा ही वाक्या पेश आया है. जहां पर राजकीय बालिका गृह में रह रही मूक-बधिर बच्ची पूरे दो साल के बाद अपने परिवार से मिल पाई है. और उसके घर का पता ढूंढ निकालने में सहारा बना उसके अंगूठे का निशान. उसके इस निशान के आधार पर भारतीय विशिष्ट पहचान प्राधिकरण (UIDAI) के अधिकारियों ने उसका पूरा ब्योरा खोज निकाला. अपनी खोई बच्ची को देखकर उसके परिजन भी हैरान रह गए और उनकी आंखों से आंसू निकल आए.
राजकीय बालिका गृह के स्टाफ ने बताया कि 10 साल की ये बच्ची दो साल पहले तक लवारिस घूम रही थी. बच्ची की परेशानी को देखते हुए रेलवे की चाइल्ड लाइन टीम को खबर दी. यह बच्ची न बोल पाती और न ही कुछ सुन-समझ पाती है. ऐसा हालात में तलाश के बाद भी बच्ची के परिवार वाले नहीं मिले और बाल कल्याण समिति ने बच्ची को बालिका गृह के हवाले कर दिया. यहां पर बच्ची का नाम मनु रखा गया. यहां पर महिला कल्याण निदेशालय से लावारिस बच्चों के आधार कार्ड बनवाने का आदेश आया.
23 जनवरी को UIDAI की टीम इन बच्चों का आधार कार्ड बनाने के लिए बालिका गृह आई, यहां मनु का भी थंब इंप्रेशन और आई स्कैन किया गया तो पता चला कि उसका बायोमीट्रिक रिकार्ड पहले से ही दर्ज है. ऐसे में आधार टीम ने लखनऊ जाकर फिंगर प्रिंट और रेटिना रिपोर्ट के आधार पर मनु का पहले से बना आधार कार्ड निकाला और वहां से उसका असली नाम और पता मिल गया. आधार कार्ड से पता चला कि उसका असल नाम रेशमी और वह लुधियाना की रहने वाली है.
इस बात की जानकारी मिलते ही बालिका गृह ने तुरंत लुधियाना बाल कल्याण समिति से सपंर्क किया, और इस बच्ची के परिवार वाले एक कालोनी में मिले. अपनी खोई बच्ची की खबर पाकर रेशमी के परिवार की खुशी का ठिकाना न रहा. वे लोग भी तुरंत कानपुर पहुंच गए, जिन्हें देखते ही रेशमी ने तुंरत पहचान लिया इस तरह एक खोई हुई बच्ची को उसका परिवार मिल गया.